शेल्टर होम या यातना गृह - Punjab Kesari
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शेल्टर होम या यातना गृह

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मुजफ्फरपुर शहर में शेल्टर होम में बच्चियों के यौन शोषण कांड के बाद देवरिया के मां विंध्यवासिनी बालिका गृह का सच भी सामने आ गया। दोनों ही घटनाएं पूरे देश को शर्मसार कर देने वाली हैं। बच्चियों को शेल्टर होम में इसलिए रखा जाता है ​ताकि वे यौन कुंठाओं से भरे इस समाज में राहत भरा सुरक्षित जीवन जी सकें मगर दोनों ही जगह शेल्टर होम संचालकों ने इसे यौन कर्मियों के कोठे में बदल कर रख दिया। जहां छोटी उम्र की बच्चियों को नेताओं और अफसरों के शयन कक्षों में भेजा जाता था। इन घटनाओं पर जिस तरह का आक्रोश हमारे मन में आना चाहिए था, वह आक्रोश दिखाई नहीं दिया। जिस तरह लोगाें को सड़कों पर उतर कर सवाल करने चाहिएं थे, वह भी नहीं हो पाया। आखिर यातना गृहों को सरकारी फंड से पनपने का मौका किसने दिया।

जंतर-मंतर पर मुजफ्फरपुर यौन शोषण कांड के विरोध में आयोजित सभा विपक्षी एकता का मंच बनकर रह गई। आखिर लोगों का खून क्यों नहीं खाैलता? ये तमाम बच्चियां वंचित तबके की हैं, हो सकता है लोगों के भीतर गुस्सा हो लेकिन फिलहाल वह फूटा नहीं है। आज बहुत बड़ी घटनाओं पर लोग प्रतिक्रिया नहीं देते क्योंकि समाज की प्रथम इकाई परिवार में उन्हें शुरू से यही शिक्षा दी जाती है कि अपने काम से मतलब रखना, बेवजह किसी से उलझना नहीं। इस व्यक्तिगत डर ने समाज को व्यक्ति तक सीमित कर दिया। बड़ी घटनाओं पर कन्नी काट कर निकल जाना हमारा सामाजिक चरित्र बन गया है। बलात्कार भी अब व्यवस्थित तरीके से होने लगे हैं। जहानाबाद और नवादा की घटना को ही ले लीजिए जिसमें बलात्कार के दोषियों ने अपने कुकृत्य का वीडियो भी बनाया। जब ऐसी घटनाओं पर समाज खामोश रहेगा तो बलात्कार व्य​वस्थित अपराध बनेंगे ही।

पत्रकार का बाना ओढ़कर मुजफ्फरपुर शेल्टर होम के संचालक ब्रजेश ठाकुर ने किस तरह सफलता की सीढि़यां चढ़ीं और चुनाव हारकर भी वह सत्ता के गलियारों में जीतता रहा, उसकी कहानियां छन-छन कर बाहर आने लगी हैं लेकिन गिरफ्तारी के वक्त ब्रजेश ठाकुर का अट्टहास यह बताने के लिए काफी है कि वह इस धंधे में अकेला नहीं है। उसकी कुटिल हंसी हमारे समाज और व्यवस्था के मुंह पर करारा तमाचा है। आज टी.वी. चैनल टीआरपी के चक्कर में दिन-रात मुजफ्फरपुर आैर देवरिया की घटनाओं को दिखा रहे हैं, अखबारें भी भरी पड़ी हैं लेकिन हैरानी होती है कि खोजी पत्रकारों को भी इस सबकी कोई भनक नहीं लगी या भनक रहते हुए भी वे खामोश रहे। शेल्टर होम की नियमित जांच करने वाले भी खामोश रहे। शेल्टर होम जाने वाले डाक्टर, अधिकारी और स्थानीय लोग चुप रहे। स्पष्ट है कि जांच केवल कागजों में होती रही। देवरिया का बालिका गृह तो अवैध तरीके से चलाया जा रहा था, उसका अनुदान भी उत्तर प्रदेश सरकार बंद कर चुकी थी, फिर भी बालिका गृह चलता रहा। बालिका गृह की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी कितनी बेशर्मी से मीडिया के सवालों का जवाब दे रही थी, उससे भी जाहिर है कि वह भी इस धंधे में अकेली नहीं है। मुजफ्फरपुर और देवरिया जैसा हाल अन्य बालिका गृहों का भी होगा क्योंकि हमारे देश में बेटियों के सौदागर कम नहीं हैं।

ब्रजेश ठाकुर लगभग सभी राजनीतिक दलों का दुलारा था, उसकी सभी बड़े नेताओं के साथ तस्वीर है। ऐसे कई अन्य लोग भी होंगे। भोगी राजनेता, अफसर और समाज के ठेकेदार भी होंगे। बेटियों के ग्राहकों में गणमान्य नेता, पूंजीपति, बाहुबली, दबंग, रईसजादे और अन्य रसूखदार होते हैं। इन तक कानून के हाथ कभी नहीं पहुंचेंगे। ऐसी घिनौनी वारदातें तब होती हैं जब प्रशासन से लेकर समाज तक आंखें बंद कर लेता है। केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी ने ठीक ही कहा है कि उनका मंत्रालय बार-बार सांसदों को पत्र लिखता रहा है कि अपने-अपने इलाकों में जाकर शेल्टर होम का निरीक्षण करें लेकिन किसी को इतनी फुर्सत कहां। विधायक क्यों मौन रहे। आखिर पाप का खुलासा हो ही गया। ब्रजेश ठाकुर और उसके दरिंदे सहयो​गियों, जिनमें वो तोंद वाले अंकल आैर न जाने कितने सफेदपोश नेता आैर अधिकारी शामिल हैं, इनके चेहरे भी सामने आने चाहिएं। सुशासन बाबू एक आरोपी की पत्नी को अपने मंत्रिमंडल में क्यों सजा कर रखे हुए हैं? देवरिया कांड का पूरा सच भी सामने आना ही चाहिए। सियासत बहुत उलझी हुई है। इन घटनाओं को लेकर भी सत्तापक्ष आैर विपक्ष एक-दूसरे का विरोध ही करेंगे जबकि ऐसे मुद्दों पर संवेदनशीलता का परिचय दिया जाना चाहिए।

याद रखा जाना चाहिए कि जब राजनीति सड़ी हुई हो जाती है तो व्यवस्था में भी सड़न पैदा होती है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने फैसला लिया है कि अब शेल्टर होम एनजीओ नहीं बल्कि सरकार खुद चलाएगी। देश की बेटियों को दरिंदों से बचाने के लिए देशभर में राज्य सरकारों को ठोस कदम उठाने होंगे। देश के एनजीओ संदेह के घेरे में पहले से ही हैं। देश में दरिंदे जगह-जगह न उग आएं, इस संबंध में समाज को अपनी आंखें खोलकर रखनी होंगी। समाज को संवेदनशील बनना ही होगा। स्थिति भयावह है। जिस दिन समाज बहन-बेटियों के लिए पुरजोर आवाज उठाना शुरू करेगा उस दिन किसी की हिम्मत नहीं होगी कि वह बेखौफ होकर पाप करे।

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