राम मंदिर : राष्ट्र का उत्सव-7 - Punjab Kesari
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राम मंदिर : राष्ट्र का उत्सव-7

बाबर इस देश को खुशहाल बनाने के लिए नहीं बल्कि इसकी सम्पत्ति को लूटने आया था। यह बात अलग है कि उसके पोते अकबर ने जब इस मुल्क की ‘महक’ को महसूस किया तो उसने इसकी खुशहाली के लिए काम करना शुरू कर दिया और हिन्दोस्तान उसका घर हो गया मगर उसके पड़पोते औरंगजेब ने मजहब के आधार पर जब इस मुल्क को चलाना शुरू किया तो उसकी सल्तनत टुकड़े-टुकड़े हो गई और कालान्तर में अंग्रेज इस मुल्क के मालिक बन गये।
मैं केवल यह सिद्ध करना चाहता हूं कि अयोध्या के राम जन्म स्थान के बारे में कोई विवाद है ही नहीं इसे जबर्दस्ती खड़ा किया गया है। इस देश के मुसलमान क्या गंगा नदी को पवित्र नहीं मानते हैं? जरा सोचिये इंडिया गेट पर जार्ज पंचम की प्रतिमा अंग्रेजों ने क्यों स्थापित कराई थी ? केवल इसीलिए कि हिन्दोस्तान की अवाम को यह अहसास होता रहे कि वे बर्ता​िनया सरकार के गुलाम हैं। 15वीं सदी में राजा- महाराजा और सुल्तान अपने धर्म प्रतीकों से यह ऐलान करते थे और वहां के स्थानीय नागरिकों को अहसास कराते थे कि ये उनको हुकूमत के डंडे के जेरे साया जी रहे हैं। यह उनकी राज करने की रणनीति थी और अवाम को अपनी ‘धमक’ का अहसास कराने का तरीका था। औरंगजेब ने मथुरा में श्रीकृष्ण जन्म स्थान और काशी में भगवान विश्वनाथ मन्दिर को मस्जिद में तब्दील करा कर यही पैगाम दिया था मगर इन कारनामों से हिन्दोस्तान के आम मुसलमान का कभी कोई लेना-देना नहीं रहा। 1947 में अंग्रेजों के षड्यन्त्र के तहत मुहम्मद अली जिन्ना ने अलग मुल्क पाकिस्तान बनवा कर यह पैगाम देने की कोशिश की कि हिन्दोस्तान हिन्दुओं को और पाकिस्तान मुसलमानों को। मगर भारत के दूरदृष्टा राजनीतिक नेतृत्व ने इसे एक सिरे से खारिज करते हुए जो भारतीय संविधान लागू किया उसमें मजहब को एक किनारे फेंक कर इसे धर्मनिरपेक्ष देश घोषित किया। इसका मतलब यही था कि मजहब के आधार पर लोगों में भेदभाव करने की इजाजत आजाद हिन्दोस्तान नहीं दे सकता क्योंकि लोकतन्त्र एक आदमी को केवल एक वोट के अधिकार से मापता है और प्रत्येक नागरिक को अपनी आस्था और विश्वास के अनुरूप अपना मजहब चुनने की इजाजत देता है। फिर राम जन्म स्थान के बारे में विवाद कैसे पैदा किया जा सकता है? क्या बाबर अपने साथ जमीन लेकर हिन्दोस्तान आया था कि वह उस पर मस्जिद बना देता? जाहिर है कि यह हिन्दोस्तान की जमीन पर ही उस अयोध्या में तामील किया गया बाबरी ढांचा था जहां हिन्दुओं का विश्वास के अनुसार श्रीराम का जन्म महाराजा दशरथ के घर हुआ था। होना तो यह चाहिए कि हिन्दोस्तान के मुस्लमान स्वयं आगे बढ़कर खुद कहें कि जैसे हमारे मक्का और मदीना मुकद्दस हैं वैसे ही तुम्हारी अयोध्या पवित्र है। इस पर तुम्हारा हक ही पहले बनता है। अदालतों से इंसान का फैसला कम हो सकता है। हम सब हिन्दोस्तानी हैं और हमारा पहला फर्ज यही बनता है कि हम एक-दूसरे की धार्मिक आस्था पर चोट न लगने दें। सियासतदानों ने तो हमें दो मुल्कों में तक्सीम तक कर डाला। हमसे बेहतर तो वह परिन्दा है जो कभी मन्दिर पर जा बैठता है और कभी मस्जिद पर और उसे हर जगह चहकना ही आता है क्या कभी मौसिकी (संगीत) का भी कोई धर्म हुआ है और भारतीय संगीत की सबसे प्राचीन धरोहर द्रुपद की धरोहर को मुसलमान गायक ‘डागर बन्धु’ बहुत कस कर संभाले हुए हैं। हिन्दोस्तान का यहीं दिलकश अन्दाज है। इसे मुुल्ला और पंडितों को गन्दला मत करने दो। यह देश राम की महिमा को अपने हृदय में सर्वत्र कल्याण के लिए बसा कर रखे हुए है।
भारत के हिन्दुओं ने राम मंदिर के लिए 550 वर्षों तक इंतजार किया। रामलला टैंट में भी रहे। कई बार बारिश आती थी तो श्रीराम का राजमुकुट भी भीग जाता था। टैंट बदलने के लिए भी प्रशासन से लेकर अदालत तक का दरवाजा खटखाना पड़ता था। इसे देखकर आस्थावान लोगों ने कितनी पीड़ा सही है इसको मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता। इतिहास में कई प्रसंग आते हैं जिनमें अशुभता में भी शुभता छुपी होती है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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