कन्या महाविद्यालय में संस्कार और भारतीय संस्कृति - Punjab Kesari
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कन्या महाविद्यालय में संस्कार और भारतीय संस्कृति

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मुझे पिछले शनिवार को अपने हैरिटेज कॉलेज कन्या महाविद्यालय में मुख्य अतिथि बनकर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लगभग सप्ताह में पांच दिन मुझे किसी न किसी सामाजिक या कॉलेज के फंक्शन में मुख्य अतिथि या विशिष्ट अतिथि बनकर जाने का अवसर मिलता है परन्तु अपने कॉलेज में लगभग 35 वर्षों के बाद जाना एक दिल को छू लेने वाला इमोशनल समय था। जैसे ही मैंने कॉलेज में एंटर किया, ऐसे लगा जैसे अपनी मां का आंचल मिल गया है। मुझे इतनी उत्सुकता थी कि इसमें फिर से समा जाऊं। फिर पुरानी सहेलियां मिल जाएं और अपनी भारतीय संस्कृति को ओढ़ते हुए कॉलेज में कुछ अठखेलियां करूं। कभी लगा कि मिट्टी को माथे से लगा लूं और जब कॉलेज की प्रसिपल ने अपनी मैनेजिंग कमेटी के साथ स्वागत किया तो दिल कह रहा था कि स्वागत मुझे आपका करना है न कि आपको मेरा। कॉलेज की प्रसिपल जो एक आकर्षक व्यक्तित्व व विदुषी महिला हैं, से मैंने पहला सवाल पूछा कि अभी भी सरस्वती समारोह में ‘स्वागत है स्वागत आने वाली बहनों का’ गाया जाता है और उत्तर में आने वाली बहनें कहतीं- धन्यवाद-धन्यवाद। इस मन्दिर का यशोगान सुनकर आई हैं, ऊंची आशाएं लेकर जाएंगी हम, उच्च भावनाएं, सच्चरित्र के लिए हमारा होगा पूजन और अर्चन…। उन्होंने कहा बिल्कुल वही ही ट्यून।

उस समय तो मेरी आंखें खुशी से नम हो गईं जब मैनेजिंग कमेटी के प्रधान चन्द्रमोहन जी ने मुझे जालन्धर की बेटी, कन्या महाविद्यालय की पुत्री, महिला शक्ति की अद्भत मिसाल कहा। जब प्रसिपल ने वार्षिक रिपोर्ट पढ़ी, सरस्वती वन्दना हुई, सभी छात्राएं सफेद सूट पहने थीं (हमारे समय में भी हर सोमवार को और जब फंक्शन होता था तो पहनते थे) और मैं भी यादें ताजा करते हुए अपने आपको अपने कॉलेज का हिस्सा मानते हुए सफेद सूट पहनकर गई थी। जिस तरह सारे कॉलेज ने मिलकर गाया- दीये जले, सितार बजी, तब मुझे लगा अरे यहां तो कुछ नहीं बदला, सिर्फ चेहरे बदल गए परन्तु वही संस्कृति, वही मर्यादाएं, वही परम्पराएं आज भी इतने सालों बाद वही की वही हैं। अगर किसी ने भारतीय संस्कृति देखनी है तो कन्या महाविद्यालय एक मिसाल है। इसका सारा श्रेय मैं सफल मैनेजिंग कमेटी और ङ्क्षप्रसिपल अतिमा शर्मा द्विवेदी को देती हूं जो खुद आधुनिक विदूषी और भारतीय संस्कृति की मिसाल हैं जिन्होंने कॉलेज को समय के अनुसार बदला। नए-नए कोर्स लाईं। समय की धारा के साथ बदलते हुए आधुनिकता को अपनाते हुए अपने कॉलेज को कौशल विकास से जोड़ते हुए कॉलेज की परम्परा और संस्कृति को कायम रखा। हमारे समय सिर्फ साइंस, होम साइंस, आट्र्स और म्यूजिक था। अब तो यहां अनेक तरह के कोर्स पढ़ाए जा रहे हैं। हमारे समय भी हॉस्टल था परंतु अब वहां और भी बहुत सारी बिङ्क्षल्डग-ऑडिटोरियम बन चुके हैं। 27 एकड़ के कॉलेज में पैदल चलना मुश्किल है। मैंने कई डिपार्टमेंट देखे। अपनी कैमिस्ट्री की क्लास में भी गई जो मुझे सबसे गन्दा सब्जैक्ट लगता था क्योंकि फार्मूले याद करने पड़ते थे और इसीलिए मैंने साइंस छोड़ी।

मेरे पापा मुझे डाक्टर देखना चाहते थे परन्तु मेरा ऑलराउंडर बनने में ध्यान था और वो सोचते थे कि डाक्टर बनकर ही समाज सेवा की जा सकती है तो मैंने उनसे प्रोमिस किया कि मैं जरूर समाज सेवा करूंगी और आज मैं डाक्टर तो नहीं बनी पर सेवा करने के लिए मुन्नाभाई एमबीबीएस (प्यार, सहानुभूति देने वाली, सहारा देने वाली) डाक्टर जरूर बन गई परन्तु आज अगर मैं समाज सेवा करती हूं, अच्छी बहू, पत्नी, मां, सास और दादी हूं तो मुझे मेरी सामाजिक परिवरिश जो कन्या महाविद्यालय से शुरू हुई, वहीं से सभी कुछ सीखा और आज सही मायने में स्वागत-स्वागत और उसके उत्तर वाले गीत के मायने समझ आ गए। उसके एक-एक शब्द के मायने कन्या महाविद्यालय की छात्राएं अपने जीवन में उतारती हैं। वहां पर उपस्थित प्रसिद्ध डाक्टर सुषमा चावला जी मेरी भी डॉक्टर थीं और वानी विज और श्रीमती भगत थीं। मेरे साथ मेरी क्लास फैलो और घनिष्ठ मित्र डॉक्टर हरलीन भी थीं और दिल्ली से अनु कश्यप भी थीं।

उसने कहा कि किरण हर स्टूडेंट के चेहरे पर मुझे तुम्हारी ही छवि नजर आती है। तुम इस विद्यालय की एक किरण तो बाकी भी सभी किरणें नजर आती हैं। उनके चेहरे पर भारतीय सभ्यता, सौम्यता है। आंखों में मर्यादाओं की शर्म है। एक्शन में दुर्गा वाला कान्फीडेंस है, चलने-बोलने में शालीनता है। जिस तरह से होम साइंस डिपार्टमेंट ने अपने हाथों से बनाया हुआ खाना खिलाया, क्या सलाद, क्या डिशिज , क्या मीठा, कहूंगी तो शब्द कम पड़ेंगे। जब हम वापस दिल्ली को सफर कर रहे थे तो बार-बार यही ख्याल उठ रहा था क्यों न इतना स्वादिष्ट खाना थोड़ा सा सफर के लिए पैक करवा लिया होता। आज हर देश के विद्यालय को 132 साल पुराने लाला देवराज द्वारा स्थापित आर्य समाज संस्कारों से ओतप्रोत कॉलेज का अनुसरण करना चाहिए क्योंकि शिक्षा तो हर कॉलेज बैस्ट से बैस्ट देता है परन्तु जो संस्कार, नैतिक मूल्य कन्या महाविद्यालय देता है शायद ही ऐसी कहीं मिसाल हो। मुझे गर्व है कि मैं इस कॉलेज से पढ़ी हूं।

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