कुछ देश सोशल मीडिया के जरिये मनोवैज्ञानिक युद्ध में अपने संसाधनों को झाेंक रहे हैं। सोशल मीडिया के जरिये छेड़ी गई जंग सस्ती पड़ रही है। आज संवाद का तरीका बदल गया है। सम्भव है कि भविष्य में भौगोलिक सीमाओं का महत्व ही खत्म हो जाए। सोशल मीडिया से जुड़ी आबादी की संख्या किसी एक देश की जनसंख्या से भी ज्यादा है। ऐसे में सूचना के प्रसार की प्रक्रिया पर नए सिरे से गौर किए जाने की जरूरत है। डोकलाम के गतिरोध के दौरान चीन की ओर से भारत को धमकियां देने के लिए सोशल मीडिया के इस्तेमाल की खूब चर्चा हुई थी। भारत में इस रणनीति काे बेशक नाकाम माना जाता रहा है। चीन और पाकिस्तान में सेना को सोशल मीडिया से जोड़ने की प्रक्रिया भारत से काफी पहले शुरू कर दी गई थी। डोकलाम विवाद के बाद चीन ने सोशल मीडिया की ताकत का जमकर इस्तेमाल किया। सोशल मीडिया पर ढेरों ऐसे आर्टिकल, पोस्ट और ट्वीट दिखाई दिए थे जो उसकी सोच को सामने रख रहे थे। यदि चीन और पाकिस्तान की सेना सोशल मीडिया को हथियार बना सकती हैं तो फिर भारतीय सेना क्यों नहीं?
भारतीय सेना के जवानों को सोशल मीडिया के इस्तेमाल की अनुमति को लेकर काफी बहस होती रही है लेकिन सेनाध्यक्ष विपिन रावत ने स्पष्ट कर दिया है कि ‘‘आज के दौर में क्या किसी सैनिक को स्मार्ट फोन से दूर रखा जा सकता है? अगर ऐसा नहीं हो सकता तो बेहतर यही होगा कि उन्हें स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करने दिया जाए लेकिन इसके साथ अनुशासन को लागू करना अहम है।’’ हमारे विरोधी और दुश्मन सोशल मीडिया को हमारे खिलाफ मनोवैज्ञानिक युद्ध आैर छलावे के लिए इस्तेमाल करेंगे, हमें भी इसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना होगा। सेनाध्यक्ष ने यह भी कहा कि आजकल होने वाले युद्ध में जानकारी जुटाने वाला युद्ध महत्वपूर्ण है और इसके तहत आर्टििफशियल इंटेलीजेंस की चर्चा की जा रही है। अगर हम आर्टििफशियल इंटेलीजेंस को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं तो हमें आवश्यक रूप से सोेशल मीडिया का प्रयोग करना होगा।
भारतीय सेना के जवानों के सोशल मीडिया के इस्तेमाल को लेकर विवाद उस समय खड़ा हुआ था जब जम्मू-कश्मीर में तैनात सीमा सुरक्षा बल के जवान तेज बहादुर यादव ने फेसबुक पर वीडियो डालकर बवाल मचा दिया था। फौजियों को मिलने वाले खाने की गुणवत्ता को लेकर चर्चा ने जोर पकड़ लिया था। देशवासियों ने इस पर ठीक से प्रतिक्रिया भी नहीं दी थी कि एक और ऐसा वीडियो आ गया था। सीआरपीएफ में कार्यरत कांस्टेबल जीत सिंह ने फेसबुक आैर यू-ट्यूब पर वीडियो डाला था, जिसमें सुविधाओं की कमी और सेना-अद्धसैनिक बलों के बीच भेदभाव की बात कही गई थी। फिर तीसरा वीडियो वायरल हुआ जिसमें भारतीय सेना के जवान लांस नायक यज्ञ प्रताप सिंह ने आरोप लगाया था कि अधिकारी जवानों का शोषण करते हैं। तीनों ने ही मौजूदा दौर के सबसे असरदार हथियार सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया। इसके बाद सरकार और सेना के आलाकमान ने शिकायत तंत्र को दुरुस्त बनाने के आदेश दिए थे। सोशल मीडिया का दूसरा पहलू भी है कि देश की सुरक्षा जैसे संवेदनशील मामलों से जुड़े रहने के कारण जवानों के लिए अनुशासन से जुड़े सख्त नियम होते हैं और शिकायत करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल कहीं न कहीं इन कायदों का उल्लंघन है।
अगर यह चलन जारी रहता है तो मुश्किल हो सकती है। इतनी बड़ी फौज में अगर हजारों जवान सोशल मीडिया में चीजें डालने लगे तो अनुशासन बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा। सेना हर वर्ष जवानों को एडवाइजरी जारी करती है जिसमें सख्त अनुशासन की हिदायतें दी जाती हैं। अब तो जवानों को एक व्हाट्सएप नम्बर दिया गया है, जिसमें वे अपनी शिकायत सीधे सेनाध्यक्ष तक पहुंचा सकते हैं। अब तो सेना ने भी सोशल मीडिया की धमक को महसूस किया है। हर रोज सुबह 9 बजे सोशल मीडिया की रिपोर्ट पर चर्चा की जाती है और फिर सेना की टीम नकारात्मक संदेशों को काउंटर करती है तथा सकारात्मकता को प्रमोट किया जाता है। याद कीजिये जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक की थी तो सेना ने खुद मीडिया के सामने इस कार्रवाई का खुलासा किया था। एलओसी पर नौशेरा सैक्टर में की गई कार्रवाई से संबंधित 30 सैकिंड का वीडियो भी जारी किया था।
यह वीडियो इतना वायरल हुआ कि देशवासियों ने भारतीय सेना के शौर्य की जमकर सराहना की। कुछ राजनीितज्ञों की आलोचनात्मक टिप्पणियों को छोड़ दें तो हर भारतीय ने गौरव महसूस किया। लोगों ने भारतीय सेना काे सलाम किया था। बेहतर होगा कि भारतीय जवानों को सोशल मीडिया के इस्तेमाल की ट्रेनिंग दी जाए कि अनुशासन में रहकर सोशल मीडिया को दुश्मन के खिलाफ हथियार कैसे बनाया जा सकता है। सेना में नियम तो पहले से ही तय हैं। सरकार आैर सेना दोनों को सोशल मीडिया का इस्तेमाल आतंकवाद के प्रोपेगंडा काे निष्फल करने के लिए करना चाहिए। पाकिस्तान और आतंकवादी संगठन सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय हैं, उनको मुंहतोड़ जवाब देने के लिए दक्ष लोगों की जरूरत है। रक्षा मंत्रालय काे देखना होगा कि पाकिस्तान सेना का इंटरसिर्वस पब्लिक रिलेशन विभाग किस प्रकार काम करता है। दूसरी तरफ चीन की पीपल लिबरेशन आर्मी का रक्षा का कूटनीतिक संचार वहां की नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी करती है और इसी प्रकार विश्व की और सेनाएं भी करती हैं परन्तु हमारे यहां ऐसा नजर नहीं आता। जवानों को चाहिए कि वे ‘हनीट्रेप’ से दूर रहें और सोशल मीडिया काे अपना हथियार बनाएं।