तेजस का तेज - Punjab Kesari
Girl in a jacket

तेजस का तेज

तीन वर्ष पहले वायुसेना ने हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड यानी एचएएल को तेजस विमानों के लिए आर्डर दिया था,

तीन वर्ष पहले वायुसेना ने हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड यानी एचएएल को तेजस विमानों के लिए आर्डर दिया था, जिसके तहत कई तेजस विमानों को वायुसेना के लड़ाकू बेड़े में शामिल भी किया गया। सिंगल इंजन वाला तेजस लड़ाकू विमान पूरी तरह से स्वदेशी है। कुल मिलाकर अब 83 हल्के लड़ाकू विमानों का आर्डर दिया गया है, जिसमें 73 तेजस मार्क-I ए और दस तेजस मार्क-I (ट्रेनर) विमान है। तेजस मार्क-I ए लड़ाकू विमान की कीमत 550 करोड़ रुपए है जो सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान से 120 करोड़ रुपए ज्यादा है। सुखोई विमानों का उत्पादन भी एचएएल ही करती है। तेजस-I ए सुखोई-30 से इसलिए महंगा है क्योंकि इसमें इस्राइल में विकसित राडार जैसे आधुनिकम उपक्रम जोड़े गए हैं। ये आठ-नौ टन का वजन उठा सकते हैं। इसके अलावा ये ध्वनि की गति यानी मैक 1.6 से लेकर 1.8 तक तेजी से उड़ सकता है, वो भी 52 हजार फीट की ऊंचाई तक। इसमें राडार के अलावा, वियांड विजुअल रेंज मिसाइल, इलैक्ट्रानिक वारफेयर सुइट और एयर टू एयर रिफयूलिंग  की व्यवस्था है। तेजस दूर से ही दुश्मन के विमानों पर निशाना साध सकता है और दुश्मन के राडार काे भी धोखा देने में सक्षम है। तेजस उतने ही हथियार और मिसाइल लेकर उड़ सकता है, जितना इससे ज्यादा वजन वाला सुखोई विमान। ये विमान भारत का पहला स्वदेशी लड़ाकू विमान है जिसमें 50 फीसदी से ज्यादा कलपुर्जे भारत में ही निर्मित हैं। 
जब तक पूरी खेप तैयार होगी, तब स्वदेशी कलपुर्जों का प्रतिशत 60 फीसदी पहुंच जाएगा। स्वेदशी लड़ाकू विमान तेजस आतंकी ठिकानों पर बालाकोट जैसी सर्जिक स्ट्राइक को अंजाम देने में मददगार साबित होगा। पाकिस्तान द्वारा चीन से उधार मांगी गई प्रौद्योगिकी से निर्मित जेएफ-17 लड़ाकू विमान गुणवत्ता, क्षमता और सूक्ष्मता में तेजस के सामने कहीं नहीं टिक सकता। तेजस और जेएफ-17 लम्बी दूरी की मार करने वाली मिसाइलों से लैस है। तेजस से भारतीय वायुसेना की शक्ति में काफी बढ़ौतरी हाेगी। वैसे भारतीय वायुसेना में लड़ाकू विमानों की संख्या पाकिस्तानी वायुसेना की तुलना में बहुत ज्यादा है। भारत में इनकी संख्या 2 हजार से ज्यादा है जबकि पाकिस्तान के पास ये 900 के ही करीब है। भारतीय वायुसेना को नए लड़ाकू विमानों की जरूरत थी क्योकि मिग-21 लड़ाकू विमानों को एक तरह से विदाई दे दी गई है और एक-एक करके उन्हें हटाया जा रहा है। यद्यपि तेजस के आर्डर देने में देरी जरूर हुई है लेकिन देर आयद दुरुस्त आयद।
सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी द्वारा भारतीय वायुसेना के लिए स्वदेशी तेजस विमानं की खरीद की अनुमति देना रक्षा उत्पादों में आत्मनिर्भरता की ओर बड़ा कदम है। चीन और पाकिस्तान से लगातार मिल रही चुनौतियों के बीच यह सौदा गेम चेंजर हो सकता है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि एचएएल ने पहले ही नासिक और बेंगलुरु में लड़ाकू विमानों के निर्माण के लिए अतिरिक्त व्यवस्था तैयार कर ली है ताकि तय समय सीमा के भीतर ही इन विमानों की आपूर्ति वायुसेना को हो सके। इससे 50 हजार के करीब रोजगार के अवसर सृजित होंगे। इसके निर्माण और डिजाइन में सूक्ष्म, लघु और मध्यम श्रेणी के कई उद्योग भूमिका निभाएंगे। इन सैकड़ों कम्पनियों के एचएएल के साथ काम करने से देश में रक्षा उत्पादन कार्य संस्कृति विकसित होगी। 2020 में केन्द्र सरकार ने एक सौ से अधिक रक्षा उत्पादों के आयात पर रोक लगाकर उन्हें देश में ही तैयार करने का फैसला किया था, यह कदम उसी दिशा में उठाया गया कदम है।
भारत रक्षा उत्पादों में आत्मनिर्भर बने इससे बड़ी बात और कोई हो ही नहीं सकती। अब तक भारत दुनिया के सर्वाधिक हथियार खरीदने वाले देशों में दूसरे नम्बर पर है। इससे दूसरे देशों पर निर्भरता कम होगी और विदेशी मुद्रा की बचत भी होगी। अब जबकि भारत 7 देशों को आकाश मिसाइल का निर्यात करने जा रहा है और इस बात की उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले वर्षों में भारत में रक्षा उपकरणों के उत्पादन में ऐसी कार्य संस्कृति विकसित हो जाएगी, जिसमें हम हथियारों के आयात से निर्यातक बन जाएंगे।
‘‘उस सरहद काे कोई छू नहीं सकता,
जिस सरहद पर निगेहबान हो आंखें।’’ हमारी सेना कितनी सतर्क है यह उसने डोकलाम और लद्दाख में चीन काे दिखा दिया है। भारतीय सेना की शक्ति बढ़ेगी तो वह हमारी संप्रभुता की रक्षा में मददगार होगी बल्कि हमारी विदेश नीति भी प्रभावशाली रहेगी। अब जबकि चीन रक्षा उत्पादों और आधुनिकतम प्रौद्योगिकी में पूरी दुनिया को चुनौती दे रहा है, उसके संतुलन के लिए भारत का रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर होना जरूरी भी है। अब युद्ध का स्वरूप बदल गया है। आने वाले समय में साइबर और सैटेलाइट युद्ध का होगा। तेजस का तेज भारतीय वायुसेना को तभी मिलेगा जब एचएएल पुरानी गलतियां न दोहराकर समय पर इन ​विमानों की आपूर्ति करे। तेजस विमानों की परियोजना 1983 में शुरू की गई थी, तब इसकी कुल लागत 560 करोड़ रुपए थी। तेजस ने जो सैंपल तैयार किया था उसने अपनी पहली उड़ान 2001 जनवरी में भरी लेकिन औपचारिकताएं पूरी करने में काफी समय लगा। इस विमान को 2016 में भारतीय वायुसेना के स्क्वाड्रन में शामिल किया जा सकता था। यह एचएएल कम्पनी के विस्तार का मौका भी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार एचएएल समय पर विमानों का निर्माण कर अपनी क्षमता का परिचय देगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।