शेख हसीना और सेंट-मार्टिन - Punjab Kesari
Girl in a jacket

शेख हसीना और सेंट-मार्टिन

बंगलादेश की राजनीति व सत्ता में जो भी नाटकीय परिवर्तन हुआ है वह अकारण नहीं कहा जा सकता। इसका मुख्य कारण यह है कि पिछले 15 सालों से इस देश में जिस प्रकार शेख हसीना की बांग्ला राष्ट्रवादी पार्टी अवामी लीग की सरकार सत्तासीन थी उससे इस देश की भारत विरोधी इस्लामी कट्टर पंथी ताकतें त्रस्त थीं। ये ताकतें वही हैं जो मूल रूप से बंगलादेश को भी कट्टरपंथी इस्लामी मुल्क पाकिस्तान की तरह बनाना चाहती हैं। मगर चुनावों में इन पार्टियों का जीतना भारी मुश्किल हो रहा था और ये बंगलादेश के युवाओं में असन्तोष को बढ़ावा दे रही थीं। इसके पीछे इस देश में बढ़ती बेरोजगारी ने ऐसी शक्तियों को बढ़ावा दिया। बंगलादेश में हर साल जहां हजारों की संख्या में सरकारी पद भरे जाते हैं वहीं इनके लिए अभ्यर्थियों की संख्या लाखों में होती है। अतः छात्रों ने जब यह मांग उठाई कि सरकारी पदों में आरक्षण समाप्त किया जाये तो कट्टरपंथी ताकतों ने इन्हें अपना समर्थन दे दिया और इनके आन्दोलन में भी ये ताकतें रूप बदल कर घुस गईं जिसकी वजह से छात्र आन्दोलन में हिंसा प्रवेश करती गई। मगर कट्टरपंथी ताकतों को परोक्ष रूप से बंगलादेश की फौज का समर्थन भी बताया जाता है। बंगलादेश में इससे पहले भी कई बार फौज ने तख्ता पलट किया है। समझा जाता है कि फौज के तख्ता पलट के पीछे हर बार अमेरिकी ताकतों का हाथ रहा है क्योंकि अमेरिका चाहता है समूचे हिन्द महासागर व प्रशान्त सागर क्षेत्र में उसकी ताकत को कोई चुनौती न दे सके।

शेख हसीना का यह कहना कि यदि वह अपने देश का एक छोटा सा द्वीप सेंट मार्टिन अमेरिका को दे देतीं तो उनकी सरकार नहीं गिरती, बहुत मायने रखता है। इस द्वीप का कुल क्षेत्रफल तीन किलोमीटर के लगभग है परन्तु अमेरिका इसे सैनिक अड्डे में बदलना चाहता है। शेख हसीना ने यह भी कहा कि अमेरिका उन पर दबाव डाल रहा था कि वह ‘क्वाड’ समूह की सदस्य बनें जो कि चार देशों भारत, आस्ट्रेलिया, जापान व अमेरिका का समुच्य है। शेख हसीना इसकी सदस्य बनने के लिए राजी नहीं हुईं। अमेरिका उनकी मार्फत क्वाड में भारत के प्रभाव को कम करना चाहता है क्योंकि भारत की समुद्री सीमाओं की अग्रिम रक्षा पंक्ति बंगलादेश, मालदीव व श्रीलंका जैसे देश हैं। बंगलादेश यदि क्वाड का सदस्य बनता तो इससे भारत के हित ही प्रभावित होते और शेख हसीना भारत के साथ अपने सम्बन्धों पर किसी प्रकार की आंच नहीं आने देना चाहती थीं। यह उनकी दूरदर्शिता थी कि उन्होंने अमेरिका को इस बारे में टका सा जवाब दे दिया। मगर सेंट मार्टिन द्वीप के मामले पर भी उन्होंने ऐसा ही रुख अपनाया और अमेरिका की दाल नहीं गलने दी। दरअसल 70 के दशक के बाद से ही अमेरिका हिन्द महासागर क्षेत्र को नौसैनिक शक्ति का अखाड़ा बनाना चाहता था जिसका विरोध तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने पूरी शक्ति के साथ किया था और मांग की थी कि हिन्द महासागर क्षेत्र को अंतर्राष्ट्रीय शान्ति क्षेत्र घोषित किया जाये। अमेरिका तब मलेशिया के पास ​दिएगो गार्शिया में अपना परमाणु नौसैनिक अड्डा बनाना चाहता था।

इन्दिरा जी की दूरदर्शिता यह थी कि उन्होंने अनुमान लगा लिया था कि आने वाले समय में इस क्षेत्र में अमेरिका व चीन में भिड़न्त होने के आसार बन सकते हैं क्योंकि तब चीनी क्रान्ति के जनक माओ त्से तुंग की मृत्यु हो चुकी थी और चीन ने पूंजीवादी नीतियों की ओर बढ़ना शुरू कर दिया था। यह खतरा इंदिरा गांधी ने भांप कर ही विश्व संस्थाओं से आह्वान किया था कि वे हिन्द महासागर को शान्त क्षेत्र घोषित करें। परन्तु बाद में अमेरिका अपनी चाल में सफल हुआ औऱ दिएगो गार्शिया पर सैनिक अड्डा कायम करके हिन्द महासागर क्षेत्र में नौसैनिक प्रतियोगिता का मार्ग खोल दिया। चीन जिस प्रकार से आज इस क्षेत्र में अमेरिका से प्रतियोगिता कर रहा है वह हमारे सामने है। मगर अमेरिका व बंगलादेश की रंजिश नई नहीं है। सर्वप्रथम यह देश 1971 में अस्तित्व में ही प्रबल अमेरिकी विरोध के बावजूद आय़ा जिसके जनक शेख हसीना के पिता स्व. शेख मुजीबुर्रहमान थे। भारत के प्रचंड समर्थन की वजह से यह देश अस्तित्व में आया था मगर शेख मुजीबुर्रहमान की उनके परिवार के अन्य छह सदस्यों के साथ 15 अगस्त 1975 को जिस प्रकार एक सैनिक विद्रोह करा कर हत्या की गई थी उससे पूरा दक्षिण एशिया दहल गया था। यह किन शक्तियों का काम था? इसके पीछे भी प्रमुख विदेशी शक्तियों का हाथ बताया जाता है।

दरअसल 1947 में अंग्रेजों ने भारत का बंटवारा करके जो पाकिस्तान बनाया था वह अपने सैनिक रणनीतिक हित साधने के लिए बनाया था जिससे वे रूस के बढ़ते प्रभाव को रोक सकें। जबकि अमेरिका को चीन में आ रहे बदलाव से ज्यादा चिन्ता थी। मगर दोनों को ही कम्युनिस्टों का डर था। अमेरिका पूर्वी पाकिस्तान के समुद्री सीमा पर बसे होने का पूरा लाभ उठाना चाहता था जो भारत के संयुक्त रहने पर संभव नहीं था। अतः 1971 में बंगलादेश के अलग बन जाने को अमेरिका को कभी पचा नहीं पाया और उसकी भरसक कोशिश रही कि सऊदी अरब की मार्फत इस देश में इस्लामी शक्तियां पुष्पित-पल्लवित होती रहें। मगर शेख हसीना सर्वदा अपने पिता के समान बंगलादेश के हितों को सर्वोपरि रखा और अमेरिका के समक्ष कभी भी समर्पण नहीं किया। इसलिए शेख हसीना के इस कथन को कभी हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए और अन्य देशों खास कर भारत को भी इससे सबक लेना चाहिए कि अगर सेंट मार्टिन द्वीप हसीना अमेरिका को दे देती तो उनकी सरकार बच सकती थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।