सिखों ने 19 बार दिल्ली को फतेह किया - Punjab Kesari
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सिखों ने 19 बार दिल्ली को फतेह किया

सिख फौजों ने वैसे तो दिल्ली को 19 बार जीता है मगर 1783 का वह दिन कभी…

सिख फौजों ने वैसे तो दिल्ली को 19 बार जीता है मगर 1783 का वह दिन कभी भुलाया नहीं जा सकता जब सिख जरनैलों ने दिल्ली फतेह कर लाल किले पर केसरिया निशान साहिब झुलाया और उसी की बदौलत आजादी के बाद देश का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा आज तक झूलता आ रहा है। इतना ही नहीं आज भी अगर देश पर किसी ने बुरी निगाह डालने की कोशिश की तो सिख सबसे आगे की कतार में खड़े होकर उसे मुंहतोड़ जवाब देते हैं। मगर अफसोस तब होता है जब इतिहास की जानकारी ना रखने वाले कुछ नासमझ लोग सिखों की देश भक्ति पर सवाल खड़े करते हुए उन्हंे देशद्रोही का खिताब देने में क्षणभर का भी समय नहीं लगाते। इसमें कुछ हद तक गलती सिख समुदाय की अपनी ही है जो इतने वर्ष बीतने के पश्चात भी आज तक देशवासियों को अपने गौरवमयी इतिहास की जानकारी देने में नाकाम रहे हैं या यह कहा जाए कि किसी ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। कुछ साल पूर्व दिल्ली गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के द्वारा एक पहल करते हुए दिल्ली फतेह दिवस को लाल किला परिसर में मनाते हुए जरनैली मार्च निकाला गया। हालांकि उस समय भी विपक्षी दलों के द्वारा किन्तु-परन्तु करते हुए इसे फिजूल खर्च बताया गया था, पर इसका एक असर जरूर हुआ समूचे देशवासियों को जानकारी मिली कि करीब 9 महीने तक दिल्ली पर सिखों का राज रहा था। कैसे सिख मोरी करके दिल्ली में दाखिल हुए जिसे मोरी गेट का नाम दिया, तीस हजारी में तीस हजार घोड़ों को विश्राम करवाया जहां आज तीस हजारी कोर्ट है, दिल्ली फतेह के बाद जिस पुल पर मिठाईयां बांटी गई उसे पुल मिठाई का नाम दिया गया। हरमीत सिंह कालका और जगदीप सिंह काहलो के द्वारा भी अपनी जिम्मेवारी को निभाते हुए हर साल दिल्ली फतेह दिवस मनाया जा रहा है, इस बार तो दिल्ली की नवनियुक्त मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता, मंत्री मनजिन्दर सिंह सिरसा ने विशेष तौर पर हाजरी भरी।

आतंकियों का कोई धर्म नहीं होता

आतंकियों का वैसे तो कोई धर्म नहीं होता मगर जिस धर्म में भी कट्टरवाद हावी हो जाए वहां आतंकवाद पनपने लगता है। विदेशों में बैठे कुछ लोग जो भारत की एकता और अखण्डता को तार-तार करने पर उतारु हैं उनके द्वारा कट्टरवादी लोगों की पहचान कर उन्हें इस राह पर चलने के लिए मजबूर कर दिया जाता है वरना आम शख्स वह किसी भी धर्म से सम्बन्ध क्यों ना रखता हो कभी किसी की हत्या नहीं कर सकता, क्योंकि कोई भी धर्म इसकी इजाजत नहीं देता। आतंकी संगठनों के द्वारा बार्डर के समीप वाले गांवों के भोले-भाले युवाओं को लोभ- लालच देकर या फिर मजहब के नाम पर उनके अन्दर दूसरों के लिए नफरत पैदा कर उन्हें अपने साथ लगा लिया जाता है। हालांकि पिछले कुछ समय से देश की सरकार ने इन लोगो के खिलाफ सख्ती बरतते हुए इन पर काबू पाने में काफी हद तक सफलता हासिल की भी है। बावजूद इसके पाकिस्तान में बैठे आईएसआई के एजेन्ट और कैनेडा की धरती पर बैठे पन्नू जैस खालिस्तानी प्रवृत्ति के लोग निरन्तर ऐसी कोशिशों में लगे रहते हैं कि कैसे भी करके देश के हालात बिगाड़े जाएं। एक-दूसरे के प्रति नफरत पैदा की जाए। हाल ही में कश्मीर के पहलगाम में जिस प्रकार आतंकियों ने घूमने गए सैलानियों को अपना निशाना बनाया है वह इस बात के संकेत देता है कि उनकी मंशा सीधे तौर पर सैलानियों की आड़ में देश की सरकार और एजेन्सियों को चुनौती देना है। मगर शायद वह लोग यह भूल जाते हैं कि इसका अन्जाम क्या होने वाला है। इस तरह की घटनाओं के बाद देश के अन्य धर्मों के लोगों में धर्म विशेष के प्रति नफरत पैदा हो जाती है और देश के उन राज्यों में जहां इस धर्म विशेष के लोगों की गिनती बहुत कम होती है उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है।

सिख धर्म में सहज पाठ की महत्वता

गुरु गोबिन्द सिंह जी ने देहधारी प्रथा को समाप्त करते हुए गुरु ग्रन्थ साहिब को गद्दी सौंप हर सिख को उन्हें गुरु मानने का आदेश दिया तभी से हर सिख गुरु ग्रन्थ साहिब को गुरु के रूप में स्वीकार करता आ रहा है। सिखों के परिवारों में होने वाले खुशी-गमी के कार्यक्रमों में लोग गुरु ग्रन्थ साहिब का पाठ करवाते हैं। गुरुद्वारांे में भी निरन्तर पाठ चलते रहते हैं मगर आमतौर पर लोग अखण्ड पाठ साहिब को अधिक महत्वता देते हैं क्योंकि आज के समय में लोगों के पास समय का आभाव है दूसरा ज्यादातर सिख गुरु ग्रन्थ साहिब से जुड़ ही नहीं पाए हैं। वही दूसरी ओर सहज पाठ की अलग महत्वता है जिसकी कोई समय सीमा नहीं होती, आप जितने मर्जी समय के साथ इसका पाठ कर सकते हो। वैसे हर सिख को अपने जीवन में एक सहज पाठ अवश्य करना चाहिए ताकि उसे गुरु की बाणी को समझने का मौका मिल सके। इसी के चलते दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के द्वारा संगत को सहज पाठ से जोड़ने के उदेश्य से 3.5 लाख सहज पाठ गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहीदी दिवस को समर्पित होकर करवाने का लक्ष्य रखा है जो कि कमेटी का सराहनीय कदम है। जब इसकी घोषणा की गई तो विरोधियों को लग रहा था कि कमेटी पदाधिकारी शायद इसका हिस्सा नहीं बनेंगे, मगर कमेटी अध्यक्ष से लेकर अन्य पदाधिकारियो ने ना सिर्फ स्वयं बल्कि अपने पारिवारिक सदस्यों के संग इसका हिस्सा बनकर सहज पाठ आरंभ किए। वैसे देखा जाए तो यह किसी पार्टी या दल का नहीं समूचे पंथ का पर्व है इसलिए बिना पार्टीवाद, किन्तु-परन्तु किए सभी को इसमें अपना योगदान देना चाहिए।

श्री दरबार साहिब प्रबन्ध में सुधार की आवश्यकता

श्री दरबार साहिब अमृतसर इस समय संसारभर के श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र बन चुका है और देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु रोजाना पहुंचकर श्री दरबार साहिब नतमस्तक होते हैं। ऐसे में दर्शनों के लिए लम्बी लाइनें लगना भी स्वभाविक सी बात है। अक्सर देखा जाता है कि लाइनों में कई महिलाएं छोटे-छोटे बच्चों को लेकर घण्टों खड़ी रहती हैं, कई बुजुर्ग यहां तक कि कई ऐसे श्रद्धालु जो चलने में भी असमर्थ रहते हैं वह भी दर्शनों के लिए खड़े दिखाई देते हैं। मगर आमतौर पर देखा जाता है कि शिरोमिण गुरुद्वारा कमेटी के स्टाफ का व्यवहार श्रद्धालुओं से ज्यादा अच्छा नहीं रहता जिसे सुधारने की आवश्यकता है। इतना ही नहीं श्रद्धालुओं को ठेस तब पहुंचती है जब राजनीतिक या प्रतिष्ठित लोगों को सेवादार वीआईपी सुविधाएं देते हुए बिना लाईन के ही दर्शनों के लिए ले जाते हैं जबकि गुरुघर में वीआईपी कल्चर का कोई स्थान ही नहीं है। इतिहास गवाह है कि राजा-महाराजा भी अगर गुरु दरबार में आए तो आम संगत की भान्ति दर्शन कर पंक्ति में बैठकर ही लंगर खाया करते। इसी के चलते समाजसेवी एम. एम. पाल सिंह गोल्डी के द्वारा एक पत्र शिरोमिण कमेटी अध्यक्ष को लिखकर श्रद्धालुओं को आने वाली समस्या को दूर करने की मांग की है। उनका कहना भी सही है, इस समय गर्मी का कहर तेजी से बढ़ रहा है जिसके चलते आम व्यक्ति का घण्टों लाईन में खड़ा रहना मुश्किल हो जाता है ऐसे में छोटे बच्चों, बुजुर्गों या शरीरिक रूप से कष्ठ झेल रहे श्रद्धालुआंे को काफी दिक्कत पेश आती है अगर कमेटी के द्वारा ऐसे श्रद्धालुओं के लिए एक अलग लाईन लगवा दी जाए तो उन्हें सुविधा दी जा सकती है। इसके साथ ही सेवादारों का श्रद्धालुओं से व्यवहार दरुस्त बनाने हेतु भी कमेटी को दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए।

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