गेहूं के बाद चावल संकट - Punjab Kesari
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गेहूं के बाद चावल संकट

गेहूं के बाद देश में चावल संकट खड़ा होता जा रहा है। गेहूं के साथ-साथ चावल की कीमतों

गेहूं के बाद देश में चावल संकट खड़ा होता जा रहा है। गेहूं के साथ-साथ चावल की कीमतों में लगातार बढ़ौतरी हो रही है। चावल की कीमतों में एक साल में 8 फीसदी की बढ़ौतरी हो चुकी है। चावल की थोक कीमत 3295 रुपए क्विंटल हो चुकी है जबकि  जुलाई में चावल का थोक मूल्य 3167.18 रुपए थी। ​पिछले वर्ष अगस्त-सितम्बर में चावल का थोक मूल्य 3068.95 रुपए प्रति क्विंटल था। जिन राज्यों में चावल ज्यादा खाया जाता है, वहां चावल बहुत महंगा बिक रहा है। जैसे कि चेन्नई में चावल 58 रुपए किलो, कोलकाता में 41 रुपए किलो बिक रहा है। चालू मानसून सीजन में वर्षा के असामान्य वितरण ने धान की फसल को अच्छा खासा नुक्सान पहुंचाया है। बारिश कम होने से धान फसल का रकबा 4.95 फीसदी घटकर 393.79 लाख हैक्टेयर रह गया है। जबकि पिछले एक वर्ष पहले की समान अवधि में धान की बुवाई 414.31 लाख हैक्टेयर में की गई थी। 
धान की बुवाई जून से दक्षिण पश्चिम मानसून की शुरूआत के साथ शुरू होती है और अक्तूबर में कटाई की जाती है। आंकड़ों के मुताबिक इस बार रकबा करीब 20.52 लाख हैक्टेयर कम है। तेलंगाना, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में धान का रकबा बढ़ा है। हालांकि मुख्य धान उत्पादक क्षेत्रों झारखंड, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में रकबा घटा है। धान के अलावा दलहन की बुवाई में मामूली गिरावट आई है। तिलहन बुवाई का रकबा भी पिछड़ रहा है।
संकट में धान कटोरा पश्चिम बंगाल भी है। राज्य चार दशकों से अधिक समय बाद धान के​ लिए मौसम खराब रहा। इस वर्ष वर्षा माइनस 24 फीसदी कम हुई है। झारखंड में माइनस 48 फीसदी वर्षा दर्ज की गई है। चावल के निर्यात पर रोक से इतना तो साफ हो गया है कि सरकार किसी भी तरह से महंगाई  को थामे रखना चाहती है। भारत में गेहूं और चावल दो प्रमुख खाद्यान्न  हैं। गेहूं निर्यात पर सरकार ने पहले ही रोक लगा दी थी और अब चावल की ऐसी वैराइटी के निर्यात पर रोक लगाई है जो आम आदमी की जेब  प्रभावित कर सकता है। देश में धान का रकबा घटने के बीच चीन को बारीक और टूटे चावल का निर्यात बढ़ने से बाजार में इसकी कीमतें बढ़ने लगी थीं। भारत में चावल उत्पादन घटने की रिपोर्टों ने सरकार के नीति नियं​ताओं को सतर्क कर दिया और महंगाई की आहट से चौकन्नी सरकार ने पहले ही जरूरी कदम उठाए हैं। दुनिया भर के देशों में खाने-पीने के सामान की कीमतें बढ़ रही हैं। यूरोप और अमेरिका में खाद्यान्न का संकट बढ़ रहा है। 
देश में खाद्यान्न का उत्पादन घटने के पीछे जलवायु परिवर्तन की बड़ी भूमिका दिख रही है। उत्तर भारत की मंडियों में पहुंच रहा धान पिछले वर्ष के मुकाबले 500 से 1000 रुपए महंगा बिक रहा है। इसे देखते हुए सरकार को फौरी कदम उठाने पड़े हैं और निर्यात पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ा कर भी इसे रोका जा रहा है। मोदी सरकार के जन​हितैषी कदमों से ही महंगाई को काबू में रखा जा सका है। देश के कई हिस्सों में महंगा बिक रहे चावल की कीमतों में भी इससे स्थिरता आएगी, जिससे आम आदमी को राहत मिलेगी। हालांकि खपत के मुकाबले उत्पादन का विश्लेषण किया जाए तो भारत का उत्पादन स्टाक ठीक-ठाक रह सकता है, परन्तु ऐसा तभी सम्भव है जब सरकार चावल के निर्यात पर नजर रखे। रूस-यूक्रेन युद्ध से उपजा खाद्यान्न संकट पूरी दुनिया को परेेशान कर सकता है लेकिन उत्पादन के मोर्चे पर ठीक-ठाक प्रदर्शन के बावजूद खाद्यान्न महंगाई को रोकना सबसे बड़ी चुनौती है। मोदी सरकार ने चावल के स्टाक पर निगाह बनाकर रखी है और अगर कीमतें बढ़ती हैं तो सरकार जमाखोरों की खबर भी ले सकती है। कुल मिलाकर सरकार महंगाई थामने के लिए तमाम प्रयास करने को प्रतिबद्ध है जो काबिले तारीफ है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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