आरबीआई का आकलन - Punjab Kesari
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आरबीआई का आकलन

खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ौतरी के कारण जून में खुदरा मुद्रा स्फीति में आई तेजी यह दर्शाती

खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ौतरी के कारण जून में खुदरा मुद्रा स्फीति में आई तेजी यह दर्शाती है कि मुद्रा स्फीति के खिलाफ लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई। इस समय टमाटर समेत फल-सब्जियों की कीमतों में बढ़ौतरी आम आदमी की चिंता का सबब बनी हुई है। मुख्य रूप से खाद्य मुद्रास्फीति में बढ़ौतरी के कारण उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पांच महीने में पहली बार जून में बढ़कर 4.81 प्रतिशत हो गया, जो मई में 4.31 प्रतिशत था। हालांकि यह आरबीआई के सहनशीलता बैंड के भीतर है। अप्रैल में मुद्रा स्फीति की दर 4.7 प्रतिशत थी। आरबीआई का आंकलन स्पष्ट है कि महंगाई के मोर्चे पर अभी जंग जारी है। सब्जियों के दामों में महंगाई यद्यपि मौसमी और बाढ़ प्रभावित इलाकों से आपूर्ति में बाधा उत्पन्न होने के कारण है लेकिन अन्य खाद्यान्न वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि से जनजीवन प्रभावित है। वैसे तो दुनिया के बड़े-बड़े देश महंगाई पर काबू पाने के लिए जूझ रहे हैं। महंगाई का असर पूरी दुनिया में देखा जा रहा है, लेकिन यह संतोष का विषय है कि भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर है। आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एम. पात्रा और अन्य आरबीआई के अधिकारियों ने मुद्रा स्फीति को लेकर अपना आंकलन प्रस्तुत किया। 
मई 2022 और फरवरी 2023 के बीच आरबीआई ने मुद्रा स्फीति पर लगाम लगाने के लिए रेपो दर में बढ़ौतरी की थी, जिस पर आरबीआई बैंकों को उनकी अल्पकालिक फंडिंग जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसा उधार देता है। अप्रैल और जून की मौद्रिक नीतियों में आरबीआई ने रेपो दर को अप्रवर्तित छोड़ दिया था। उसके बाद मुद्रा स्फीति की दरों में नरमी देखी गई थी लेकिन भारत में मानसून की वर्षा ने काफी गड़बड़ कर दी है। इससे पहले पिछले माह आई आरबीआई रिपोर्ट में यह कहा गया था कि मुद्रा स्फीति अधिक रहने से निजी खपत पर होने वाले खर्च में कमी आ रही है जिसके परिणामस्वरूप कम्पनियों की बिक्री में सुस्ती और क्षमता निर्माण में​ निजी निवेश में गिरावट आ रही है। जब तक मुद्रा स्फीति नीचे नहीं आती तब तक इससे जुड़ी उम्मीदों को स्थिर करने और उपभोक्ता व्यय बहाल करने में मदद नहीं मिलेगी। कम्पनियों की​​ बिक्री तभी बढ़ेगी जब लोग पैसा खर्चेंगे। भारत इस मामले में भाग्यशाली है कि उसकी अर्थव्यवस्था के सभी संकेत काफी बेहतर हैं। भारत की विकास दर तेजी से बढ़ रही है और वह दुनिया की सबसे बड़ी दूसरी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है।
आरबीआई के गर्वनर शक्तिकांत दास ने पिछले महीने ही कहा था कि मुद्रा स्फीति को निर्धारित सीमा के भीतर लाने का काम अभी आधा ही हुआ है। इसलिए मुद्रा स्फीति वृद्धि परिदृश्य का आंकलन करने की जरूरत है। आरबीआई ने ​वित्त वर्ष 23-24 के लिए देश की वास्तविक जीडीपी ग्रोथ 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। जैसे-जैसे व्यापक आर्थिक सम्भावनाएं लगातार बेहतर हो रही हैं। भारत अपनी पूरी क्षमता को गतिशील बना रहा है। केन्द्र की मोदी सरकार भी अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए लगातार कदम उठा रही है। अन्य देशों के मुकाबले भारत की स्थिति बहुत बेहतर है। पूरा यूरोप महंगाई से परेशान है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते भी वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न पदार्थों और ऊर्जा की कीमतें बहुत बढ़ चुकी हैं। यही कारण है कि यूरोपियन सेंट्रल बैंक अपनी ब्याज दरों में लगातार बढ़ौतरी करते जा रहे हैं। महंगाई के चलते आम आदमी की क्रय शक्ति कम हो जाती है। इस समय उड़द और अरहर जैसी दालें भी काफी महंगी हो चुकी हैं। दूध की कीमतों में लगातार बढ़ौतरी हो रही है। यही कारण कि केन्द्र सरकार ने 2 जून को अरहर और उड़द के स्टॉक की जमाखोरी करने पर रोक लगा दी थी।
महंगाई नागरिकों के लिए अभिशाप स्वरूप है। हमारा देश एक गरीब देश है। यहां की अधिकांश जनसंख्या के आय के साधन सीमित हैं। इस कारण साधारण नागरिक और कमजोर वर्ग के व्यक्ति अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते। बेरोजगारी इस कठिनाई को और भी अधिक जटिल बना देती है। व्यापारी अपनी वस्तुओं का कृत्रिम अभाव उत्पन्न कर देते हैं। इसके कारण वस्तुओं के मूल्यों में अनियन्त्रित वृद्धि हो जाती है, परिणामतः कम आय वाले व्यक्ति बहुत-सी वस्तुओं और सेवाओं से वंचित रह जाते हैं। महंगाई के बढ़ने से कालाबाजारी को प्रोत्साहन मिलता है। व्यापारी अधिक लाभ कमाने के लिए वस्तुओं को अपने गोदामों में छिपा देते हैं।
आजकल रोजमर्रा की वस्तुओं की कालाबाजारी हो रही है। रूस से सस्ता तेल और गैस मिलने के कारण भारत को कोई बड़े संकट का सामना नहीं करना पड़ा। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में मौसम अनुकूल होते ही कृषि उत्पादों की आपूर्ति सामान्य हो जाएगी और उपभोक्ताओं को राहत मिलेेगी। रूस द्वारा यूक्रेन से अनाज निर्यात समझौता तोड़ देने से विश्व भर में गेहूं की कीमतों में उछाल आएगा लेकिन इसका भारत पर कोई ज्यादा असर नहीं होगा, क्योंकि भारत के खाद्यान्न भंडार पर्याप्त हैं और वह कई देशों को अनाज निर्यात भी करता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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