अटल जी के जीवन के कुछ अनछुए पहलु - Punjab Kesari
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अटल जी के जीवन के कुछ अनछुए पहलु

‘भारत रत्न’ श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की आज 100वीं जयंती है।

‘भारत रत्न’ श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की आज 100वीं जयंती है। इन सौ सालों में से लगभग पचास साल मुझे किसी न किसी रूप में उनके साथ रहने का सौभाग्य मिला। इन दिनों मैं प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री के अपने कार्यकाल के अटल जी के साथ संस्मरण लिख रहा हूं। जैसे-जैसे मुझे उनकी याद आ रही थी, मेरी आंखें नम हो रही थी। मैं अकेला नहीं हूं जिसके दिल में अटल जी हैं। पूरे देश और समाज में असंख्य लोग और विशेष रूप से युवा हैं, जिनके दिल में अटल जी समाए हुए हैं। याद है मुझे, जब रामलीला मैदान में उनको सुनने के लिए हम घर से पैदल रामलीला मैदान तक चले जाते थे। उन दिनों कोई बसों में लोग भर कर लाने की जरूरत नहीं होती थी। स्वयं लोग उनके आकर्षण से खिंचे जाते थे। भाषण करते हुए कब वो लोगों को रूला दते थे और कब हंसा देते थे, पता ही नहीं चलता।

हम तब सोचा करते थे कि जब अटल जी प्रधानमंत्री होंगे और लाल किले से हाथ हिला-हिला कर भाषण दे रहे होंगे, तब कितना आनन्द होगा। नियति देखिए, अटल जी ने लाल किले से छह भाषण दिए और छह के छह पढ़कर दिए। जबकि हम उन्हें कहते थे, सारी उम्र आपने बिना पढ़े भाषण दिए हैं, फिर लाल किले से पढ़कर क्यों। कम ही लोगों को पता है कि प्रधानमंत्री अटल कम से कम एक हफ्ते तो लाल किले के भाषण का अभ्यास करते थे। मुझे पता है क्योंकि उस समय मैं भी उनके साथ होता था। अटल जी की मंद मुस्कान मोह लेती थी। अटल जी हर व्यक्ति को पूरा समय देकर ध्यान से सुनते। अक्सर मैं मुख्यमंत्रियों के मिलने के समय उनके साथ होता तो देखता था कि अटल जी कम बोलते थे और सुनते ज्यादा थे। फिर भी उनकी एक मुस्कान सामने वाले को पूरी तसल्ली देती थी। एक बार मैंने उनसे पूछा, आपको गुस्सा नहीं आता। उन्होंने तपाक से जवाब दिया, ‘बहुत आता है।’ पर मैंने उनको कभी गुस्सा करते देखा नहीं था।

मैंने पाया कि उनके मन में सदैव मेरे लिए एक विशेष स्नेह था। मैं किसी भी कार्यक्रम में उन्हें निमंत्रित करने जाता तो, वे पहले मना करते और जब बारम्बार आग्रह करता तो आखिर में मान जाते। जब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ का अध्यक्ष था और वह जनता पार्टी के शासन में विदेश मंत्री, स्वामी विवेकानंद की मूर्ति के शिलान्यास के कार्यक्रम के लिए मैंने उनको आमंत्रित किया। सभागार खचाखच भरा था, कुर्सियां टूट गई। रात को विदेश मंत्री अटल जी का फोन आया, ‘भई कुर्सियों का खर्चा आपको ही भरना होगा।’ अटल जी खाने के बहुत शौकीन थे। चांदनी चौक के परांठे और जलेबी उनके मनपसन्द व्यंजनों में से था। वैसे खाने में उनको मछली, चाइनीज और खिचड़ी भी पसन्द थी। इतना ही शौक उनको फिल्में और नाटक देखने का भी था। एक बार आडवाणी जी को हमने एक फिल्म ‘1942 लव स्टोरी’ देखने के लिए निमंत्रित किया।

आडवाणी जी ने आखिरी वक्त पर मना कर दिया। हमें पता चला कि अटल जी बाहर से दिल्ली एयरपोर्ट पर आ रहे हैं। हमने उनको मनाया और उन्होंने बड़े मन से फिल्म देखी। ऐसे ही एक बार हम उनको ‘हाईजैक कर ‘कोर्ट मार्शल’ नाटक दिखाने ले गए। एक बार एक फिल्मी कलाकारों का शो कारवां सितारों का आई.जी. स्टेडियम में था। वे तब माने, जब उनको पता चला कि सलमा आगा भी गाएंगी, वे गए, पर अफसोस सलमा आगा ने उस दिन नहीं गाया। कविताएं उनकी कमजोरी थी। किसी ने भी कभी भी, किसी भी कार्यक्रम में कविता सुनाने की फरमाइश कर दी तो वो प्रधानमंत्री होते हुए भी बड़े शौक से सुनाते थे। कइयों ने तो उनकी कविताओं का अलग-अलग भाषा में अनुवाद भी कर दिया। उनकी पहली पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताओं जिसका विमोचन प्रधानमंत्री नरसिंहा राव ने किया। उसके आयोजन की जिम्मेदारी उन्होंने मुझे ही सौंपी थी।

अटल जी जितने शांत स्वभाव, सादगी पसन्द नेता थे, उतने ही अटल इरादे वाले भी थे। प्रधानमंत्री बनने पर 23 दलों के गठबन्धन की सरकार वे ही चला सकते थे। केवल दूसरे दलों से ही नहीं, अपनों से भी उन्हें कम समस्याएं नहीं थीं। कम लोग जानते हैं कि दो बार तो उन्होंने त्याग पत्र देने का भी मन बना लिया था। वे सबके मत, समस्याएं और विचार संजीदगी से सुनते थे। प्रधानमंत्री कार्यालय में उन्होंने मुझे कई जिम्मेदारियां दे रखी थी। मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला। एक बार मैं अटल जी को बताकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि से मिलने गया। इस पर पार्टी के कुछ नेताओं ने आपत्ति कर अटल जी से शिकायत की। अटल जी ने यह कह कर विवाद को टाल दिया, ‘आप विजय गोयल को जानते हैं, वह सुनता कहां है। ऐसे ही 1999 में जब एनडीए की घटक तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के बारे में लगता था कि वे सरकार से समर्थन वापिस ले लेंगी, तब मैंने जयललिता के लिए अपने घर पर एक भोज का आयोजन किया। अटल जी ने पहले तो मना कर दिया, पर बाद में वे इस भोज में शामिल हुए।

अब के प्रधानमंत्री मोदी जी भी उस दिन आए थे, तब वे पार्टी के महामंत्री थे। अटल जी मुझे पहले तो अपना संसदीय सचिव बनाना चाहते थे। फाईल भी तैयार हो गई थी, पर बाद में उन्होंने मुझे अपने साथ प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री बनाया मेरे युवा होने के कारण, जिसका विरोध उस समय दिल्ली के स्थानीय नेताओं ने किया। जब मैंने इसका जिक्र उनसे किया, तो अटल जी ने कहा, ‘यह तुम्हारी चिन्ता का विषय नहीं है, तुम अपना काम ईमानदारी से करते रहो। मुझे पहले ही संदेश दिया गया था कि यह ईर्ष्या का पद है, अतः तुम्हें सहजता से काम करना है। प्रधानमंत्री कार्यालय में उन्होंने मुझे कई काम सौंपे। लोकसभा और राज्यसभा सदन में प्रधानमंत्री से जुड़े प्रश्नों का जवाब देना, अपनी लोकसभा लखनऊ का दायित्व, जन लोक शिकायत विभाग, सभी राज्यों से जुड़े इन सम्बन्धित सभी विषय को मैं देखता था।

सम्बन्धित विषयों को लेकर मुझे अक्सर दूसरे राज्यों का दौरा करना पड़ता था। राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम के राष्ट्रपति पद के लिए नाम तय होने के बाद अटल जी ने व्यक्तिगत रूप से उन्हें सूचित करने के लिए मुझे चेन्नई भेजा था। अटल जी के साथ मेरे हर दिन के संस्मरण हैं। अक्सर हवाई यात्राओं में प्रधानमंत्री के साथ जाने का मुझे अवसर मिलता, तो खूब गपशप होती। ऐसे ही उन्होंने व्यक्तिगत जीवन से जुड़े सभी प्रश्नों का बेबाक जवाब हंसते-हंसते दिया, जिसे मैंने मीडिया के साथ साझा भी किया। अटल जी जैसे महापुरुष कभी-कभी पैदा होते हैं। सच में तो वे राजनेता के साथ-साथ एक अच्छे इंसान थे जो कम ही लोग होते हैं। उनकी 100वीं जयंती पर शत-शत प्रणाम।

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