सियासत बनाम सियासत - Punjab Kesari
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सियासत बनाम सियासत

कोलकाता में महिला डॉक्टर से रेप और मर्डर मामले में उठे तूफान के बाद पश्चिम बंगाल विधानसभा में मंगलवार को एंटी रेप बिल ‘अपराजिता’ सर्वसम्मति से पारित कर दिया। आपराधिक कानून समवर्ती सूची का मामला है। इसलिए राज्य सरकार और केन्द्र सरकार आपराधिक कानून बना सकते हैं। राज्य द्वारा ऐसा संशोधन वाला कानून लाना संवैधानिक रूप से सही है लेकिन इस विधेयक को केन्द्र सरकार से भी मंजूरी की जरूरत होगी। गृह मंत्रालय प्रस्तावित कानून की जांच करेगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह मौजूदा राष्ट्रीय कानूनों और नीतियों के अनुरूप है। भले ही केन्द्र सरकार इस विधेयक को मंजूरी दे दे फिर भी इस विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी है। पश्चिम बंगाल विधानसभा में विधेयक को पारित कराने के लिए भाजपा ने भी समर्थन दिया। महिला डॉक्टर से रेप और मर्डर के मामले में अब तक जो सामने आया वह यही है कि इस मुद्दे पर जमकर ​सियासत हुई और राजनीति का जवाब राजनीति से ही दिया जा रहा है। विपक्षी सदस्यों ने ममता बनर्जी के इस्तीफे को लेकर जमकर हंगामा किया। इस पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी कहां चूकने वाली थीं। उन्होंने भी यह कहकर ​विपक्ष को जवाब दिया ​कि प्रधानमंत्री महिलाओं की सुरक्षा में कोई पहल नहीं कर सके इसलिए उन्हें और गृहमंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए।
2012 के निर्भया कांड के बाद हुए सामाजिक आंदोलन के बाद बलात्कार कानूनों को सख्त बनाया गया था। दोषी को अधिकतम सजा के तौर पर मृत्युदंड का प्रावधान किया गया था। इसके बावजूद देश में बलात्कार की घटनाओं को रोका नहीं जा सका। महाराष्ट्र विधानसभा में बलात्कारियों को फांसी देने वाला बिल शक्ति कानून पारित किया था। यह बिल तब पास किया गया था जब उद्धव ठाकरे की महाविकास अघाड़ी सरकार सत्ता में थी लेकिन अभी तक भी यह विधेयक प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाया। पश्चिम बंगाल विधानसभा में पारित किए गए विधेयक में कुछ अलग बातें हैं। जैसे अगर पीड़िता कोमा में जाती है या उसकी मौत हो जाती है तो दोषी को 10 दिन के अन्दर फांसी दी जानी चाहिए।
अब सवाल यह है कि जब तृणमूल कांग्रेस और भाजपा महिलाओं की सुरक्षा चाहती हैं तो फिर टकराव की स्थिति कैसे बन गई। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा था कि वह महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों से निराश और भयभीत हैं और लोगों का गुस्सा जायज है। जब माननीय हाईकोर्ट के आदेश पर रेप और मर्डर केस की जांच सीबीआई के हवाले कर दी गई थी और सीबीआई ने आरोपी को अपनी हिरासत में लेकर जांच परीक्षण भी किए तो फिर भाजपा को 12 घंटे का बंद बुलाने की जरूरत क्या थी? बंद के दौरान झड़पें भी हुईं, आगजनी भी हुई, गिरफ्तारियां भी हुईं। स्थिति यह थी कि सरकारी बस ड्राइवर भी हैलमेट पहनकर बस चलाते दिखे। जब महिलाओं के प्रति अपराधों के ​लिए केन्द्रीय स्तर पर सख्त कानून है तो फिर विधानसभा में नया विधेयक पारित करने की जरूरत क्या थी? इसका सीधा सा जवाब है सियासत। महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को राजनीति का मुद्दा न बनाने की अपील करने वाले नेता भी अपनी जरूरत के मुताबिक बड़े आराम से इसे सियासी रंग दे देते हैं। पश्चिम बंगाल में यही कुछ हो रहा है। पश्चिम बंगाल की राजनीति जितनी आक्रामक है, उतनी ही हिंसक भी। शायद इसकी वजह वहां के राजनीतिक इतिहास में है। 1970 और बाद के दशकों में राज्य ने नक्सलवादियों और सीपीएम कार्यकर्ताओं के बीच के हिंसक टकरावों को देखा। आरोप लगते रहे हैं कि कम्युनिस्ट दलों ने विपक्ष को पनपने नहीं दिया। बदलाव की उम्मीदें जगाकर आई टीएमसी भी हिंसा के उसी चक्रव्यूह में फंस गई। ऐसा लगता है कि जो असामाजिक तत्व पहले सक्रिय थे, वे अब भी अपना ‘खेल’ दिखा रहे हैं, बस पार्टी बदल चुकी है। पश्चिम बंगाल बेहद संवेदनशील राज्य है। वहां हुई कोई भी घटना पूरे देश पर असर डालती है। ऐसे में पक्ष हो या विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी है कि जनमत को प्रभावित करने की प्रक्रिया में इस बात का खास ख्याल रखें कि हिंसक तत्वों को बढ़ावा न मिले।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि तमाम कोशिशों के बावजूद महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध होने वाले अपराधों की संख्या बढ़ती गयी है। वर्ष 2022 के आंकड़े इंगित करते हैं कि हर दिन देश में औसतन 1220 ऐसी घटनाएं होती हैं, यानी हर घंटे 51 मामलों में प्राथमिकी दर्ज की जाती है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 के अनुसार, 15 से 49 वर्ष की आयु की लगभग एक-तिहाई महिलाओं के साथ हिंसा हुई है। विभिन्न अध्ययनों में ऐसा पाया गया है कि बहुत से अपराधों की शिकायत दर्ज नहीं की जाती है। इसका मतलब है कि वास्तविक स्थिति कहीं अधिक भयावह है।
यह भी रेखांकित हो चुका है कि ऐसे मामलों में पुलिस तंत्र में संवेदनशीलता का अभाव है। महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में क्षमा नहीं किया जा सकता। सभ्य समाज में अपराधियों के लिए कोई जगह नहीं होनी चा​हिए। बेहतर होगा कि अब सियासत न की जाए और राजनीतिक दल सामा​िजक स्तर पर जागरूकता और संवेदना बढ़ाने का काम करें।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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