भारत के विभिन्न राज्यों और जिलों में रोजगार व काम-धंधे की तलाश में प्रवासी बनें भारतीय मतदाताओं के लिए चुुनाव आयोग ने जिस रिमोट वोटिंग मशीन का इस्तेमाल करने की इजाजत देश के विभिन्न राजनैतिक दलों से मांगी है उसका विरोध प्रायः सभी विपक्षी दलों ने किया है और मतदान कराने की इस प्रक्रिया को अपारदर्शी व भरोसा पैदा न करने वाली तक कहा है। पूरी प्रक्रिया में एक मूल सवाल यह है कि क्या ब्याह-शादी या रोजगार व काम धंधे की गरज से अपना मूल निवास छोड़ने वाले मतदाताओं का पुनः अपने पुराने क्षेत्र में ही मतदान करना जरूरी है? भारत का स्वतन्त्र नागरिक होने के नाते उन्हें अपने किसी प्रवास स्थान पर वोट देने का हक संविधान कुछ शर्तों के साथ देता है। सवाल पैदा होता है कि जब वे अपने स्थायी निवास को छोड़कर दूसरे चुनाव क्षेत्रों में चले जाते हैं तो वहीं अपना मतदाता कार्ड संशोधित क्यों नहीं करा सकते? चुनाव आयोग का कहना था कि प्रायः प्रवासी मतदाता अपने मूल क्षेत्र से जुड़ा रहना चाहते हैं और पुराने मतदाता कार्ड को रद्द कराकर नये क्षेत्र का मतदाता कार्ड बनवाने से बचते हैं। यह तर्क तब हल्का पड़ जाता है जब भारत के चुनाव कानून की बात आती है क्योंकि हर भारतीय को किसी नये क्षेत्र में जाकर निश्चित समयावधि के बाद वहां रहते हुए अपना नया मतदाता कार्ड बनवाने का अधिकार है। अपनी नागरिक जिम्मेदारी का समुचित ढंग से निर्वाह न करने वाले मतदाताओं के लिए चुनाव आयोग क्यों विशेष सुविधा देना चाहता है?
दूसरे अभी तक भारत में इलैक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों से मतदान कराये जाने की विश्वसनीयता पर ही गंभीर बहस चल रही है। सत्ता से बाहर होने पर प्रत्येक राजनैतिक दल इन मशीनों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर देता है और विपरीत चुनाव परिणाम आने पर सन्देहास्पद प्रश्न खड़े कर देता है। इस मामले में भी संविधान में स्पष्ट प्रावधान है कि चुनाव में प्रत्याशी व मतदाता के बीच कोई भी तीसरा माध्यम नहीं रह सकता क्योंकि मतदाता द्वारा डाला गया मत पूर्णतः गुप्त है। केवल मतदाता ही जानता है कि उसने अपना वोट किस प्रत्याशी या पार्टी को दिया है, परन्तु इलैक्ट्रॉनिक मशीन मतदाता और प्रत्याशी के बीच माध्यम बन जाती है जिससे वोट की गोपनीयता पर भी सवालिया निशान खड़ा हो जाता है। ये सभी तर्क पहले सर्वोच्च न्यायालय में रखे जा चुके हैं परन्तु देश की सबसे बड़ी अदालत ने इसके बाद मशीन के साथ वीवीपैट उपकरण लगाने के आदेश भी दिये और कहा कि इन उपकरणों पर मतदाता देख सकता है कि उसने जिस प्रत्याशी या पार्टी को वोट दिया है वह सही गया है या नहीं। परन्तु चुनाव आयोग मतगणना के समय इन वीवीपैट पर्चियों की गणना कराने के लिए बाध्य नहीं है। वह नमूने के तौर पर किसी चुनाव क्षेत्र के एक या दो चुनाव केन्द्रों की वीवीपैट पर्चियों की गणना करा देता है। इसे लेकर भी राजनैतिक क्षेत्रों में कोहराम मचता रहता है।
अतः सबसे पहले यह जरूरी है कि भारत की चुनाव प्रणाली को पूरी तरह किसी भी प्रकार के सन्देह से दूर रखने के प्रयास चुनाव आयोग को करने चाहिएं क्योंकि लोकतन्त्र की स्थापना की जमीन चुनाव आयोग ही तैयार करता है जिस पर इस प्रणाली के सभी स्तम्भ खड़े होते हैं। रिमोट वोटिंग मशीन टैक्नोलॉजी उन्नयन के दौर के जोश में लिया गया फैसला लगता है जो कि नागरिकों की मूलभूत संवैधानिक जिम्मेदारियों से मेल नहीं खाता है। चुनाव आयोग एक स्वतन्त्र संवैधानिक संस्था है जिसका सरकार से कोई लेना-देना नहीं रहता क्योंकि यह अपनी शक्तियां सीधे संविधान से लेता है। हमारे संविधान निर्माताओं ने चुनाव आयोग के अधिकारों का निर्धारण बहुत सोच- समझ कर और विवेक से किया था तभी चुनावों के समय इसे सम्बन्धित राज्य या केन्द्र का प्रशासनिक संरक्षक बनाया गया। यह सब स्वतन्त्र व निष्पक्ष और निडर चुनाव प्रणाली गठित करने के लिए ही किया गया। नई रिमोट वोटिंग मशीन के प्रदर्शन के लिए आयोग ने सोमवार को सभी आठ राष्ट्रीय दलों व चालीस क्षेत्रीय दलों की बैठक बुलाई जिसमें सभी के प्रतिनिधियों ने भाग लिया, परन्तु सोमवार से पहले ही रविवार को विपक्षी दलों ने अपनी संयुक्त बैठक करके साफ कर दिया था कि वे रिमोट वोटिंग मशीन के पक्ष में नहीं हैं। सोमवार की बैठक में भी कुल मिलाकर यही आवाज रही।
चुनाव आयोग को भारत की प्रशासनिक व्यवस्था चलाने वाले राजनैतिक दलों का भी नियमक संविधान ने बनाया है। अतः बिना राजनैतिक सर्वसम्मति के नई मशीनों को चुनावी मैदान में नहीं उतारा जा सकता है। भारत का लोकतन्त्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र इसीलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें सत्ता और विपक्ष की प्राथमिक रूप से बराबर की भागीदारी होती है। फिर चुनाव प्रक्रिया तो इस लोकतन्त्र की वह युक्ति है जिसकी शुचिता पर पूरी व्यवस्था खड़ी होती है। हालांकि यह भी सही है कि इलैक्ट्रानिक वोटिंग मशीन को बैलेट पेपर के स्थान पर लाने का नियम स्व. राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार के दौरान ही जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 में संशोधन करके बनाया गया था, परन्तु तब भी यह टैक्नोलॉजी के प्रति अति उत्साह ही था क्योंकि टैक्नोलॉजी के अग्रणी देश अमेरिका में स्वयं चुनाव बैलेट पेपर से ही होते हैं। अतः चुनाव आयोग को पहले इलैक्ट्राॅनिक मशीनों द्वारा वोटिंग या मतदान कराये जाने के सभी विवादास्पद मुद्दों का सर्व स्वीकार्य निपटारा करना चाहिए और उसके बाद ही नई टैक्नोलॉजी का जोश दिखाना चाहिए। जरूरी यह भी है कि प्रत्येक प्रवासी मतदाता को अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए मगर यह कार्य नागरिक कर्त्तव्यों के प्रति दायित्व को बढ़ा कर किया जाना चाहिए और चुनाव आयोग को भी नये मतदाता कार्ड जारी करने के लिए अपने भीतर के कार्यतन्त्र को चुस्त-दुरुस्त करना चाहिए।