आतंकवाद का गन्दला अर्थतंत्र - Punjab Kesari
Girl in a jacket

आतंकवाद का गन्दला अर्थतंत्र

NULL

राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को वित्तीय पोषण देने के सन्देह में भारत के विभिन्न राज्यों में जो छापेमारी की है, उससे साफ हो गया है कि भारत के भीतर भी ऐसे तत्व छिपे बैठे हैं जो परोक्ष रूप से पाकिस्तान की मदद कर रहे हैं क्योंकि पाकिस्तान का लक्ष्य कश्मीर में अफरा-तफरी फैलाने के अलावा और कुछ नहीं है। मैंने पहले भी कई बार लिखा है कि कश्मीर में पत्थरबाजी को एक उद्योग बना दिया गया है और वहां की नौजवान पीढ़ी को चन्द सियासतदानों ने अपने स्वार्थपूर्ति के लिए पूरा तन्त्र विकसित कर लिया है। यह तन्त्र हुर्रियत कान्फ्रेंस जैसी तंजीमों के साथ सांठगांठ करके चलता है। इसका एकमात्र लक्ष्य भारत विरोध रहा है और भारतीय संविधान के विरोध का रहा है। वरना क्या वजह है कि ये लोग जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पाक अधिकृत कश्मीर के हिस्से की खाली पड़ी सीटों के बारे में कभी जुबान तक नहीं हिलाते? उल्टे पाकिस्तान की तर्ज पर सूबे में जनमत संग्रह का राग अलापते रहते हैं और कश्मीर की आजादी की बात करने लगते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि रियासत का विलय भारतीय संघ में करते समय इसके महाराजा हरिसिंह ने कुछ खास शर्तें रखी थीं जिन्हें भारत ने पूरा किया और राज्य में चुनाव कराकर संविधान सभा का गठन किया। इस संविधान सभा ने रियासत का संविधान बनाया जिसे पूरे राज्य में लागू कर दिया गया।

यह सब कुछ भारतीय संविधान की छत्रछाया में ही किया गया परन्तु कालान्तर में सूबे में भारी राजनीतिक उठा-पटक होने के बाद लोकतान्त्रिक सरकारों का गठन कश्मीरियों के एक वोट के अधिकार पर ही हुआ और ऐसी ही सरकार वर्तमान में श्रीनगर में सत्ता पर काबिज है जिसमें भाजपा व पीडीपी शामिल हैं मगर सियासी विरोधियों ने हुर्रियत के नेताओं के साथ हाथ मिलाकर जिस तरह से घाटी में राष्ट्र विरोध को पत्थरबाजी के नाम पर पनपाया उसने सेना विरोध का रूप अख्तियार कर लिया जिसे जनसमर्थन देने के लिए नये-नये नुस्खे खोजे गये। कश्मीरी युवकों को भड़का कर उन्हें विद्रोही बनाया गया और उनका राब्ता पाकिस्तान की दहशतगर्द तंजीमों के साथ जोड़ा गया। इसके साथ ही इसमें जेहाद का जोड़ दिया गया जिससे घाटी की बहुसंख्यक मुस्लिम जनता की भी उन्हें सहानुभूति मिल सके। इस मुहिम को इस तर्ज पर आगे बढ़ाया गया जिससे भारतीय फौज और कश्मीरी आमने-सामने आ जायें।

जाहिर तौर पर पत्थरबाजों को पेशेवर बनाने के लिए वित्तीय मदद की जरूरत होती जिसका रास्ता ऐसी तंजीमों ने खोजा और भारत में ही कश्मीरी माल का व्यापार करने वाले कारोबारियों को इसमें शामिल किया गया। जाहिर तौर पर इसमें कश्मीरी कारोबारी भी शामिल होंगे। पाकिस्तान के रास्ते वित्तीय पोषण को भारतीय रास्ते से गुजारने के लिए यह सब कुछ किया गया। जो छापे पड़ रहे हैं उनकी व्यापक जांच में इसकी पोल खुलनी स्वाभाविक है मगर छापे हुर्रियत नेताओं के खास लोगों पर भी पड़े हैं। इससे पूरे तन्त्र के फैलाव का आभास हो सकता है मगर यह भी हकीकत है कि आतंकवाद का तन्त्र इतने तक ही सीमित नहीं है। जब राज्य में 2002 से 2008 तक कांग्रेस व पीडीपी की मिली-जुली सरकार थी तो मुख्यमन्त्री के पद पर बैठे हुए कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि राज्य के कुछ सियासतदानों के आतंकवादियों से सम्बन्ध हैं मगर इससे आगे जाने में वह संकोच कर गये थे। सवाल यह है कि वे कौन लोग हैं जिनके सम्बन्ध आतंकवादियों से हैं? इसका खुलासा होने का वक्त कब आयेगा? क्या कभी वह दिन भी कश्मीरी जनता देखेगी जब घाटी से ही आवाज उठेगी कि पूरे कश्मीर को एक करो और पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज आओ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

five × three =

Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।