करतारपुर साहिब का महत्व - Punjab Kesari
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करतारपुर साहिब का महत्व

भारत के महान सन्त गुरू नानक देव जी महाराज के जन्म दिवस ‘गुरू परब’ की पूर्व बेला में

भारत के महान सन्त गुरू नानक देव जी महाराज के जन्म दिवस ‘गुरू परब’ की पूर्व बेला में भारत-पाकिस्तान के बीच बने ‘करतार पुर साहिब कारीडोर’ को पुनः प्रारम्भ करके केन्द्रीय गृहमन्त्रालय ने जो सद्भावनापूर्ण कार्य किया है उसका प्रत्युत्तर भी पाकिस्तान की तरफ इसी रूप में आना चाहिए और दोनों देशों के बीच फैली महान सिख गुरुओं की विरासत को शिरोधार्य किया जाना चाहिए। यह कारीडोर नवम्बर 2019 में बन कर जब भारत के श्रद्धालुओं के लिए खुला था तो एेसा लगा था कि पंजाब समेत पूरे देश के केशधारी व मौने सिखों पर गुरू की महान कृपा बरसी है। सिख मत में विश्वास रखने वाले सभी श्रद्धालु गुरू नानक देव जी अन्तिम कर्मभूमि के समक्ष मत्था टेक कर स्वयं को धन्य बना सकते हैं। इस मामले में पाकिस्तान की इमरान खान सरकार ने भी पूरी सदाशयता दिखाई थी और कारीडोर के अपने हिस्से के निर्माण में तेजी दिखाई थी।
 वैसे तो पूरा पाकिस्तान ही गुरू नानक देव जी महाराज सहित अन्य सभी सिख गुरुओं की कर्मस्थली रही है परन्तु सिख मान्यताओं के अनुसार करतारपुर साहिब का विशिष्ट स्थान है। यह स्थान भारत-पाक सीमा से बहुत दूर भी नहीं है, इसके बावजूद 1947 में देश का बंटवारा हो जाने पर इसके पाकिस्तान में चले जाने पर पंजाब के लोगों को खासी मायूसी हुई थी। इसके निर्माण में पंजाब प्रदेश कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही और इस प्रकार रही कि इसके उद्घाटन के अवसर पर जब वह अपने क्रिकेटर मित्र इमरान खान के बुलावे पर पाकिस्तान उद्घाटन समारोह में गये तो भारत में चली राजनीति का उन्हें अच्छा-खासा शिकार भी होना पड़ा था। अब यह पुरानी बात हो चुकी हैं जिसका जिक्र करना सामयिक नहीं लगता मगर इतना निश्चित है कि इस कारीडोर के निर्माण के बाद पंजाब में सिद्धू की लोकप्रियता काफी बढ़ गई थी। अभी कोरोना काल लगभग निपट जाने पर केन्द्र की मोदी सरकार के गृहमन्त्री श्री अमित शाह ने इसे लगभग डेढ वर्ष बाद खोल कर पुनः पंजाबियों की प्रशंसा बटोरी है। हालांकि इसे खोलने की मांग काफी अर्से से हो रही थी और खुद पाकिस्तान की तरफ से भी इसे खोलने की इच्छा जताई गई थी , मगर गुरू परब के अवसर पर इसे चालू करने की घोषणा करके श्री शाह ने सिख गुरुओं के प्रेम व भाइचारे के उपदेश का पालन किया है। स्वयं में यह भी कम हैरतंगेज नहीं है कि इस कारीडोर का निर्माण बंटवारे के सात दशक बीत जाने के बाद किया गया जबकि हकीकत यह है कि भारत के लोग इस पवित्र गुरूद्वारे के दर्शन भर करने के लिए इससे पहले भारत की सीमा के पास आकर एकत्र हो जाया करते थे। यह भी स्वयं में कम महत्व निर्माण नहीं है कि इसका उद्घाटन 9 नवम्बर, 2019 के दिन किया गया क्योंकि यह दिन दोनों जर्मनियों के बीच बनी ‘बर्लिन दीवार’ को ढहाने का वार्षिक जयन्ती दिन होता है। बेशक यह सांकेतिक ही हो मगर इससे इतना तो आभास होता है कि 14 अगस्त, 1947 को मुहम्मद अली जिन्ना ने भारत का जो बंटवारा अंग्रेजों के साथ साजिश करके किया था वह पानी पर खींची हुई लकीर की तरह ही था क्योंकि दोनों देशों की मूल संस्कृति में कोई अन्तर नहीं है।
 गुरू नानक देव जी की वाणी और गुरू ग्रन्थ साहब के शबद जब दरबार साहिब करातारपुर से गूंजते हैं उनकी ध्वनि पाकिस्तान में भी जाती है जिनमें भाईचारे और प्रेम व सद्भाव का सन्देश होता है। इसी गुरू नानक की वाणी में यह सन्देश सर्वोच्च है कि धर्म अलग होने से मनुष्य में प्यार व आत्मीयता समाप्त नहीं होती है। नानक देव जी की यह वाणी आज भी भारत और पाकिस्तान के गुरुद्वारे से गूंजती हुई हमें आपसी एकता का सन्देश देती है-
‘‘कोई बोले राम-राम, कोई खुदाये
कोई सेवे गुसैंया, कोई अल्लाए
कोई नहावे तीरथ, कोई हज जाये
कोई करे पूजा, कोई सिर नवाये।’’ 
मगर पाकिस्तान में ननकाना साहिब भी है और हिन्दुओं के विभिन्न तीरथ स्थल व मन्दिर भी हैं। इनमें बलूचिस्तान में स्थित हिंगलाज देवी का मन्दिर भी । इस मन्दिर पर आज भी हर वर्ष नवरात्रों के समय मेला लगता है जिसमें भाग लेने इस प्रदेश के मुसलमान नागरिक भी जाते हैं और इसे ‘दादी की हज’  की संज्ञा देते हैं। इसी प्रकार भारत में भी मुस्लिम नागरिकों की पूज्य बहुत सी पीर-फकीरों की मजारें हैं जिनकी जियारत करने को पाकिस्तान के नागरिक लालयित रहते हैं। इनमें सबसे प्रमुख अजमेर शरीफ है। इसी तरह शिया मुस्लिमों का पवित्र स्थल उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर में नजीबाबाद कस्बे के निकट ‘जोगी रमपुरी’ में हैं जिसमें भाग लेने के लिए हर वर्ष देश-विदेश से हजारों की संख्या में जायरीन आते हैं। कहने का मतलब सिर्फ इतना सा है कि दोनों देशों में फैले इन तीर्थ स्थलों के माध्यम से ही भारत-पाकिस्तान के बीच कशीदगी दूर करने का जरिया निकाला जा सकता है। बशर्ते इस्लामाबाद में बैठे पाकिस्तानी हुक्मरान अपनी अवाम की भलाई के बारे में सोचें और आतंकवाद और मजहबी तास्सुब को छोड़ कर इंसानियत के फर्ज को निभायें। मगर यह कार्य किसी हुक्मरान के फौरी हुक्मों से नहीं हो सकता बल्कि सच्ची नीयत के साथ दीर्घकालीन दोस्ती के नुक्ता-ए-नजर से हो सकता है। करततारपुर साहिब कारीडोर ने तो बस रास्ता दिखाया है। 

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