राम मंदिर : राष्ट्र का उत्सव-9 - Punjab Kesari
Girl in a jacket

राम मंदिर : राष्ट्र का उत्सव-9

श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम के साथ-साथ शौर्य के प्रतीक भी हैं। श्रीराम शस्त्र और शास्त्रों के ज्ञान में पारंगत थे। ऋषि-मुनियों ने भी अपने यज्ञों को सफल बनाने के लिए उनका सहारा लिया। उन्होंने राक्षसी ताड़का का वध करके महर्षि विश्वामित्र के यज्ञ को सफल बनाया। उन्होंने अपने वाण से मायावी मारीच को सात योजन दूर पहुंचाया। बाहू-सुबाहू और कबंध्य जैसों को मार गिराया और अन्य कई राक्षसों को मारकर जंगल को भी सुरक्षित बनाया। श्रीराम ने रावण, अहिरावण और कुम्भकरण जैसे शक्तिशाली दुष्टों का नाश किया। उन्होंने अद्वितीय संगठन शक्ति का परिचय दिया और वन में ही सेना का गठन कर दुष्ट रावण के दंभ का दमन किया।
दशरथ पुत्र राम जिस प्रकार से ब्रह्मांड के सबसे शक्तिशाली और ज्ञानी भी समझे जाने वाले रावण पर​ विजय प्राप्त करते हैं उसके पीछे तत्व यही है कि प्रतापी से प्रतापी राजा भी जब अधर्म के मार्ग पर चल पड़ता है तो उसके विरुद्ध खड़ी हुई जन शक्ति उसकी विशाल सुस​ज्जित सेनाओं तक को हरा डालती है। भारतीय संस्कृति में राम-रावण युद्ध को प्रथम ‘जन युद्ध’ की संज्ञा भी दी जा सकती है। रावण जो सप्त द्वीप पति था और प्रकांड पंडित पुलत्स्य ऋषि का पौत्र था, जब अपने अहंकार के वशीभूत होकर सभी मर्यादाएं भूल कर पर-स्त्री के हरण को अपना मार्ग समझ बैठा तो उसे साधारण से दिखने वाले राम ने ही सामान्य वानरों और भालुओं की सेना से ही हरा दिया। वस्तुतः वानर और भालू सामान्य जन के ही प्रतीक रहे होंगे क्योंकि वे युद्ध विद्या में प्रवीण थे। निश्चित रूप से इस युद्ध के ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलते हैं परन्तु भारत के लोगों की आस्था और मान्यता है कि ‘राम-रावण युद्ध’ इसी भारत की धरती पर हुआ था। जन श्रुतियों से चले इस इतिहास को पहले ऋषि वाल्मीकि और बाद में महाकवि तुलसीदास ने जब लिपिबद्ध किया तो भारत की जनता ने इसे सांस्कृतिक इतिहास बना​ दिया। इसका तात्पर्य यही है कि किसी भी देश का संस्कार केवल प्रामाणिक इतिहास ही नहीं होता है बल्कि इन श्रुतियों पर आधारित व्यवहार भी होता है। इसी वजह से रामकथा का भारत के हर क्षेत्र में गुणगान होता है और हर भाषा में हमें रामायण मिलती है जो भारत के लोगों को संदेश देती है कि समाज के भीतर ही दैत्य व देव प्रवृ​त्तियां दोनों ही निवास करती हैं। अतः हमें परिवार से लेकर समाज और राष्ट्र तक की व्यवस्था में सद आचरण और सद प्रवृत्तियों की तरफ ही बढ़ना चाहिए। सज प्रवृत्ति की पहचान जब जंगल में रहने वाले वानर और भालू तक करने में सक्षम होते हैं तो रावण महाज्ञानी होते हुए भी इनसे अछूता कैसे रह गया।
श्रीराम भी समाज कल्याण के भाव को केन्द्र में रखकर ही आमजन को अपने साथ जोड़ पाए थे। तब जाकर उन्होंने रावण जैसे शक्तिशाली पर विजय पाई थी। अतः रामायण से लेकर चंडिका स्रोत तक में जनशक्ति पर बल दिया गया है। श्रीराम का शौर्य हमें संदेश देता है कि राष्ट्र का शक्तिशाली होना बहुत जरूरी है। ताकि दुष्ट शक्तियां भारत पर बुरी नजर न डाल सकें। श्रीराम केन्द्रीय चेतना का प्रतिनिधित्व करते हैं। रावण से उनका युद्ध केवल हार-जीत का मसला नहीं है, बल्कि विध्वंसक शक्तियों पर सृजनात्मक विचारों की विजय है। भारत में विजय की अवधारणा एक नैतिक, चारित्रिक और आध्यात्मिक उपक्रम है। आज सब से बड़ी चुनौती हिंसक और आतंकवादी ताकतों से निपटने की है। इसके लिए हमें शक्तिशाली बनना होगा। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा था-
‘‘जहां शस्त्रबल नहीं,
शास्त्र पछताते या रोते हैं।
ऋषियों को भी सिद्धि,
तभी तप से मिलती है।
जब पहरे पर स्वयं,
धनुर्धर राम खड़े होते हैं।’’ (क्रमशः)

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

20 − five =

Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।