नफरत नहीं प्रेम से ही तरक्की - Punjab Kesari
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नफरत नहीं प्रेम से ही तरक्की

आज 9 अगस्त है और 8 अगस्त कल ही बिना किसी ‘झंकार’ के गुजर गया। इस दिन का

आज 9 अगस्त है और 8 अगस्त कल ही बिना किसी ‘झंकार’ के गुजर गया। इस दिन का भारत के आधुनिक इतिहास में बहुत महत्व है क्योंकि 8 अगस्त को ही महात्मा गांधी ने मुम्बई में आयोजित कांग्रेस की विशाल सभा में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का आह्वान किया और देशवासियों से ‘करो या मरो’ की अपील की। इसके बाद  अंग्रेज सरकार ने कांग्रेस पार्टी के महात्मा गांधी से लेकर हर बड़े व छोटे नेता को गिरफ्तार कर लिया। यहां तक की ग्राम पंचायत स्तर के कांग्रेसी नेता भी जेल में डाल दिये गये। एक प्रकार से अंग्रेजों ने पूरी कांग्रेस पार्टी को ही जेलखाने में डाल दिया था। उस समय द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो चुका था और यह पूरे उफान पर था। मगर यह समय मुस्लिम लीग के नेता मुहम्मद अली जिन्ना के लिए स्वर्ण अवसर बन गया और उसने अंग्रेज वायसराय ‘लार्ड लिलिथगो’ के साथ एक सौदा किया कि उनकी पार्टी मुसलमानों को ‘ब्रिटिश इंडियन आर्मी’ में भर्ती करने के लिए मुहिम चलायेगी जिससे अंग्रेजों की मदद हो सके। जिन्ना ने यह सौदा किया कि अंग्रेजों की इस मदद के बदले उन्हें ‘पाकिस्तान’ देना होगा।
दूसरी तरफ कांग्रेस ने भारतीय युवकों से सेना में भर्ती न होने की अपील कर रखी थी और शर्त रखी थी कि अंग्रेज पहले भारत को स्वतन्त्र करने का समझौता करें। दूसरी तरफ कट्टरपंथी हिन्दू संगठन भी राजे- रजवाड़ों के साथ हिन्दुओं से सेना में भर्ती होने की अपील कर रहे थे। लेकिन कहीं भीतर से अंग्रेजों को यह स्थिति भा रही थी क्योंकि 1857 की सैनिक क्रान्ति के बाद पहली बार ऐसा हो रहा था कि भारत के हिन्दू-मुसलमानों को अंग्रेजों की मदद के लिए उनके ही सम्प्रदायों के नेता प्रेरित कर रहे थे। इसका परिणाम यह हुआ कि अंग्रेजों ने अपनी शर्तों पर भारत का बंटवारा किया और भारत को आजाद किया। यह उदाहरण मैं इसलिए दे रहा हूं जिससे यह स्पष्ट रूप से समझा जा सके कि स्वतन्त्र भारत में हिन्दू-मुसलमान भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं हो सकती क्योंकि ऐसा होने पर हम भारत की एकात्म शक्ति को ही कमजोर करेंगे और अपने पुरखों की सारी मेहनत पर पानी फेर देंगे। भारत ने अभी तक जो तरक्की की है उसके लिए हमारे दूरदर्शी राजनेताओं ने रात-दिन एक किया है और तब जाकर आज हम विज्ञान से लेकर कृषि तक के क्षेत्र में प्रगति कर पाये हैं। किसी भी चौकन्ने देश के लिए उसका हर नागरिक सम्पत्ति होता है क्योंकि देश के विकास में उसकी अपने स्तर पर एक भूमिका होती है। 
भारत के मुसलमानों ने अपनी इस भूमिका को आजादी के बाद से बखूबी निभाया है और भारत की अर्थव्यवस्था को जमीनी स्तर पर मजबूत किया। गंगा क्षेत्र के राज्यों, जिसे हम उत्तर भारत कहते हैं, की  ग्रामीण अर्थव्यवस्था में उनका अंश सर्वाधिक रहा है। इसके साथ ही राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व प. बंगाल तक में भी कृषि से लेकर दस्तकारी व शिल्पकारी और लघुतम उद्योगों में उनकी उपस्थिति महत्वपूर्ण रही है। यदि हम इस कौम की तुलना पाकिस्तानी मुसलमानों से करने लगेंगे तो भयंकर गलती करेंगे और अपनी ही विकास गति को उल्टा मोड़ने का प्रयास करेंगे। भारतीय जनसंघ के नेता स्व. दीनदयाल उपाध्याय ने स्वतन्त्र भारत में हिन्दू-मुस्लिम एकता को इस मुल्क की जमीन की जरूरत बताया था। 1956 के करीब जब समाजवादी नेता डा. राम मनोहर लोहिया ने ‘भारत-पाक महासंघ’ बनाने का प्रस्ताव रखा तो स्व. उपाध्याय ने उसका समर्थन किया। दीनदयाल जी ने ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ का सिद्धान्त भी प्रतिपादित किया जिसका मूल आशय भारत के हिन्दू-मुसलमानों के बीच साझा तारों को ही खोजना था। आज हम जिस मुकाम पर आकर खड़े हो गये हैं उसका सबसे कटु उदाहरण विगत 31 जुलाई को जयपुर-मुम्बई एक्सप्रैस रेलगाड़ी में हुआ वह वीभत्स व अमानुषिक कांड है जिसमें रेलवे सुरक्षा पुलिस के एक जवान चेतन सिंह ने तीन मुस्लिम यात्रियों को गोली मारने के साथ ही उसे एेसा करने से रोकने वाले सब इंस्पैक्टर टीका राम को भी गोली से भून डाला। 
सवाल यह है कि रेलवे यात्रियों की सुरक्षा के लिए बनी रेलवे पुलिस के एक जवान ने एेसा क्यों किया? जाहिर है कि उसके दिल में एक सम्प्रदाय के लोगों के खिलाफ जहर घोल दिया गया था। यह नफरत का जहर उसे किसने पिलाया और कहां से आया? यह कैसी विडम्बना है कि हम एक तरफ चांद पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं और दूसरी तरफ मजहब देखकर भारतीय नागरिकों की पहचान कर रहे हैं। भारतवासियों को नहीं भूलना चाहिए कि 1545 के लगभग जब भारत के मुगल सम्राट अकबर से ईरान के शहंशाह ने पूछा कि वह बतायें कि वह कौन सा मुसलमान है, शिया है या सुन्नी है? तो अकबर ने उत्तर लिख भेजा कि वह हिन्दोस्तानी मुसलमान है। जरा मुझे कोई बताये कि  आज की पीढ़ी के लोगों की माताएं या दादियां क्या यह गाना सुन कर पूजा-पाठ तन्मयता से नहीं करती थीं कि ‘तेरे पूजन को भगवान–बना मन मन्दिर आलीशान’। सत्तर के दशक तक यह गाना हर हिन्दू के घर में पूरी श्रद्धा के साथ सुना जाता था। मगर यह गाना गाया किसने था। अपने जमाने की मशहूर गायिका ‘श्मशाद बेगम’ ने। जरा कल्पना कीजिये, अगर 1947 में भारत का बंटवारा न हुआ होता तो आज भारत की आर्थिक स्थिति क्या होती? जिस गति से हमने पिछले 75 सालों में विकास किया है तो संयुक्त भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया होता। यह अच्छी बात है कि चेतन सिंह पर धारा 153 ए बी लगाई गई जो दो समुदायों में दुश्मनी पैदा करने की गरज से किये गये कृत्य पर लगती है। हत्या का मुकदमा तो उस पर दर्ज हुआ ही है। भारत में यह बहुसंख्यक हिन्दुओं का ही कर्त्तव्य बनता है कि वे मुसलमानों की सुरक्षा में आगे आएं और मुसलमान हिन्दुओं की, तभी तो यह देश विश्व का अग्रणी राष्ट्र बनेगा। 
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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