भारत और मिस्र के सम्बन्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से बहुत घनिष्ठ रहे हैं। प्रागैतिहासिक काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक में दोनों देशों की संस्कृतियों में ऐसा समन्वय रहा है कि उसका असर वर्तमान दौर तक में देखने को मिलता है। इस वर्ष के गणतन्त्र दिवस समारोह में मिस्र के राष्ट्रपति श्री अब्दुल फतेह अल-सिसी मुख्य अतिथि हैं। दरअसल उनकी यह भारत यात्रा दोनों देशों के बीच सम्बन्धों को और प्रगाढ़ करेगी तथा पश्चिम एशियाई व इस्लामी देशों को विशेष सन्देश देगी क्योंकि मिस्र ऐसा देश भी है जिसने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर समय-समय पर भारत का साथ देने में कभी हिचकिचाहट नहीं दिखाई और इसके लोकतान्त्रिक ढांचे को मानवता का प्रतीक तक माना। एक जमाना था जब पूरी दुनिया में भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू व मिस्र के राष्ट्रपति श्री नासिर के साथ युगोस्लाविया के राष्ट्रपति मार्शल टीटो की त्रिमूर्ति को नये प्रकाश के रूप में देखा जाता था और विकासशील देशों के हित के लिए गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के जरिये विश्व के सम्यक विकास का माध्यम समझा जाता था।
इसी के चलते मिस्र ने भारत के राष्ट्रीय हितों की कभी अवहेलना नहीं की और कश्मीर मुद्दे पर भारत का साथ देने से भी पीछे कदम नहीं उठाया। इस्लामी देश होने के बावजूद मिस्र हमेशा एक उदारवादी देश बना रहा जिसमें सभी धर्मों के लोगों के लिए स्थान रहा। हालांकि इस देश की राजनीति में बाद में बदलाव भी आये मगर इसके बावजूद इसमें कट्टरपंथियों की दाल कभी नहीं गल पाई। श्री अल-सिसी 24 जनवरी को भारत आ जायेंगे और अपनी इस यात्रा के दौरान वह भारत के साथ सामरिक क्षेत्र से लेकर आन्तरिक सुरक्षा, साइबर सुरक्षा और कृषि क्षेत्र तक में आपसी सहयोग के कई समझौते करेंगे। रक्षा क्षेत्र में मिस्र भारत में निर्मित आयुध अस्त्र व सम्बन्धित प्रणाली खरीदने का इच्छुक रहा है और इस बाबत उसने भारत के साथ तब भी एक समझौता किया था जब पिछले वर्ष रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह मिस्र की यात्रा पर गये थे। अल-सिसी स्वयं मिस्र के सेना प्रमुख रहे हैं और बाद में राष्ट्रपति बने हैं। अतः भारत में विकसित रक्षा प्रणाली के प्रति उनकी शुरू से ही रूची रही है। वह इस सम्बन्ध में भारतीय आयुध टैक्नोलॉजी के आयात के भी इच्छुक बताये जाते हैं। इसके साथ ही वह अपने देश के आधारभूत ढांचे के विकास में भी भारतीय निवेश के इच्छुक हैं।
भारत के बारे में पश्चिम एशियाई देशों में यह भी प्रचलित है कि इसके प्रशिक्षित इंजीनियर व अन्य तक्नीशियन उनके विकास की संरचना को मजबूती देने में सक्षम हैं। ऐसा प्रयोग पश्चिम एशिया के कई देशों में हो चुका है। सूचना प्रद्यौगिकी में भारत दुनिया का सिरमौर माना जाता है। अतः अल-सिसी इस क्षेत्र में भी भारत के साथ समझौता कर सकते हैं साथ ही सांस्कृतिक क्षेत्र में आपसी सहयोग बढ़ाने की असीमित संभावनाएं हैं जिसके बारे में भी नया समझौता हो सकता है। परन्तु रक्षा क्षेत्र में सहयोग की मिस्र की इच्छा प्रबल मानी जाती है। अतः गणतन्त्र दिवस की परेड में मिस्र के सैनिकों की भी एक टुकड़ी भाग ले रही है। वास्तव में किसी दूसरे देश की सैनिक टुकड़ी का भारत की गणतन्त्र दिवस परेड में शिरकत करने के अपने विशिष्ट मायने होते हैं। इससे पता चलता है कि दोनों देशों के बीच सुरक्षा मामलों में किस सीमा तक मतैक्य है। मिस्र भारत द्वारा विकसित तेजस लड़ाकू विमान व आकाश मिसाइल के साथ ही रक्षा अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित आकाश भेदी शस्त्र प्रणाली व राडार खरीदने का इच्छुक है। इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि भारत में ही निर्मित अस्त्र-शस्त्रों के प्रति दुनिया के देशों की कितनी रुची है। यह आयुध अस्त्र-शस्त्र भारत ने कई दशकों की मेहनत के बाद निर्मित करने में सफलता प्राप्त की है जिसका श्रेय हमारे रक्षा वैज्ञानिकों को जाता है। दोनों देशों में रक्षा सहयोग नई ऊंचाइयां छुए, इसके लिए भी दोनों देश तत्पर दिखाई पड़ते हैं। भारत ने अगले महीने बेंगलुरु में होने वाली ‘एयरो इंडिया-23’ वायुसेना प्रदर्शनी में भाग लेने के लिए मिस्र को आमन्त्रित किया है तो मिस्र ने भारत को अपने देश में होने वाले संयुक्त सैनिक अभ्यास ‘ब्राइट स्टार’ में भाग लेने का न्यौता दिया है। मिस्र व अमेरिका की फौजें हर दो साल में एक बार मिलकर यह संयुक्त अभ्यास मिस्र में करती हैं। इस वर्ष यह अभ्यास सितम्बर महीने में होगा जिसमें भारतीय सेना भी भाग लेगी।
राष्ट्रपति अल-सिसी ने अपने देश में आतंकवाद का मुकाबला बहुत बहादुरी व युक्तिसंगत तरीके से किया है। भारत इस क्षेत्र में मिस्र के सहयोग का इच्छुक है। इसके साथ साइबर सुरक्षा में भी दोनों देश समझौता कर सकते हैं। कृषि के मोर्चे पर भारत शुरू से ही मिस्र की मदद के लिए आगे रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ जाने की वजह से मिस्र को अपने लोगों के लिए खाद्यान्न की कमी महसूस हो रही थी क्योंकि गेहूं का आयात मिस्र, रूस व यूक्रेन से ही करता था। भारत ने 61 हजार टन गेहूं मिस्र को पहले भेजा था। मगर इसके बाद भारत ने गेहूं निर्यात पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। मिस्र इस मोर्चे पर भारत की अब भी मदद चाहता है। भारत में गणतन्त्र दिवस परेड में विदेशी मेहमानों को बुलाने की एक यशस्वी परंपरा इस तरह रही है कि पूरी दुनिया भारत को मानव अधिकारों की सुरक्षा के अलम्बरदार के रूप में देखे। यह बेवजह नहीं है कि 1950 के प्रथम गणतन्त्र दिवस समारोह में नव स्वतन्त्र हुए देश इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णों को यह सम्मान दिया गया और उसके बाद नेपाल व भूटान के राष्ट्रध्यक्षों को बुलाया गया। यहां तक कि 1954 में पाकिस्तान के गवर्नर जनरल को भी बुलाया गया मगर पाकिस्तान अपनी मजहबी पहचान पर ही अटका रहा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com