एससीओ : यह कैसा सहयोग - Punjab Kesari
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एससीओ : यह कैसा सहयोग

शंघाई सहयोग संगठन की वर्चुअल बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर आतंकवाद को क्षेत्रीय और

शंघाई सहयोग संगठन की वर्चुअल बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर आतंकवाद को क्षेत्रीय और वैश्विक शांति के लिए बड़ा खतरा बताते हुए सदस्य देशों से इसके खिलाफ एकजुट होकर लड़ने की अपील की वहीं उन्होंने पाकिस्तान और चीन को भी निशाने पर लिया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मौजूदगी में प्रधानमंत्री मोदी ने दो टूक शब्दों में कहा कि कुछ देशों ने सीमापार आतंकवाद को अपना औजार बना लिया है और ऐसे देश आतंकवादियों को पनाह देते हैं जिनकी निंदा करने में संगठन को कोई संकोच नहीं करना चाहिए। इसी बैठक में चीन के राष्ट्रपति ने अमेरिका का नाम लिए बिना उस पर जमकर प्रहार किए। जिनपिंग ने कहा कि क्षेत्र में नया शीत युद्ध शुरू करने की ​कोशिशों का सामना करने की जरूरत है।
इस बैठक में कुल मिलाकर बड़े देशों में मतभेद सामने आ गए। अब सवाल यह है कि शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य किस तरह से आपस में सहयोग करेंगे जबकि उनके निजी हित आड़े आ रहे हैं। शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना के वक्त यह संकल्प लिया गया था कि इसके सदस्य आपस में मिलकर काम करेंगे ताे पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्था को चुनौती दे सकते हैं। अगर संगठन के सदस्य देश आर्थिक ताकत बनना चाहते हैं तो उन्हें एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना होगा और एक-दूसरे की संप्रभुता और सीमाओं का भी सम्मान करना होगा। इस दिशा में सब से बड़ी बाधा चीन और पाकिस्तान ही हैं। अमेरिका ने भारत पर रूस से तेल नहीं खरीदने के ​िलए कितना दबाव बनाया लेकिन भारत ने अपने हितों की रक्षा के लिए रूस से सस्ता तेल खरीदने का फैसला किया। अगर भारत अमेरिका के दबाव में फैसले लेता तो इससे हमारी अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती थी। रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदने से इस वर्ष मई तक यानि 14 महीनों में भारतीय रिफाइनरियों को कम से कम 7.12 बिलियन डॉलर का फायदा हुआ है। भारत कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा खरीदार है और वह अपनी जरूरत का 85 प्रतिशत तेल आयात करता है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका और यूरोपीय देशों ने भारत को सस्ते में तेल देने की पेशकश की। भारत के लिए यह सस्ते का सौदा था। पूरी दुनिया को इस समय सहयोग की जरूरत है। 
भारत का रूस से कच्चे तेल का निर्यात जून महीने में शीर्ष पर रहा। भारत का 2021-22 में रूस से तेल का आयात महज 2 फीसदी था जो अब बढ़कर 20 फीसदी से ज्यादा हो गया है। भारत की तेल कंपनियों ने रूस से सस्ता तेल खरीदकर यूरोपीय देशों को तेल निर्यात किया है। चीन तो पहले से ही रूस से तेल खरीद रहा है अब पाकिस्तान ने भी रूस से तेल खरीदना शुरू कर दिया है। ऊर्जा संकट में यूरोपीय देशों के लिए भारत देवदूत बनकर उभरा है। अमेरिका और कई पश्चिमी देशों के लिए बड़ी राहत की बात है कि भारत उन्हें तेल देना जारी रखे। रूस हमारा परखा हुआ मित्र है। अगर पाकिस्तान ने आतंकवाद को हथियार न बनाया होता तो भारत से व्यापार करने से उसे ही लाभ होता। आतंकवाद और व्यापार साथ- साथ नहीं चल सकते। इसलिए पाकिस्तान के साथ भारत ने व्यापार करने से इंकार कर दिया और दोनों देशों में सीमा पर व्यापार भी ठप्प है और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का हाल हर कोई जानता है। अगर पाकिस्तान का भारत से व्यापार जारी रहता तो उसकी अर्थव्यवस्था को नुक्सान नहीं होता। रूस भारत का अभिन्न मित्र है और उसने हमेशा भारतीय हितों की रक्षा की है जबकि अमेरिका भारत से युद्धों के दौरान भी पाकिस्तान के पाले में खड़ा रहा है। 9/11 के आतंकवादी हमले के बाद से अमेरिका को आतंकवाद की पीड़ा का एहसास हुआ और उसने पाकिस्तान से दूरी बना ली। इसके बाद से ही भारत-अमेरिका संबंधों में मिठास पैदा हुई।
शंघाई सहयोग संगठन के देशों में दुनिया की लगभग 40 फीसदी आबादी रहती है और दुनिया के कुल व्यापार का करीब 24 फीसदी इन्हीं देशों के बीच होता है। अगर संगठन के सदस्य देश आपस में सहयोग करें तो यह समूह बहुत बड़ी आर्थिक ताकत बन सकता है। समस्या यह है कि चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों को छोड़ने को तैयार नहीं जबकि पाकिस्तान आतंकवाद की खेती करना बंद करने को तैयार नहीं। पाकिस्तान और चीन दोनों ही भारत को एक के बाद एक जख्म देने की कोशिशें करते रहते हैं। पूर्वी लद्दाख में सीमा पर गतिरोध चीन की ऐसी ही कोशिश है। भारत, रूस और चीन परस्पर सहयोग का त्रिकोण बन जाए तो कोई ताकत इस त्रिकोण के सामने नहीं टिकेगी। जब तक पाकिस्तान और  चीन अपनी नीतियां नहीं छोड़ते तब तक एससीओ में सहयोग सच्चाई के रूप में नहीं बदल सकता।

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