महात्मा गांधी ने कहा था कि माता-पिता की भांति धर्म भी व्यक्ति को जन्म के साथ ही मिलता है। जनक जननी को जैसे नहीं बदला जा सकता उसी प्रकार धर्म भी नहीं बदला जा सकता। यदि कोई धर्म परिवर्तन का प्रयास करता है तो वह प्रकृति के विरुद्ध जाता है। भारतीय परम्परा मानती है कि धर्म परिवर्तन आध्यात्मिक दृष्टि से असम्भव कर्म है। धर्म बदलने का अर्थ है व्यक्ति की अंतर्रात्मा को बदलना लेकिन अंतर्रात्मा कोई वस्त्र या आभूषण नहीं है कि उसे बदला, पहना या उतारा जा सके। भारत में धर्म परिवर्तन के राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव हुए हैं। इस कारण समस्याएं भी उत्पन्न हुई हैं। तथ्य तो यह भी है कि 1947 में भारत को आजादी के साथ विभाजन का अभिशाप भी मिला। इसका कारण भी पिछली सदियों में शासकों के दबाव और प्रलोभन के कारण हुआ धर्मांतरण है। भारतीय समाज ने सावधानी बरती होती तो विभाजन की नोबत ही नहीं आती। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। जहां कोई भी किसी भी प्रतिबंध के बिना अपने धर्म का प्रचार और प्रसार कर सकता है। इसी स्वतंत्रता की आड़ में सनातन चिंतन पर लगातार आघात होता आया है। भारत में धर्म परिवर्तन की साजिशें आजादी के समय से ही चल रही हैं। ईसाई मिशनरियां और कट्टरपंथी मुस्लिम संस्थाएं प्रलोभन के बल पर लोगों का धर्म परिवर्तन कराने में जुटी हुई हैं।
भारत में लव जेहाद की कई घटनाएं एक के बाद एक सामने आ रही हैं। धर्मांतरण पर बहस काफी लम्बी हो चुकी है। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने परोपकार या मदद के बदले धर्म परिवर्तन कराने को गैर कानूनी करार दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि हर किसी को अपना धर्म चुनने का अधिकार है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि लालच देकर धर्मांतरण कराया जाए। परोपकार, हर तरह के दान और अच्छे काम का स्वागत है लेकिन इसकी मंशा पर विचार किया जाना चाहिए। परोपकार का मकसद धर्मांतरण नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी दबाव, धोखे या लालच देकर धर्म परिवर्तन के खिलाफ कड़ा कानून बनाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान आई है।
यह सर्वविदित है कि आजादी के बाद देश के जिन-जिन क्षेत्रों में सरकारें नहीं पहुंची वहां ईसाई मिशनरियों ने लोगों को रुपए, भोजन, दवाइयां और अन्य जरूरत की सामग्री देकर धर्म परिवर्तन कराया। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पिछले माह जबरन धर्मांतरण संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे देश के लिए बड़ा खतरा करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जबरन धर्म परिवर्तन राष्ट्र की सुरक्षा और धर्म की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है और इसे रोकने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिएं। शीर्ष अदालत ने चेतावनी भी दी थी कि जबरन धर्म परिवर्तन नहीं रोका गया तो बहुत कठिन परिस्थिति सामने आ जाएगी। केन्द्र ने अपने जवाब में एक अनुमान के अनुसार भारत में प्रति वर्ष लगभग 8 लाख हिन्दुओं का धर्मांतरण कर मुसलमान बनाया जा रहा है। भारत में लव जिहाद भी इसी दृष्टि से फलता-फूलता दिखाई दे रहा है। विशेष रूप से वर्ष 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से तो भारत में हिन्दुओं की स्थिति लगातार दयनीय होती जा रही है। आज भारत के 9 प्रांतों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए हैं एवं इस्लामी/ईसाई मतावलम्बी बहुमत में आ गए हैं। जैसे नागालैंड में 8 प्रतिशत, मिजोरम में 2.7 प्रतिशत, मेघालय में 11.5 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश में 29 प्रतिशत, मणिपुर में 41.4 प्रतिशत, पंजाब में 39 प्रतिशत, केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में 32 प्रतिशत, लक्षद्वीप में 2 प्रतिशत, लद्दाख में 2 प्रतिशत आबादी हिन्दुओं की रह गई है। कुछ राज्यों में तो हिन्दुओं की आबादी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है।
भारत के मूल स्वभाव और उसकी प्रकृति बदलने के लिए जो धर्मांतरण हो रहा है, वह वास्तव में राष्ट्र जीवन के लिए दीमक के समान है।
कई आतंकवादी संगठन और विदेशी ताकतें भारत में जनसंख्या असंतुलन पैदा करके देश को अस्थिर करना चाहती हैं। भारतीय सनातन हिन्दू संस्कृति सबसे पुरानी संस्कृतियों में से एक है। यदि भारतीय सजग नहीं हुए तो बहुत बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा। लेकिन इसके लिए सामाजिक व्यवस्था में सुधार बहुत जरूरी है। जहां राज्य सरकारों को धर्मांतरण विरोधी कानून बनाकर सख्त कदम उठाने चाहिएं वहीं हिन्दू समाज को भी गरीबों, समाज के उपेक्षित वर्गों और जल, जंगल और जमीन के लिए जीते आदिवासी समुदायों के हितों को ध्यान में रखकर काम करना होगा। हिन्दू समाज जागरूक होकर सनातन संस्कृति की रक्षा करे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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