किसी भी सभ्य समाज की स्थिति का आंकलन उस समाज में महिलाओं की स्थिति को देखकर किया जा सकता है। समय के साथ-साथ भारतीय समाज में अनेक परिवर्तन आते गए लेकिन प्रगति के बावजूद महिलाओं की स्थिति में दिन-प्रतिदिन गिरावट देखने को मिल रही है। भारतीय समाज में जैसे-जैसे आधुनिकता का विस्तार हुआ वैसे-वैसे महिलाओं के प्रति संकीर्णता का भाव बढ़ता गया। मानसिकता के विकृत होने से लड़कियों की जघन्य हत्याएं, बलात्कार, अनैतिक व्यवहार, यौन उत्पीड़न और हिंसा जैसे अपराधों में भी निरंतर बढ़ाैतरी होती चली गई। नाबालिग लड़कियों से लेकर नवयौवनाओं और महिलाओं तक आज न घर की चारदीवारी में सुरक्षित हैं न घर की चारदीवारी के बाहर। एक के बाद एक दिल दहला देने वाली वारदातें सामने आ रही हैं।
पिछले वर्ष दिल्ली में श्रद्धा वाल्कर मर्डर केस ने पूरे देश को दहला कर रख दिया था। श्रद्धा वाल्कर की हत्या के सबूत मिटाने के लिए उसके शव के 35 टुकड़े कर उसके लिव-इन पार्टनर आफताब ने जगह-जगह फैंक दिए। इस हत्याकांड का खुलासा होने के बाद एक के बाद एक क्रूरतम हत्याकांड सामने आते गए। अब दिल्ली के शाहबाद डेयरी क्षेत्र में 16 वर्षीय लड़की साक्षी की क्रूरतम ढंग से हत्या किए जाने का मामला सामने आया है। उसके दृश्यों को दिमाग से निकालना आसान नहीं होगा। एक गली में मोहम्मद साहिल नाम के युवक ने लड़की को 16 बार चाकुओं से गोदा। इतने में भी उसका दिल नहीं पसीजा तो पत्थर मार-मार कर लड़की का सिर कुचल दिया। हत्याकांड की सीसीटीवी फुटेज देखने पर पता चलता है कि लोग गली से गुजर रहे हैं। कुछ देखकर भी मूकदर्शक बने हुए हैं। कुछ लहूलुहान पड़ी लड़की को देखकर भी अंजान बनकर आगे बढ़ रहे हैं। किसी ने भी वहां एक पल ठहरना भी गवारा नहीं समझा। एक व्यक्ति ने जरूर हत्यारे को रोकने की कोशिश की लेकिन वह भी दोबारा साहस नहीं जुटा पाया। मौके पर किसी ने भी कोई शोर नहीं मचाया। किसी ने पुलिस को सूचित नहीं किया।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि समाज संवेदनहीन हो चुका है और इंसान मानवता, दया, संवेदनशीलता जैसे गुणों से क्षीण हो चुका है और मानवीय संबंध तितर-बितर होकर बिखर चुके हैं। शाहबाद डेयरी गली में 35 मिनट तक लड़की की लाश पड़ी रही तब जाकर किसी ने पुलिस को सूचना दी। विडम्बना यह है कि समाज हो या राजनीतिक दल इस तरह की हत्याओं में हिन्दू-मुस्लिम एंगल तलाश लेते हैं। श्रद्धा वाल्कर हत्याकांड की ही तरह साक्षी हत्याकांड में भी हिन्दू-मुस्लिम एंगल ढूंढ लिया गया है। कोई इसे लव जेहाद बता रहा है तो कोई इसके लिए दिल्ली में खस्ताहाल कानून व्यवस्था की स्थिति को जिम्मेदार बता रहा है। कोई इसका ठीकरा दिल्ली पुलिस के ऊपर फोड़कर अपना पल्ला झाड़ रहा है। सरकार और पुलिस को जिम्मेदार ठहराना एक आदत बन चुकी है। कोई इस तरफ नहीं सोचता कि कड़े से कड़े कानून बनाए जाने के बावजूद हैवानियत क्यों नहीं रुक रही।
इस सवाल के प्रति समाज उदासीन है। जब समाज ही उदासीन हो तो फिर बेटियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा। अक्सर देखा गया है कि परोपकारी और संवेदनशील समझा जाने वाला भारतीय समाज स्वार्थ की भावना से ग्रस्त हो चुका है। सड़क हादसों में अगर कोई घायल सड़क के किनारे पड़ा हो तो लोग मुंह फेर कर चले जाते हैं या फिर तमाशबीन बनकर जमघट लगा लेते हैं। बसों में देखा गया है कि लोग महिलाओं के साथ छेड़छाड़ देखकर भी खामोशी धारण कर लेते हैं। किसी भी दुर्घटना के मौके पर घायलों की मदद करने की बाजय मोबाइल से वीडियोग्राफी कर वीडियो वायरल करने वाले लोग ज्यादा होते हैं। कभी मानवीय संवेदनाओं के मामले में समाज बहुत मजबूत था लेकिन अब यह भावनाएं कुंठित हो चुकी हैं। व्यक्ति खुद पर आई समस्या के लिए दूसरों की मदद की उम्मीद करता है लेकिन जब दूसरों पर मुसीबात आती है तो कोई प्रतिक्रिया नहीं करता। हालात कुछ ऐसे हो चले हैं-
‘‘यह पत्थरों का महानगर है
बर्फ की मानिंद हो चुका है यह महानगर
कोई सर पटक-पटक कर जान भी दे दे
तो कोई उफ नहीं करता।’’
ऐसी स्थिति में साक्षी को बचाने कौन आता। कौन पुलिस कार्रवाई के झमेले में फंसता। समाज बार-बार अपने अधिकारों के लिए जूझता है। छोटी-छोटी बातों के लिए भी आज हर कोई सुप्रीम कोर्ट के द्वार पर दस्तक देता है लेकिन जब लोगों के कर्त्तव्यों की बात आती है तो सब बचकर भागने लगते हैं। सवाल यह भी है कि इस काल खंड में समाज की मानसिकता विकृत क्यों हो रही है। कानून और सरकार से ज्यादा बात संस्कारों की आती है कि मां-बाप अपनी संतानों को कैसे संस्कार देते हैं। आज इंटरनेट पर परोसी जा रही अश्लील सामग्री ने युवाओं के जहन में अत्यधिक उत्तेजना पैदा कर दी है। तभी छोटी बच्चियों से लेकर महिलाओं तक अपराध बढ़ रहे हैं।
सवाल यह भी है कि ऐसी घटनाओं में लव जेहाद को ढूंढा जाए या नहीं। साहिल के हाथ में कलावा और गले में रुद्राक्ष की माला, क्या इससे यह संकेत नहीं मिलते कि वह लव जेहाद की मानसिकता से ग्रस्त था? क्या वह साइको हैै? क्या साक्षी हत्याकांड को भी द केरला स्टोरी की तरह की घटना के रूप में स्वीकार किया जाए? यह प्रश्न विचारणीय है। समाज की जिम्मेदारी बनती है कि अपनी संस्कृति और संस्कारों को पुख्ता किया जाए ताकि परिवारों के बच्चे छोटी उम्र में ही कामुकता की ओर अग्रसर नहीं हों।