गरीब की थाली में पुलाव आ गया है…लगता है शहर में चुनाव आ गया है’ भारत की राजनीति पर ये दो पंक्तियां सटीक टिप्पणी हैं। चुनाव आते ही वोटरों को लुभाने के लिए जिस तरह राजनीतिक दल और उनके नेता वादों की बरसात करते हैं उससे एक नया शब्द ‘रेवड़ी कल्चर’ चर्चा में है।
चुनावी राज्यों में इस तरह ‘मुफ्त बांटने’ की योजनाएं आम बात है। विरोध करने वाले इन्हें ‘फ्री बीज’ और रेवड़ी कल्चर कहते हैं तो समर्थन वाले इन्हें ‘कल्याणकारी योजनाएं’ बताते हैं। विरोध करने वालों का अक्सर कहना होता है कि इससे सरकारी खजाने पर बोझ पड़ेगा, कर्जा बढ़ेगा और सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए ऐसा किया जा रहा है तो ऐसी योजनाएं लाने वाले कहते हैं कि इसका मकसद गरीब जनता को महंगाई से राहत दिलाना है। खास बात ये हैं कि एक पार्टी जिस तरह की योजना को एक राज्य में रेवड़ी कल्चर कहती है, वहीं दूसरे राज्य में उसे कल्याणकारी योजना कहकर लागू कर रही होती है।
चुनाव आते ही राजनीतिक पार्टियां वोटरों को लुभाने के लिए बड़े-बड़े वादे कर देती हैं। इसे ही राजनीतिक भाषा में फ्री बीज या रेवड़ी कल्चर कहा जाता है लेकिन इस रेवड़ी कल्चर की शुरूआत कैसे हुई? इसका राज्यों की आर्थिक सेहत पर क्या असर पड़ता है? चुनावों पर ये मुफ्त की रेवड़ियां कितना असर डालती हैं? हिमाचल प्रदेश का ही उदाहरण लीजिए। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने सत्ता में आने के लिए रेवड़ियां बांटने की घोषणाएं की थीं।
इसका परिणाम यह हुआ कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को मंत्रियों व विधायकों से दो महीने का वेतन-भत्ते छोड़ने की अपील करनी पड़ी। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता आने के बाद मार्च 2024 तक करीब 87 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है जिसके मार्च 2025 तक 95 हजार करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना है। कर्नाटक और पंजाब में भी स्थिति कुछ अलग नहीं है। ठेकेदारों का 25,000 करोड़ रुपए का बकाया चुकाने में सिद्धारमैया सरकार की असमर्थता की वजह से कई विकास परियोजनाएं ठप्प होने के कगार पर हैं। पंजाब में तो हालात और भी गंभीर हैं, जहां राज्य का सार्वजनिक ऋण जीएसडीपी का 44.12 फीसदी हो गया है। मुफ्त बिजली बांटने की वजह से राज्य के 80 फीसदी घरेलू उपभोक्ता मुफ्त बिजली का इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन इसका सीधा असर राज्य की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है।
हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक व पंजाब की स्थिति से अन्य राज्यों को भी सबक लेना चाहिए और रेवड़ी कल्चर पर लगाम लगानी चाहिए। राजस्थान में गत कांग्रेस सरकार ने बिना बजटीय प्रावधान के थोथी घोषणाओं को प्रोत्साहित करके राजस्थान की अर्थव्यवस्था का बंटाधार कर दिया था। राजस्थान में भाजपा सरकार को 5.79 लाख करोड़ रुपए का भारी भरकम कर्ज विरासत के रूप में मिला।
वर्ष 2022 में जब श्रीलंका का आर्थिक संकट सामने आया तो इसने दुनियाभर की सरकारों को चेता दिया। उस समय सर्वदलीय बैठक में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि श्रीलंका से सबक लेते हुए हमें ‘मुफ्त के कल्चर’ से बचना चाहिए। जयशंकर ने कहा कि श्रीलंका जैसी स्थिति भारत में नहीं हो सकती लेकिन वहां से आने वाला सबक बहुत मजबूत है। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक रैली में ‘रेवड़ी कल्चर’ पर सवाल उठाए थे। पीएम मोदी ने कहा था, ‘आजकल हमारे देश में मुफ्त की रेवड़ी बांटकर वोट बटोरने का कल्चर लाने की भरसक कोशिश हो रही है। ये रेवड़ी कल्चर देश के विकास के लिए बहुत घातक है। रेवड़ी कल्चर वालों को लगता है कि जनता जनार्दन को मुफ्त की रेवड़ी बांटकर उन्हें खरीद लेंगे। हमें मिलकर रेवड़ी कल्चर को देश की राजनीति से हटाना है।’ हमारे देश में भी सरकारों का कर्जा बढ़ता जा रहा है। सरकारें सब्सिडी के नाम पर फ्री बीज पर बेतहाशा खर्च कर रही हैं।
बाद में चुनावों से पहले इस तरह के ऐलानों का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने इसे ‘गंभीर मुद्दा’ बताया।
अदालत ने कहा था, ‘ये एक गंभीर मुद्दा है। जिन्हें ये मिल रहा है वो जरूरतमंद हैं। कुछ टैक्सपेयर कह सकते हैं कि इसका इस्तेमाल विकास के लिए किया जाए। इसलिए ये गंभीर मुद्दा है। अर्थव्यवस्था को हो रहे नुक्सान और वैलफेयर में बैलेंस की जरूरत है। दोनों ही पक्षों को सुना जाना चाहिए।
– रोहित माहेश्वरी