इस बात की प्रबल संभावना है कि ‘करतारपुर-कॉरीडोर’ की तर्ज पर सिंध के हिन्दू व जैन मंदिरों के लिए एक नया ‘कॉरीडोर’ खुल जाए। पाकिस्तान के सिंध प्रांत के पर्यटन मंत्री जुल्फीकार अली शाह ने औपचारिक रूप से यह प्रस्ताव गत सप्ताह दुबई के एक पर्यटन समारोह में उठाया है। इस सिंधी मंत्री के अनुसार यह ‘कॉरीडोर’ पाक क्षेत्रों उमरकोट और नगर पारकर के लिए बन सकता है। उमरकोट में लगभग दो हजार वर्ष पुराना शिव मंदिर है और नगर पारकर में अनगिनत जैन मंदिर आज भी मौजूद हैं। गौरतलब है कि पाकिस्तान के सरकारी सूत्रों के अनुसार 75 लाख हिन्दू आज भी वहां रहते हैं जबकि वहां के हिन्दू संगठनों के अनुसार यह संख्या 90 लाख से भी अधिक है। वहां के कुछ मंदिरों में दर्शनार्थ जाने के इच्छुक हजारों भारतीयों के मन में ‘परमहंस’ जी महाराज समाधि (खैबर पख्तूनवा), जिला ब्लूचिस्तान में स्थित ‘हिंगलाज माता मंदिर’ (लासबेला), जिला चकवाल स्थित कटासराज और जिला मुल्तान स्थित प्रह्लाद-भगत मंदिर व आदित्य मंदिर के दर्शनों की उत्कट इच्छा है।यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अगस्त 2019 तक पाकिस्तान व भारत के बीच ‘थार एक्सप्रैस’ रेल सेवा की व्यवस्था मौजूद रही है। यह थार एक्सप्रैस सीमावर्ती कस्बों मुन्नाबाव (राजस्थान) और खोकरापार (सिंध) को जोड़ती है। वर्षों तक बंद रहने के बाद वर्ष 2006 में राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ के शासनकाल में भी इसे एक बार फिर से खोला गया था।
इधर, पाक पंजाब के कुछ क्षेत्रों में पाकपटन स्थित बाबा फरीद की दरगाह तक एक नया ‘काॅरीडोर’ खोलने का प्रस्ताव उठाया जा रहा है। यह मार्ग जिला फाजिल्का स्थित सादकी सीमा के पास अब भी पटरियां मौजूद हैं और फाजिल्का से रेलमार्ग भी अभी भी मौजूद है। ऐसा ही एक रेलमार्ग भारतीय रेलवे स्टेशन हिन्दूमल कोट (अबोहर सीमा) पर भी अभी तक रेल पटरियों सहित मौजूद है। पाकिस्तान के दोनों प्रांतों की सरकारें अब यह शिद्दत से महसूस करने लगी हैं कि यदि वे ‘कॉरीडोर’ खुल जाएं तो दोनों देशों में धार्मिक पर्यटन भी बढ़ सकता है और व्यापारिक संबंधों की बहाली भी हो सकती है। उमरकोट के शिव मंदिर को विश्व का सबसे विलक्षण शिव मंदिर माना जाता है। यद्यपि यह लगभग 2000 वर्ष पुराना है लेकिन इसके वर्तमान स्वरूप का निर्माण कार्य एक मुस्लिम फकीर ने कराया था। यहां अब भी शिवरात्रि के अवसर पर विशाल मेला लगता है और पूरे पाकिस्तान से लाखों की संख्या में हिन्दू इसमें भाग लेते हैं। इस शिव मंदिर का शिवलिंग विशेष आकर्षण व चर्चा का केंद्र रहा है। यह शिवलिंग एक सीमा तक निरंतर स्वयंमेव ऊंचा उठता है और फिर धीर-धीरे अपने मूल आकार में लौट आता है। इस शिवलिंग की निशानदेही के बारे में भी अनेकों किंवदंतियां हैं।
एक कथा के अनुसार एक चरवाहा अपनी दो गायों को चराने यहां आया करता था। उनमें से एक गाय एक विशेष स्थान पर आकर दूध देती और वह दूध देखते ही देखते उस स्थान में समा जाता था। उत्सुकतावश जब चरवाहे ने एक स्थान पर खुदाई की तो वहीं शिवलिंग दिखा और तब से ही उसकी पूजा-अर्चना आरंभ होने लगी। प्रत्यक्षदर्शियों व मीडिया-रिपोर्टिंग के अनुसार इस बार शिवरात्रि के अवसर पर लगभग ढाई लाख श्रद्धालु वहां पहुंचे थे, उनमें हिन्दू जातियों माहेश्वरी, लोहाना, महराज, खत्री, मल्ही, कोली, झील, मेघवार, चारण-गिरि, ओढ, जटिया और जोगी के श्रद्धालु शामिल थे। इस अवसर पर मंदिर के आसपास ‘ओम’ के मंत्र गुंजाते तोरण द्वार भी सजाए गए थे और पूरा क्षेत्र ओम नम: शिवाय, हर हर महादेव के जयकारों से तीन दिन तक गूंजता रहा। इन दिनों का लंगर व चायपान और रहन-सहन का पूरा खर्च वहां की पंचायतें करती हैं।
यह उत्साह इन दिनों इतना अधिक रहा है कि समीपवर्ती कस्बे ‘मिट्ठी’ में एक नया हनुमान मंदिर और एक नया भव्य कृष्ण मंदिर बनाया गया है। इसी क्षेत्र की मीरपुर तहसील में भी ‘रामा-पीर’ के नाम से एक राम मंदिर भी बन रहा है। उमरकोट व ‘मिट्ठी’ में ही दो भव्य गुरुद्वारे बन गए हैं। वहां का इतिहास भी गवाही देता है कि श्री गुरु नानक देव अपनी ‘उदासियों’ की यात्राओं के मध्य इस क्षेत्र में आए थे। इस क्षेत्र में हयात-पिताफी और सक्खड़ क्षेत्र के संत शादा राम (शादानी दरबार) वाले के धर्मस्थल भी हैं। अब वहां की पंचायतें भी प्रस्ताव पारित कर रही हैं और इन गलियारों को खोलने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों पर दबाव डाला जा रहा है।
इसके साथ ही एक सुखद घटना यह भी है कि मुल्तान-बहावलपुर क्षेत्र में अब राजनैतिक अखाड़ों में सरायकीस्तान आंदोलन भी ज़ोर पकड़ने लगा है। सरायकी भाषा व सरायकी संस्कृति को लेकर यह आंदोलन वहां के सरायकी-मुस्लिम समुदायों द्वारा ही खड़ा किया गया है और वहां पर इन दिनों उर्दू लिपि (पर्शियन लिपि) में सरायकी साहित्य की किताबें भी छपने लगी हैं और वहां के विश्वविद्यालयों में सरायकी भाषा के अलग विभाग भी स्थापित कर दिए गए हैं।