बंद हों खाप पंचायतों के तुगलकी फरमान - Punjab Kesari
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बंद हों खाप पंचायतों के तुगलकी फरमान

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इंटरनेट के युग में जब धर्म, जाति की ही नहीं बल्कि देशों की भी सीमाएं टूट रही हों, हर साल हजारों अंतर्जातीय शादियां हो रही हों उस दौर में आखिर आदिम बर्बर पंचायतों और उनके तालिबानी पंचों का अस्तित्व क्यों है? निश्चित रूप से इसकी बहुत बड़ी वजह है सियासत और समाज में महिलाओं की स्थिति दोयम दर्जे की होना। खाप पंचायतों ने खुलेआम संविधान की धज्जियां उड़ाई हैं,

उसकी व्यवस्था का मजाक बनाया है लेकिन सरकार किसी भी दल की हो या कोई भी राजनीतिक दल इन बर्बर जातिवादी पंचायतों के विरुद्ध कड़ी और सबक सिखाने वाली कार्यवाही नहीं करता। ऐसा इसलिए हुआ कि सभी राजनीतिक पार्टियों को वोट बैंक खो देने का खतरा है। क्योंकि ये क्रूर पंचायतें बड़े वोट बैंक को प्रभावित करती हैं इसलिए सरकारें और सियासी पार्टियां इनके विरुद्ध कार्यवाही करने का आश्वासन तो देती रहती हैं लेकिन ये आश्वासन कभी व्यावहारिक हकीकत में तब्दील नहीं होते। इससे खाप पंचायतों का हौसला बुलंद रहता है। इन खाप पंचायतों के काले कारनामों के कारण हर वर्ष देशभर में कई हत्याएं आैर आत्महत्याएं हो रही हैं।

जिस तरह धर्मनिरपेक्षता की गंदी राजनीति के कारण देश में अल्पसंख्यक कट्टरवाद एवं सांप्रदायिकता बढ़ती जा रही है तथा अल्पसंख्यक टापू जैसे राज्य बनते जा रहे हैं, उसी तरह सामाजिक न्याय की गंदी राजनीति के कारण सारा देश खाप पंचायतों की अराजकता से ग्रस्त होता गया। पिछले कुछ वर्षों में हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतों ने ऐसे-ऐसे फरमान सुनाए जिसे आज का आधुनिक और सभ्य समाज कभी सहन नहीं कर सकता। 21वीं सदी में भी खाप पंचायतें पुराने दकियानूसी प्रवृत्ति को लागू रखना चाहती हैं आैर जात-बिरादरी को आगे लाकर महिलाओं के अधिकारों को पांव तले कुचलना अपना सामाजिक दायित्व मानती हैं मगर इस मानसिकता का आज की सदी की नई पीढ़ी से कोई लेना-देना नहीं है।

नई पीढ़ी के वक्त के साथ चलने के अंदाज से पुरानी पीढ़ी को अपनी परम्परा के टूटने का खतरा पैदा हो जाता है और वह हमारी पुरानी पंचायत प्रणाली के सहारे अपने हुक्म जारी करके इसे रोकने का प्रयास करती है। एक ही गौत्र में लड़का-लड़की के शादी करने पर उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है। पंचायतों का गुस्सा सिर्फ लड़के-लड़की पर नहीं फूटता बल्कि उनके मां-बाप को भी सजा दी जाती है। ऐसे परिवारों का हुक्का-पानी बंद कर दिया जाता है। सवाल यह है कि समाज अभी भी सदियों पुरानी जात-बिरादरी आैर धर्म की दकियानूसी बेड़ियों में क्यों जकड़ा हुआ है। अगर कोई ऐसी बेड़ी को तोड़ने की कोशिश करता है तो उसके साथ बर्बर सलूक किया जाता है।

हताश करने वाली बात यह है कि पुलिस प्रशासन के तमाम चौकन्ने होने के दावों के बावजूद इन आदिम उसूलों वाली जातीय पंचायतों का न सिर्फ बेखौफ वजूद मौजूद है अपितु ये ज्यादातर बार अपने बर्बर फैसलों पर खौफनाक ढंग से अमल भी कर रही हैं। खाप पंचायतों और समाज के खौफ से लोग अपनी बेटियों की हत्या कर देते हैं। ऑनर किलिंग के अनेक मामले सामने आते रहे हैं। देश की शीर्ष अदालत ने खाप पंचायतों के अस्तित्व पर कई बार सवाल उठाए हैं। ऑनर कि​लिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने खाप पंचायत को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। इस फैसले के तहत खाप पंचायत द्वारा दो वयस्कों की शादी रोके जाने को गैर-कानूनी बताया गया है और इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक गाइड लाइन भी जारी की और कहा है कि यह तब तक जारी रहेगी जब तक इस पर कोई कानून नहीं आ जाता। सुप्रीम कोर्ट ने खाप पंचायतों द्वारा शादीशुदा जोड़ों की शादी तोड़ने के फैसले पर सुनवाई करते हुए इसे गैर-कानूनी करार दिया है।

सुनवाई के दौरान कहा गया है कि खाप या किसी भी समूह के लोगों द्वारा किसी शादीशुदा जोड़े की शादी में दखल देने की कोशिश करना, उस पर रोक लगाना गैर-कानूनी है। केन्द्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि ऑनर कि​लिंग को आईपीसी में हत्या के अपराध के तहत कवर किया जाता है। ऑनर कि​लिंग को लेकर लाॅ-कमीशन की सिफारिश पर विचार हो रहा है, इस पर 23 राज्यों के विचार मिले हैं। सभी राज्यों को हर जिले में ऑनर किलिंग को रोकने के लिए स्पैशल सेल बनाने के निर्देश जारी किए गए हैं।

अहम सवाल यह है कि जातिवादी पंचायतों के हिटलरी अस्तित्व और तालिबानी कृत्य क्या इससे बंद हो जाएंगे? ऐसी जातिवादी पंचायतें जातीय शुद्धता, एकता और भाईचारे का ढोंग करती हुई दिखती हैं। पंचायतों की बागडोर ऐसे हाथों में होती है जो जाति, गौत्र और परम्परा के नाम पर अपनी मनमानी बरकरार रखने के लिए तुगलकी फरमान जारी करते हैं। ऐसी पंचायतों का विरोध स्वयं समाज को करना होगा। भारतीय संविधान में सबको अपने मन-मुताबिक जीने, रहने और संबंधों का अधिकार है तो फिर खाप पंचायतें कौन होती हैं लोगों के जीवन में हस्तक्षेप करने वाली। सामाजिक व्यवस्था के नाम पर समानांतर अदालतें लोकतंत्र के लिए नुक्सानदेह हैं। देश के लोग स्वयं विचार करें कि क्या ऐसा होना सही है या गलत। आधुनिक समाज में खाप पंचायतों के तुगलकी फरमान असहनीय हैं।

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