पावेल ड्यूरोव की गिरफ्तारी पर उठते सवाल - Punjab Kesari
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पावेल ड्यूरोव की गिरफ्तारी पर उठते सवाल

मैसेजिंग ऐप टेलीग्राम के संस्थापक और सीईओ पावेल ड्यूरोव की फ्रांस में गिरफ्तारी को लेकर बहुत से सवाल खड़े हो गए हैं। फ्रांस की अदालत ने उन पर आरोप तय कर जमानत पर रिहा कर दिया है लेकिन ड्यूरोव गिरफ्तारी के बाद से ही पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बने हुए हैं। ड्यूरोव की चर्चा उनकी कई देशों का नागरिकता को लेकर भी हो रही है। गौरतलब है कि ड्यूरोव के पास एक-दो नहीं बल्कि पूरे पांच देशों की नागरिकता है। टेलीग्राम पर आरोप है कि इस प्लेटफॉर्म पर ड्रग तस्करों, मनी लॉन्ड्रिंग, उग्रवादी समूहों और बच्चों से संबंधित अश्लील कंटेंट को बढ़ावा दिया जाता है।
ड्यूरोव के पास रूस, फ्रांस, संयुक्त अरब अमीरात, सेंट किट्स और नेविस की नागरिकता है। ड्यूरोव मूल रूप से रूस के निवासी हैं लेकिन करीब एक दशक पहले ड्यूरोव ने रूस छोड़ दिया था। इसके बाद ड्यूरोव ने संयुक्त अरब अमीरात के दुबई में रहने के लिए एक निवास वीजा हासिल किया। इसके बाद साल 2013 में ड्यूरोव ने कैरिबियाई देश सेंट किट्स और नेविस का पासपोर्ट हासिल किया। सेंट किट्स और नेविस अमीर लोगों के लिए स्वर्ग के रूप में जाने जाते हैं और इन दोनों देशों के पासपोर्ट्स से यूरोपीय देशों और ब्रिटेन की बिना वीजा यात्रा की जा सकती है। सवाल उठाया जा रहा है कि पावेल के पास इतने देशों की नागरिकता क्यों है?
दुनियाभर में मानवाधिकार संगठन और मानवाधिकार कार्यकर्ता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ​िढंढोरा पीटते हैं लेकिन सरकारों का कहना है कि अभिव्यक्ति की आजादी सम्पूर्ण नहीं है और यह सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य के मद्देनजर कुछ प्रतिबंधों के अधीन है जिन्हें मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में संहिताबद्ध किया गया है। ‘टेलीग्राम’ के संस्थापक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी पावेल ड्यूरोव एक ऐसे प्रौद्योगिकी निर्माता हैं जिन्होंने अपने मंच पर अभिव्यक्ति की पूर्ण आजादी पर जोर दिया है और असंतुष्टों को अपने मैसेजिंग एप्लिकेशन का इस्तेमाल करने की इजाजत देकर राष्ट्र-राज्यों की नाराजगी का जोखिम मोल लेते हुए अपनी एक व्यवस्था-विरोधी छवि बनाई है। उनके ऐप पर आपराधिक गतिविधि से संबंधित जांच के सिलसिले में फ्रांसीसी अधिकारियों द्वारा उनकी हिरासत और गिरफ्तारी ने यह सवाल उठाया है कि क्या यह कार्रवाई इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की आजादी पर भयावह प्रभाव डालने के इरादे से की गई है लेकिन इसका जवाब कहीं ज्यादा जटिल है।
अपने ऐप पर कंटेंट के प्रति अहस्तक्षेप के उनके नजरिए का हश्र यह हुआ है कि इस मंच पर उग्रवाद, मादक पदार्थों के डीलरों, घोटालेबाजों और फ्रांस सरकार के मुताबिक, बाल अश्लीलता (चाइल्ड पोर्नोग्राफी) को भी जगह मिलती है। श्री ड्यूरोव की गिरफ्तारी के जवाब में टेलीग्राम ने कहा है कि उसके द्वारा किया जाने वाला ‘मॉडरेशन’ “इस उद्योग के मानकों के तहत है” और सवाल किया है कि क्या मंच/मालिक “उस मंच के दुरुपयोग” के लिए उत्तरदायी या जिम्मेदार हैं। यह एक मामला हो सकता है लेकिन अगर फ्रांस सरकार की जांच में यह देखा गया है कि इस मंच ने घृणास्पद भाषण, दुष्प्रचार और आपराधिक गतिविधि से संबंधित सामग्री पर अंकुश लगाने के अनुरोधों पर कार्रवाई करने से जानबूझकर इन्कार कर दिया है तो ड्यूरोव कानून के लंबे हाथों से नहीं बच सकते और उन्हें बचना भी नहीं चाहिए।
कई देश सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने के आरोप लगाते रहे हैं। भारत में भी व्हाइट्सएप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के कॉटैंट को लेकर केन्द्र सरकार को आपत्तियां रही हैं। कॉटैंट को लेकर इन प्लेटफार्मों का संचालन करने वाली कम्पनियों का केन्द्र सरकार से टकराव भी हो चुका है। टेलीग्राम की तरह मेटा व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, टिकटाक और एक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पूरे विश्व में चल रहे हैं। क्या कोई भी देश इन प्लेटफार्मों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देशद्रोही गतिविधियों, लोगों की आदतों और विचारधारा को बदलने के कुत्सित प्रयासों या अश्लीलता फैलाने और आतंकवादियों का अड्डा बनने की अनुमति दे सकता है? भारत में भी सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने के लिए कानून बनाए जा रहे हैं। लोकतांत्रिक मूल्यों की वकालत की जानी चाहिए और सभी को अपनी बात बिना रोक-टोक के कहनी चाहिए। इस बात के सभी पक्षधर हैं लेकिन अगर सोशल मीडिया प्लेटफार्म अपराधों को प्रोत्साहित करने, घृणास्पद भाषणों, दुष्प्रचार और आपराधिक गतिविधियों से सम्बन्धित सामग्री परोसने का प्रयास करते हैं या ​िफर नशीले पदार्थों के तस्कर और आतंकवादी समूह अपने प्रसार के लिए इसका दुरुपयोग करने लगे तो फिर प्रतिबंध लगाए ही जाने चाहिए। क्या सही, क्या गलत इसका फैसला स्वयं उपयोगकर्ताओं को भी करना होगा।

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