रोहिंग्या : अब बर्दाश्त नहीं! - Punjab Kesari
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रोहिंग्या : अब बर्दाश्त नहीं!

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असम में जारी एनआरसी में 40 लाख लोगों को अवैध नागरिक करार दिए जाने के बीच रोहिंग्या शरणार्थियों का मुद्दा भी जोर-शोर से उछला तो गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में स्पष्ट कहा था कि ‘‘इसमें दो मत नहीं कि वे देश की सुरक्षा के लिए खतरा नहीं। राज्य सरकारों को इस संबंध में परामर्श जारी किया गया है कि वे अपने राज्य में रोहिंग्या की गिनती करें, उनकी आवाजाही पर भी नज़र रखें। पूरी जानकारी मिलने के बाद केंद्र सरकार उन्हें उनके देश यानी म्यांमार भेजने की कोशिश करेगी।’’अवैध बंगलादेशियों ने जिस तरह पूर्वोत्तर राज्यों के कई जिलों में जनसांख्यिकी परिवर्तन कर दिया है, वहां के मूल निवासी अल्पसंख्यक हो गए हैं और अवैध घुसपैठिये बहुसंख्यक हो गए हैं, इस कटु अनुभव को देखते हुए रोहिंग्या के मुद्दे को नजरंदाज किया जाना देश को जोखिम में डालना होगा। म्यांमार की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध है।

दस लाख की आबादी को जनगणना में शामिल ही नहीं किया गया। इस आबादी को मूल रूप से इस्लाम धर्म को मानने वाली बताया जाता है। जनगणना में इन्हें शामिल इसलिए नहीं किया गया ​क्योंकि इन्हें रोहिंग्या मुसलमान माना जाता है। म्यांमार की सत्ता कहती रही है कि वे मुख्य रूप से अवैध बंगलादेशी प्रवासी हैं, इसलिए उन्हें नागरिकता नहीं दी जा सकती। म्यांमार की सरकार ने इस आबादी को रखाइन प्रांत तक सीमित कर दिया था। रखाइन प्रांत में 2012 में सांप्रदायिक हिंसा हुई तो बड़ी संख्या में लोगों की जानें गईं। एक लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए। रोहिंग्या मुसलमानों को व्यापक पैमाने पर भेदभाव आैर दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा। रोहिंग्या म्यांमार छोड़ बंगलादेश आैर भारत आने लगे।

25 अगस्त, 2017 को रोहिंग्या चरमपंथियों ने रखाइन के पुलिस नाके पर हमला कर 12 सुरक्षा कर्मियों को मार दिया था। तब म्यांमार की सेना ने रोहिंग्या मुसलमानों को वहां से खदेड़ने के लिए उनके गांव जला दिए। इस ​हिंसा के बाद करीब चार लाख से अधिक रोहिंग्या शरणार्थी सीमा पार करके बंगलादेश में शरण ले चुके हैं आैर हजारों भारत पहुंच गए। मानवाधिकारों के लिए उम्रभर जूझने वाली नोबेल विजेता आंग सान सू की चुनावों में पार्टी की जीत के बाद स्टेट काउंसलर बन गईं लेकिन वह भी इस मामले में चुप्पी साधे रहीं। उन्होंने भी जो कुछ हुआ उसे रूल आफ लॉ करार दिया। वास्तव में म्यांमार में रोहिंग्या के प्रति सहानुभूति न के बराबर है। रोहिंग्या के खिलाफ सेना की कार्रवाई का म्यांमार के लोगों ने जमकर समर्थन किया था। रोहिंग्या शरणार्थियों का मुद्दा एक बड़ी मानवीय त्रासदी है लेकिन भारत कोई धर्मशाला नहीं जहां घुसपैठिये आकर बसते रहें और बाद में यहां के मूल निवासियों के संसाधनों को कब्जा लें। समस्या काफी गंभीर हो चुकी है। रोहिंग्या मुसलमान देशभर के कई क्षेत्रों में फैल गए हैं। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, जम्मू और अब तो वे उत्तराखंड में भी घुस चुके हैं। यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि रोहिंग्या मुसलमान भारतीय अर्थव्यवस्था बिगाड़ने के मकसद से नकली नोटों के कारोबार से लेकर ड्रग्स की तस्करी व सभी तरह की आपराधिक घटनाओं को अंजाम देते हैं। इसे सरकारी एजैंसियों की विफलता कहें या राजनेताओं की वोट बैंक की सियासत कि इन घुसपैठियों के पास न केवल भारतीय मतदाता पहचानपत्र हैं बल्कि राशन कार्ड और आधार कार्ड से लेकर वे तमाम दस्तावेज हैं जो उनको स्थानीय नागरिक बनाने के लिए काफी हैं। कुकरमुत्ते की तरह फैले ये घुसपैठिये सामाजिक ताने-बाने को भी नुक्सान पहुंचाने में लगे हैं।

अकेले दिल्ली में लाखों अवैध बंगलादेशी रहते हैं और रोहिंग्या मुसलमान उनसे घुल-मिल गए हैं। इंस्टीट्यूट आफ डिफैंस स्टडीज एंड एनालिसिस की रिपोर्ट में कई वर्ष पूर्व बताया गया था कि अवैध बंगलादेशी हत्या, लूट, डकैती एवं चोरी की वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। अब देश की सुरक्षा को खतरा काफी बढ़ गया है क्योंकि पाक की खुफिया एजैंसी आईएसआई की पहुंच इन तक हो चुकी है। आईएसआई के इशारे पर रोहिंग्या मुस्लिमों को आतंकवादी नेटवर्क से जोड़ा जा रहा है। जम्मू में रोहिंग्या की एक झुग्गी से 29 लाख रुपए बरामद होने से इस बात की आशंका पुख्ता हो गई है कि बंगलादेश का आतंकी नेटवर्क कश्मीर के आतंकियों को फंडिंग करने के लिए सक्रिय हो गया है। मादक पदार्थ, टेरर फंडिंग और आतंकी संगठनों के सक्रिय होने के कारण सुरक्षा एजेंसियां पहले से ही सक्रिय हैं। स्वतंत्रता दिवस से पहले आतंकी संगठन किसी बड़ी वारदात की फिराक में हैं। सीमा पार से अलकायदा समर्थित अंसार गजबल उल हिन्द के जाकिर भूमा का आतंकी नेटवर्क, हिजबुल मुजाहिद्दीन, लश्कर-ए-तैयबा आतंकी संगठन जम्मू-कश्मीर में पूरी तरह सक्रिय हैं। रोहिंग्याओं से पकड़े गए रुपए भी इस कड़ी का पार्ट माना जा रहा है।

क्या पकड़े गए धन का संबंध मानव तस्करी से है? हर बुधवार को गुवाहाटी और सियालदह ट्रेन में कुछ लड़कियों और लड़कों को नौकरी दिलाने के नाम पर जम्मू लाया जा रहा है। इसमें लाखों की डील होती है। इन लड़के-लड़कियों को मात्र तीन या चार हजार रुपए प्रतिमाह दिए जाते हैं। जम्मू में रोहिंग्या मुसलमानों की बस्तियां बस चुकी हैं। जम्मू के लोग भी इन्हें बाहर करने की मांग उठा चुके हैं। इससे पहले कि देश की सुरक्षा के लिए खतरा विकराल हो जाए, केन्द्र और राज्य सरकारों को इन्हें बाहर करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। अगर ऐसा नहीं किया गया तो देश को भीतर से ही खतरा पैदा हो जाएगा जिससे निपटना आसान नहीं होगा। मानवीयता अपनी जगह है लेकिन आतंकी प्रवृत्तियों को कोई भी देश बर्दाश्त नहीं कर सकता।

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