रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने 20 घंटे के अन्दर-अन्दर बगावत को खत्म कर खुद को एक बार फिर विजेता साबित किया है। उससे स्पष्ट है कि रूस के शक्तिशाली नेता वे ही हैं। पुतिन ने प्राइवेट आर्मी वैगनर के खिलाफ दोहरी रणनीति का इस्तेमाल किया। एक तरफ उन्होंने वैगनर प्रमुख येवगेनी प्रीगोझिन और उनके लड़ाकों के खिलाफ बगावत के आपराधिक मामले दर्ज किए और बागियों को गद्दार करार देते हुए उन्हें सख्त सजा देने का ऐलान किया। दूसरी तरफ बेलारूस के राष्ट्रपति की मध्यस्थता में वैगनर चीफ से बातचीत की गई। पुतिन की रणनीति के आगे वैगनर का बगावती प्लान विफल हो गया। मास्को की तरफ बढ़ रहे येवगेनी के लड़ाके वापिस लौट गए। वैगनर चीफ को माफ करके राष्ट्रपति पुतिन ने उनके खिलाफ दर्ज अापराधिक मामले वापिस ले लिए। यही नहीं पुतिन ने उनके ग्रुप को सुरक्षा का भरोसा भी दिया। समझौते के तहत येवगेनी अब बेलारूस में जाकर रहेंगे। इस तरह रूस में नाटकीय और अफरातफरी भरे दिन का अंत हो गया। वैगनर समूह भाड़े के लड़ाकों की एक निजी सेना है जो पैसों के बदले में लड़ती है।
वैगनर समूह के लड़ाके रूस की नियमित सेना के साथ मिलकर यूक्रेन के खिलाफ युद्ध लड़ रहे थे। ऐसी रिपोर्टें हैं कि वैगनर ग्रुप आैर रूस में युद्ध के संचालन को लेकर मतभेद थे। वैगनर ग्रुप की ही तरह पश्चिमी देशों में भी प्राइवेट आर्मी का इस्तेमाल करने का प्रचलन है। हाल ही के महीनों में येवगेनी प्रीगोझिन ने कई बार रक्षामंत्री पर वैगनर लड़ाकों को जानबूझकर कम हथियार सप्लाई करने का आरोप लगाया। रूसी रक्षामंत्री वैगनर चीफ पर जून के अंत तक अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डाल रहे थे, जिसे येवगेनी ने उनके ग्रुप पर सरकारी नियंत्रण कायम करने की कोशिश माना। येवगेनी ने यह भी आरोप लगाया था कि उसके कुछ लड़ाकों की यूक्रेन में हमला करके हत्या कर दी। येवगेनी प्रीगोझिन को पुतिन का खासमखास समझा जाता था। अपराधों में सजा भुगत चुके प्रीगोझिन पुतिन के काफी करीब थे और रूसी सेना को भोजन उपलब्ध कराने के लिए कैटरिंग का ठेका भी उन्हीं के पास था। वह पुतिन के शैफ के रूप में लोकप्रिय थे और कहा जाता था कि जो पुतिन चाहते थे वहीं प्रीगोझिन उन्हें परोस देते थे। वैगनर ग्रुप को अपरािधयों का ऐसा गिरोह माना जाता है जो पुतिन की ढाल बनकर खड़ा हो जाता था। प्रीगोझिन जेलों का दौरा करता था और कैदियों को अपने लड़ाकों के तौर पर भर्ती करता था। उसके द्वारा पुतिन के खिलाफ विद्रोह आश्चर्यजनक तो है ही।
अब सवाल यह उठता है कि क्या इस विद्रोह से रूस की सत्ता में मौजूद दो शक्तिशाली लॉबियों की दरार सामने आई है। सेंट पीटर्सबर्ग लॉबी का नेतृत्व पुतिन कर रहे हैैं। जबकि मास्को लॉबी का नेतृत्व रूस के रक्षामंत्री सर्गेई शोइगो कर रहे हैं। सवाल यह भी है कि क्या पुतिन और रक्षामंत्री में मतभेद हैं। हालांकि पश्चिम का मीडिया पुतिन के खिलाफ धुआंधार प्रचार में जुटा हुआ है। पश्चिमी मीडिया का सारा जाेर पुतिन को कमजोर बनाने, भयंकर बीमारी से ग्रस्त होने और सत्ता पर पकड़ ढीली होने का शोर मचाने पर लगा हुआ है लेकिन सच तो यह है कि पुतिन ने कुछ घंटों में बगावत को विफल कर अपनी छवि को बरकरार रखा है। यह सही है कि येवगेनी की बगावत ने वह कर दिखाया जो रूस-यूक्रेन युद्ध में पश्चिमी देश नहीं कर पाए। पुतिन इस समय हर किसी के बीच चर्चा का विषय बने हुए हैं। उनके करीबी उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जानते हैं जिसका अगला कदम क्या होगा, कोई नहीं जानता। विदेश मसलों पर पुतिन क्या सोचते हैं और कोई नीति बनाते समय उनके दिमाग में क्या चलता है, कोई नहीं जानता।
यूक्रेन से जंग शुरू होने के बाद अमेरिका से लेकर यूरोप तक चिंताएं दो गुणी हो गईं लेकिन पुतिन जंग के बीच ही अपना जन्मदिन मनाते दिखे। लोग पहले से उन्हें ऐसे राजनेता के तौर पर देखते हैं जो किसी से न तो डरता है और न ही झुकता है। वह आक्रामक भी है और चतुराई उनकी नीतियों में दिखाई देती है। केजीवी के जासूस रहे पुतिन ने अपने फौलादी इरादों से खुद को अपराजय बनाया हुआ है। वे 1996 में तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्तीसन के प्रशासन में बतौर डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ शामिल हुए थे। 1999 में वह रूस के प्रधानमंत्री बने। उसके बाद उन्होंने आज तक पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने रूसी संविधान में संशोधन करा लगातर तीन बार रूस का राष्ट्रपति बनने का मार्ग प्रशस्त किया। आज वह ऐसे राजनेता बन गए हैं जिनके बिना अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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