बारिश में डूबते शहर - Punjab Kesari
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बारिश में डूबते शहर

देश का सिलीकॉन सिटी माने गए बेंगलुरु बारिश के पानी में डूबा हुआ है।

देश का सिलीकॉन सिटी माने गए बेंगलुरु बारिश के पानी में डूबा हुआ  है। रिहायशी इलाकों से लेकर सड़कों तक पानी ही पानी नजर आ रहा है। सड़कों पर नावें चल रही हैं। शहर की झील का पानी उफन-उफन कर घरों में घुस चुका है। भारी बारिश की वजह से ट्रैफिक व्यवस्था ठप्प है। शहर के पोश इलाके में डूबती हुई कारें और तैरतें हुए टू व्हीलर नजर आ रहे हैं। सच पूछिये तो बारिश के पानी ने बेंगलुरु के लोगों की जिन्दगी ही बदल दी है। आईटी सिटी में आईटी कम्पनियों का कामकाज पूरी तरह से ठप्प है। कुछ में आधा स्टाफ पहुंच रहा है तो अनेक में लाखों कोशिशों के बावजूद भी स्टाफ नहीं पहुंच पा रहा। व्यापार ठप्प है। आईटी कम्पनियों का कहना है कि उन्हें ट्रैफिक जाम के चलते 250 करोड़ से ज्यादा नुक्सान हो चुका है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो आईटी कम्पनियां शहर से बाहर जाने को विवश होंगी। शहर डूब जाने के बाद प्रशासन और मौसम विभाग का रटा-रटाया जवाब होता है कि इस बार बारिश बहुत ज्यादा हुई है। बेंगलुरु में सोमवार की रात 13 सैंटीमीटर बारिश हुई। इस  बार वर्षा ने 32 वर्ष पुराने रिकार्ड तोड़े हैं। कर्नाटक के 16 जलों में ज्यादा बारिश हो रही है। इसकी वजह शीरजोन बताया जा रहा है। समुद्र से 5-6 किलोमीटर की ऊंचाई पर शीरजोन बनने की वजह से दक्षिण कर्नाटक में भारी बारिश हो रही है। शीरजोन का मतलब होता है किसी क्षेेत्र में विपरीत हवाओं का भर जाना। इससे भारी बारिश होती है। राज्य के 27 जिले बाढ़ से प्रभावित हैं। मालदीव के पास चक्रवातिय स्थितियां भी बनी हुई हैं। इससे स्थिति और भी बुरी हो सकती है। यह सही है कि देश में वर्षा का पैटर्न बदल चुका है। मानसून के दिनों में हफ्ते-हफ्ते भर बूंदाबांदी होती रहती थी और बुजुर्ग लोग एक ही कहावत बार-बार बोलते थे।‘‘शनि की झड़ी न टूटे लड़ी।’’
लेकिन अब मानसून के दिनों में एक-दो घंटे में ही तेज बारिश होती है और  उससे ही शहरों में जल-थल हो जाता है। शहरों के डूबने के कई कारण हैं। बढ़ती आबादी, बढ़ता अतिक्रमण और अनियंत्रित नियोजन शहरों के बेतरतीब विकास के बोझ तले दबते शहरों की हालत खस्ता हो रही है। डूबना एक शहर की कहानी नहीं है बल्कि हर बड़े शहर की कहानी है। बेंगलुरु से पहले चेन्नई देश का पहला आईटी हब रहे हैं। हैदराबाद, मुम्बई, पुणे, सूरत, पटना और राजस्थान, बाढ़मेर और जैसलमेर जैसे शहर भी डूबने की कहानी दोहरा चुके हैं। पानी नदियों का हो या वर्षा का वह अपने लिए रास्ते बनाएगा ही, लेकिन प्रशासन और लोग अपना रास्ता भूल चुके हैं। नदियों के किनारे कैचमैंट एरिया में आवासीय कालोनियां बस चुकी हैं, खेत प्लाट हो चुके हैं। प्लाट मकान हो चुके हैं। मकान दुकान हो चुके हैं। फिर हम कैसे उम्मीद लगाएं कि पानी आसानी से निकल जाएगा। जमीन की कीमतें आसमान पर पहुंच गई है  और जल स्रोतों पर अतिक्रमण शहरीकरण का एक नया आधार बन गया है। शासन-प्रशासन प्रकृति को जिम्मेदार बता कर अपनी जवाबदेही से बच सकता है, लेकिन चपेट में आता है आम आदमी, जिनके मकान और दुकान तबाह हो जाते हैं। महानगरों की आबादी बढ़ रही है और आबादी के बोझ तले बुनियादी ढांचा चरमरा रहा है। अब दिल्ली के पड़ोस में गुरुग्राम का ही हाल देख लीजिए। कुछ घंटे की बारिश में ही पूरा शहर जलमग्न हो जाता है और दिल्ली गुरुग्राम हाईवे पर घंटों ट्रैफिक जाम रहता है। लोगों को अपने घरों में बगैर बिजली-पानी के रहना पड़ता है। जल निकासी की समूची प्रणाली के अभाव में गुरुग्राम में हर साल बारिश से जनजीवन अस्त-व्यस्त होता है। गुरुग्राम में चिन्हित कुल 1012 जलस्रोतों में से 117 पर कानूनी या गैरकानूनी तरीके से गगनचुम्बी इमारतें खड़ी हो चुकी हैं। राजधानी दिल्ली को ही देखें तो यमुना की जमीन पर दिल्ली सचिवालय और खेल गांव कालोनी का निर्माण किसी से छिपा नहीं है। बेंगलुरु के डूबने का कारण भी अनियोजित विकास और अति​क्रमण को माना जा रहा है। प्रकृति ने पानी के संरक्षण के लिए ही झीलों, तालाबों और नदियों का निर्माण किया। हमारे पूर्वजों ने भी जल संरक्षण के लिए  ही कुंओं और तालाबों का निर्माण कराया था। न कुएं बचे, न तालाब, न ही ग्रामीण इलाकों के पोखर। आबादी का कूड़ा कचरा सीवेज में फंसा रहता है। जिनकी सफाई कभी भी सही ढंग से नहीं होती।दरअसल नीति और नियोजन पर राजनीति का वजन बढ़ता है तो शहरों को पानी में डूबना ही पड़ता है। गांव से शहरों की ओर बढ़ता पलायन और  बढ़ता शहरीकरण भी एक समस्या बन चुकी है। 2030 में भारत की 40.76 प्रतिशत आबादी शहरों में बसने लगेगी तब क्या होगा। इसका अनुमान आप लगा सकते हो। अगर आज हम बारिश का बोझ नहीं सम्भाल पा रहे तो 10 साल बाद शहरों की हालत क्या होगी। राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन को बेहतरीन शहरी योजनाएं बनानी होंगी अन्यथा तबाही का पैमाना कुछ भी हो सकता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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