राजस्थान कांग्रेस का झगड़ा ! - Punjab Kesari
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राजस्थान कांग्रेस का झगड़ा !

इसमें किसी प्रकार के दो मत नहीं हो सकते कि राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत कांग्रेस के

इसमें किसी प्रकार के दो मत नहीं हो सकते कि राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत कांग्रेस के तपे हुए और सुलझे हुए पुराने अनुभवी नेता हैं। उनके नेतृत्व में भी राजस्थान के कांग्रेस के विधायकों को पूर्ण विश्वास है मगर इसी राज्य के युवा विधायक व पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष श्री सचिन पायलट भी नये जमाने के उदीयमान नेता हैं मगर 2020 में वह ऐसी गलती कर चुके हैं जिससे दामन छुड़ाना उनके लिए इतनी जल्दी संभव नहीं होगा क्योंकि तब उन पर कांग्रेस से विद्रोह करके भाजपा के साथ साठगांठ करके गहलोत सरकार पलटने का षड़यंत्र रचने का गंभीर आरोप लगा था। अतः राजस्थान में अब जब भी कांग्रेस आलाकमान नेतृत्व परिवर्तन करने की सोचेगा तो उसे अपनी पार्टी के प्रति वफादार रहे विधायकों की भावनाओं का संज्ञान भी लेना पड़ेगा। मगर यह सवाल स्वयं में बहुत महत्वपूर्ण है कि श्री गहलोत ने पायलट पर तब हमला बोला जबकि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के राजस्थान में प्रवेश करने में मुश्किल से आठ दिन रह गये हैं। आगामी 4 दिसम्बर को उनकी यात्रा मध्य प्रदेश से राजस्थान में प्रवेश कर जायेगी और इसका मार्ग वही रखा गया है जिसे गुर्जर बहुल क्षेत्र कहा जाता है। श्री पायलट निश्चित रूप से ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जो अपने पिता स्व. राजेश पायलट की विरासत पर एकाधिकार रखते हैं। स्व. राजेश जी केवल गुर्जरों में ही नहीं बल्कि अन्य खेतीहर ग्रामीण जातियों में भी लोकप्रिय माने जाते थे। जाहिर उनकी पहुंच तक पहुंचने में उनके पुत्र सचिन पायलट को अभी समय लग सकता है मगर गुर्जरों में निश्चित रूप से वह लोकप्रिय हैं और भाजपा द्वारा अपने मोहपाश में बांधने के पीछे भी यही कारण था। परन्तु अशोक गहलोत ऐसे नेता हैं जिनकी पहुंच राजस्थान के सर्वजाति समाज में एक समान रूप से है और पिछड़े वर्ग में सर्वाधिक। परन्तु सवर्णों व अल्पसंख्यकों के बीच भी उनकी लोकप्रियता कम करके नहीं आंकी जा सकती। इस दृष्टि से श्री गहलोत का जनाधार बहुत व्यापक और विपक्षी पार्टी भाजपा के जनाधार में भी सेंध लगाने वाला माना जाता है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि श्री गहलोत ने सचिन पायलट को निशाने पर लेते हुए इस बात का ध्यान रखा कि उनसे कांग्रेस आलाकमान की अवमानना किसी दृष्टि से न हो सके। इसी वजह से उन्होंने वे तथ्य गिना दिये जो सचिन पायलट के विद्रोह से जुड़े हुए थे। उन्होंने कहा कि आजाद भारत के राजनैतिक इतिहास में अभी तक ऐसा नहीं हुआ था कि किसी पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष ही अपनी पार्टी की सरकार गिराने की साजिश में शामिल हो जाये। अतः सचिन पायलट का भविष्य में भी मुख्यमंत्री संभव नहीं होगा। उन्होंने यह तब कहा जब सचिन पायलट श्री राहुल गांधी के साथ मध्य प्रदेश में भारत-जोड़ो यात्रा में शामिल थे। इसका मतलब यह निकाला जा सकता है कि श्री गहलोत को ऐसे संकेत मिल गये थे कि उनके राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की फुसफुसाहट हो रही है। इसे भांपते हुए उन्होंने पहले ही ऐसे कदम की काट तैयार कर ली। 
सवाल यह है कि यदि कांग्रेस आला कमान राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन करना चाहता है तो श्री गहलोत का विकल्प क्या सचिन पायलट हो सकते हैं ? 2018 के पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान सचिन पायलट प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष चुने जा चुके थे और चुनाव उन्हीं के युवा नेतृत्व के भीतर लड़ा गया था। इन चुनावों में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत से कम 97 सीटें ही मिल पायी थी। परन्तु भाजपा की सीटें काफी कम थीं जिसकी वजह से निर्दलीयों व छोटे दलों की मदद से कांग्रेस पार्टी सरकार बनाने में इस वजह से कामयाब हो गई क्योंकि मुख्यमंत्री पद पर श्री गहलोत को बैठाने को फैसला श्री राहुल गांधी ने किया था। तब वह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। अतः गहलोत को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला स्वयं राहुल गांधी का ही था। परन्तु अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे हैं। खड़गे बहुत परिपक्व और दूरदर्शी राजनीतिज्ञ माने जाते हैं । वह लोकसभा में 2014 से 2019 तक कांग्रेस की नैया के खिवैया रहे हैं और आजकल यही काम राज्यसभा में कर रहे हैं। संयोग यह है कि वह स्वयं उस 25 सितम्बर को जयपुर में हुए घटनाक्रम के चश्मदीद गवाह रहे हैं जिसे लेकर कांग्रेस पार्टी के राजस्थान के पूर्व प्रभारी महासचिव श्री अजय माकन बिफरे हुए हैं। अजय माकन चाहते थे कि 25 सितम्बर को ही श्री गहलोत को पद मुक्त करके उन्हें कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का प्रत्याशी बना दिया जाये और अगले दिन सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की शपथ दिला दी जाये। मगर कांग्रेस के 102 में से 90 से अधिक विधायकों ने हुजूर की खिदमत में पेश होना ही गंवारा नहीं किया और ऐलान कर दिया कि उनके नेता श्री गहलोत हैं।
निश्चित रूप से मुख्यमंत्री विधायकों का ही नेता होता है। इसमें बगावत कहां से आ गई। इन 90 विधायकों का नेतृत्व तीन वरिष्ठ विधायकों ने किया। माकन साहब रूठ गये कि इन विधायकों को अनुशासनहीनता का नोटिस दिये जाने के बावजूद उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई और उन्होंने अपने कथित प्रभारी पद से इस्तीफा दे दिया जबकि श्री खड़गे के अध्यक्ष बनने के बाद सभी पुराने कांग्रेस के संगठनात्मक पदाधिकारी पद मुक्त हो गये थे। माकन का कथित इस्तीफा चाय की प्याली में तूफान उठाने जैसा ही समझा गया और इसे उनका अधकचरापन भी कहा गया। अब प्रश्न यह है कि कहीं राजस्थान भी दूसरा ‘पंजाब’ न बन जाये। इस सिलसिले में फैसला श्री खड़गे को ही अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ सलाह-मशविरा करके लेना होगा और तय करना होगा कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में राजस्थान की गहलोत सरकार द्वारा किये गये जन मूलक कामों को कैसे केन्द्र में लाकर कांग्रेस की जीत का रास्ता तैयार किया जाये। श्री गहलोत के अंग्रेजी सरकारी गांधी स्कूलों की स्थापना के कदम से पूरे राजस्थान के लोगों में भारी उत्साह का माहौल माना जाता है क्योंकि यह कार्य गरीब आदमी के बच्चे को आधुनिक गुणवत्ता की शिक्षा सरकारी स्कूल में ही देने की व्यवस्था करता है। इसके साथ ही गहलोत सरकार ने और भी ऐसे फैसले जनहित में किये हैं जिन्हें क्रान्तिकारी निर्णय कहा जा सकता है। 

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