तबले ने खो दिया ‘उस्ताद’ - Punjab Kesari
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तबले ने खो दिया ‘उस्ताद’

संगीत रत्नों में से एक तबला वादक जाकिर हुसैन अब हमारे बीच में नहीं रहे।

भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में लोकप्रिय कलाकार और संगीत रत्नों में से एक तबला वादक जाकिर हुसैन अब हमारे बीच में नहीं रहे। अमेरिका के सैन फ्रांस्सिको के अस्पताल में उन्होंने 73 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली। इसके साथ ही संगीत की दुनिया में तबले की एक बेमिसाल थाप शांत हो गई। ​जाकिर हुसैन संगीत की दुनिया के वो सितारा थे ​जिनकी चमक को शब्दों में प्रभावित करना असंभव है। तबले पर उनकी उंगलियों की​ थिरकन कभी हमें बारिश की रिमझिम का अहसास दिलाती थी तो कभी आकाशीय बिजली की गर्जन का अहसास करती थी। उनके तबले की थाप से कभी भावनाएं नदी के प्रवाह की तरह बहने लगती थी तो कभी दिल की धड़कनें तेज हो जाया करती थी। उनकी उंगलियों की थिरकन आत्मा को छू जाती थी और सुनने वाला यह कह उठता था ‘वाह उस्ताद वाह’ उनके पिता उस्ताद अल्लारखा खान भी तबले के महान उस्ताद थे और उन्होंने ही अपने बेटे को तबले की सारी विधाएं बताई थी। यह सही है कि जाकिर हुसैन को संगीत विरासत में मिला लेकिन उन्होंने अपनी प्रतिभा से उसे नई ऊंचाईयां दी हैं।

जाकिर हुसैन ने अपने करियर की शुरूआत छोटी उम्र में कर दी थी। वे 11 साल की उम्र में स्टेज प्रोग्राम करने लगे थे। उन्होंने न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत में बल्कि पश्चिमी संगीत में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था। उन्होंने पंडित रवि शंकर, उस्ताद अली अकबर खान, पंडित शिवकुमार शर्मा और हरिप्रसाद चौरसिया जैसे दिग्गज संगीतकारों के साथ काम किया। उनकी अंतर्राष्ट्रीय पहचान तब बनी जब उन्होंने यो-यो मा, जॉन मैकलॉफलिन और मिकी हार्ट जैसे प्रसिद्ध पश्चिमी कलाकारों के साथ शो किए। पिता के साथ-साथ उन्होंने उस्ताद विलायत हुसैन खान और उस्ताद लतीफ अहमद से भी तबले की तालीम ली। उन्होंने बतौर अभिनेता 12 फिल्मों में भी काम किया लेकिन उनको संतुष्टि और शोहरत तबला वादन से ही मिली। उनका ताल्लुक तबला वादन के ​लिए मशहूर पंजाब घराने से रहा। 4 फरवरी 2023 को उन्होंने एक ही रात में दुनियाभर में प्रतिष्ठित तीन ग्रैमी अवार्ड जीत ​लिए उन्होंने दो अन्य ग्रैमी अवार्ड भी जीते। वह ऐसा कमाल करने वाले पहले भारतीय रहे।

जाकिर हुसैन को सबसे कम उम्र में देश के नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। बाद में उन्हें पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया। उनको कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा जाता रहा। वह पहले भारतीय संगीतकार थे जिन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की उपस्थि​ति में व्हाइट हाउस में अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका मिला। भले ही उन्हें दुनियाभर में शोहरत मिली लेकिन एक अमर गीत ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ ने उन्हें हर भारतीय के घर-घर तक पहुंचा ​दिया। तबले को उसके पारंपरिक शास्त्र से निकाल कर उसे ग्लोबली मशहूर करने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने बहुत सारे प्रयोग किए। भारतीय तबला और अमेरिकी जैज को लेकर उन्होंने जो प्रयोग किया, संगीत और ताल शास्त्र की दुनिया में इसे न केवल बेहद सम्मानित नजर से देखा जाता है बल्कि अद्वितीय भी माना जाता है। यह प्रयोग उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि साबित हुआ।

जाकिर हुसैन हर साज को एक प्रेरणा मानते थे। वे मानते थे कि साज की भी अपनी जुबान और आत्मा होती है। वे अक्सर कहते थे कि संगीत सरस्वती का वरदान है। शिवजी का डमरू या गणेश जी का पखावज या ​फिर कृष्ण की बांसुरी हिन्दोस्तान पर इन सबका आशीर्वाद है तो स्वाभाविक है इसमें आत्मा तो होगी ही। संगीत की भाषा धर्मनिरपेक्ष है क्योंकि संगीत सबसे पवित्र है। नाद ब्रह्म यानि ध्वनि ईश्वर है। आजादी से पहले तो संगीत राजमहलों तक सीमित था। मंच पर इसे कैसे पेश ​किया जाना है यह जाकिर हुसैन बखूबी जानते थे। उन्हें तबले से इतनी मोहब्बत थी कि वह तबले को गोद में लेकर सो जाया करते थे। हवाई यात्रा में भी वह तबले को गोद में लेकर यात्रा करते थे। तबला उनके लिए सरस्वती समान रहा। वे इस बात का ध्यान रखते थे कि किसी का पांव तबले को न छू जाए। उनके हेयर स्टाइल को भी लोगों ने बहुत अपनाया।

उन्होंने ​कुछ फिल्मों के अलावा अमेरिकी धारावाहिकों में भी काम किया। उन्होंने खुद को कई मौके भी दिए। 40 फिल्मों में संगीत भी दिया। इतना काम करने के बावजूद उन्होंने खुद को अभिनेता की बजाय बेहतरीन तबला वादक ही पाया। शक्ति नामक विश्व ​प्रसिद्ध बैंड के जरिए उन्होंने भारतीय और पश्चिमी संगीत के बेजोड़ संगम को पेश किया जिसकी दुनिया दीवानी हो उठी। इतनी शोहरत प्राप्त करने के बावजूद जाकिर हुसैन ने कभी खुद को उस्ताद नहीं माना और एक शागिर्द की तरह हर रोज नया सीखा और उसे पेश किया। रागों की ताल और लय के ​साथ तबले पर कभी थिरकती, कभी तैरती और कभी उड़ती हुई जा​किर हुसैन की उंगलियां संगीत का एक जादू पैदा करती रही। वह एक किंवदंती थे जो भारत के तो अपने थे लेकिन पूरी दुनिया के थे। भारत को भविष्य में ऐसा कोई उस्ताद मिलेगा यह कहना मुश्किल है। उस्ताद जाकिर हुसैन हमेशा हमारे दिलों में याद रहेंगे।

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