‘पीएम इन वेटिंग क्लब’ व फड़णवीस? - Punjab Kesari
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‘पीएम इन वेटिंग क्लब’ व फड़णवीस?

आप इसे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस का नया सियासी अवतार…

‘आप दरिया हैं तो बस दरिया सा

ही बहते रहिए मुस्सलसल

हमें भी ज़िद है कि हम इसी टूटी कश्ती से आपको पार करेंगे’

आप इसे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस का नया सियासी अवतार भी मान सकते हैं, क्योंकि अपने इस नए कार्यकाल में हुजूर के अंदाज कुछ बदले-बदले से हैं। वे अपनी इमेज को लेकर काफी चौकस हो गए हैं, कहते हैं उनकी एक कोर टीम सतत् इस बात का मूल्यांकन करती है कि ‘सीएम के हर एक्शन पर जनता, मीडिया व दिल्ली दरबार की कितनी सकारात्मक प्रतिक्रिया है।’ अब से पहले के कार्यकालों में बतौर सीएम फड़णवीस का दरबार जनता, पार्टी कार्यकर्ताओं यहां तक कि विपक्षी नेताओं के लिए भी चौबीसों घंटे खुला रहता था, वे आसानी से फड़णवीस तक पहुंच सकते थे और उनसे अपने मन की बात शेयर कर सकते थे। पर फड़णवीस के इस नए कार्यकाल में मंत्रालय के छठे फ्लोर को (जहां फड़णवीस बैठते हैं) इतना चाक-चौबंद बना दिया है कि वहां सीएम की अनुमति के बगैर उड़ती चिड़िया भी पर नहीं मार सकती। अगर सीएम वाकई किसी से मिलना चाहते हैं तो उन्हें बकायदा छठे फ्लोर पर एंट्री के लिए ‘पास’ बनवाना होता है, हालांकि पास तो आगंतुकों को मंत्रालय के किसी फ्लोर पर जाने के लिए चाहिए होगा, पर अब खास फ्लोर के लिए पास जारी किया गया है, मुलाकाती उसके अलावा मंत्रालय के किसी और फ्लोर तक नहीं जा सकता है।

संघ भी फड़णवीस के पक्ष में खुल कर कदमताल कर रहा है, माना जाता है कि संघ से सलाह-मशविरे के बाद ही फड़णवीस ने कोई 130 सरकारी अधिकारियों की एक लिस्ट तैयार की थी जिन्हें सभी संबंधित मंत्रियों को शेयर कर दिया गया था कि वे इसी लिस्ट से अपनी पसंद के ओएसडी रख सकते हैं। यहां तक कि एकनाथ ​िशंदे और अजित पवार को भी अपने ओएसडी का चयन इसी लिस्ट से करना पड़ा था।

महाकुंभ में मौनी अमावस्या के दिन मची भगदड़ में जब से इतने श्रद्धालुओं को अपनी जान गंवानी पड़ी है, उसके बाद से ही निरंतर योगी का ग्राफ गिरा है, उनके सबसे बड़े पैरोकार संघ की भी भंगिमाएं किंचित बदली-बदली सी लग रही है, साधु-संतों की ओर से असहमति के स्वर मुखर होने के बाद अब माना जा रहा है कि भाजपा के अंदर से ही योगी के इस्तीफे की मांग उठेगी या उठवायी जाएगी। यानी ‘पीएम इन वेटिंग क्लब’ के सबसे बड़े भगवा दावेदार की ठनक मद्दिम पड़ने के बाद अब फड़णवीस खुले हाथों से इस मजमे को लूटना चाहते हैं, उनके इरादे भी पक्के हैं और वे अपनी गोटियां भी सही जगह चल रहे हैं।

बात हिंदू राष्ट्र संविधान की

5 फरवरी को जिस दिन दिल्ली में मतदान होना है उसी दिवस को रेखांकित करते महाकुंभ के साधु-संतों की संघ के दिग्दर्शन में एक महत्वाकांक्षी योजना परवान चढ़ रही थी। सूत्रों की मानें तो संघ के विचारक हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को मूर्त रूप देने में काफी पहले से जुटे थे। सूत्र यह भी बताते हैं कि खूब विचार मंथन के बाद 501 पृष्ठों की ‘हिंदू राष्ट्र संविधान’ को मूर्त रूप भी दे दिया गया था। इत्तफाक से 5 फरवरी को ही महाकुंभ में साधु-संतों व अखाड़ों की मौजूदगी में इस हिंदू राष्ट्र संविधान का अनावरण होना था, पर मौनी अमावस्या के दिन कुंभ में हुए हादसे की वज़ह से फिलहाल इस कार्यक्रम को टाल दिया गया लगता है।

भले ही यह एक कार्यक्रम फौरी तौर पर टला हो, पर न तो साधु-संतों के इरादे टले हैं और न ही भारत एक हिंदू राष्ट्र को लेकर संघ की भावनाएं टली हैं, संघ अपने अवतरण के शताब्दी वर्ष में ऐसे ही किसी बड़े कार्य को अंजाम तक पहुंचाना चाहता है जिससे उसका वजूद सदा-सदा के लिए मौजूं बन जाए।

भगवा राज में पत्रकारों पर गाज़

यूपी की ग्रेटर नोएडा पुलिस ने पिछले दिनों एक वरिष्ठ पत्रकार व एक समाचार पोर्टल के संस्थापक पंकज पराशर को उनके तीन साथियों समेत फर्जी खबर चलाने व जबरन वसूली के आरोप में गिरफ्तार कर लिया, इन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भी भेज दिया गया है। सनद रहे कि पराशर ‘नोएडा मीडिया क्लब’ के अध्यक्ष भी हैं। पुलिस ने इन पत्रकारों पर यह कार्यवाही एक रीयल स्टेट डीलर की ​िशकायत पर की है।

सूत्रों की मानें तो कहीं न कहीं इस गिरफ्तारी के तार चर्चित ‘चिटेहरा भूमि घोटाले’ से जुड़े हैं। कहते हैं इस भूमि घोटाले के लाभार्थियों में यूपी के कई आईएएस व आईपीएस अधिकारी शामिल हैं। पर बाद में इन अधिकारियों व इस घोटाले से जुड़े इनके रिश्तेदारों को क्लीन चिट दे दी गई थी। तत्कालीन राजस्व निरीक्षक पंकज निर्वाल ने 22 मई 2022 को ग्रेटर नोएडा के दादरी थाने में एक एफआईआर भी दर्ज कराई थी कि ‘कैसे गरीबों को आवंटित पट्टे की जमीनों को सरकारी अधिकारी मिलीभगत से हड़प रहे हैं।’

इस पर अपर पुलिस आयुक्त की अध्यक्षता में एक एसआईटी का गठन हुआ और इस भूमि घोटाले के मास्टर माइंड के तौर पर एक कथित भूमाफिया यशपाल तोमर का नाम सामने आया था। पर नोएडा को जब से नया पुलिस आयुक्त मिला है यह पूरा मामला ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया गया लेकिन पंकज पराशर निर्भिकता से इस मुद्दे को उठाते रहे और चीख-चीख कर कहते रहे कि ‘भूमाफिया और प्रशासन की मिलीभगत से सारा खेल चल रहा है और पुलिस भूमाफियाओं पर मुकदमे भी दर्ज नहीं कर रही’, शायद उन्हें अपनी इसी साफगोई की कीमत अब चुकानी पड़ रही है, जबकि वे यूपी के मुख्यमंत्री योगी की तारीफों के पुल बांधते कभी थकते नहीं थे, जाने योगी जी का ध्यान किधर है?

एक गैर भाजपाई सीएम की बगावत

गैर भाजपा दल के इस मुख्यमंत्री को सुर्खियों की सवारी गांठना बखूबी आता है। एक समय खूब हल्ला मचा कि नैतिकता व सुचिता वाले प्रशासन की दुहाई देने वाले सीएम साहब के राज में काम करवाने वाले लोगों ने जान लिया है यहां काम कैसे होते हैं। जब सीएम साहब की धर्मपत्नी के बारे में उनके लेन-देन को लेकर चर्चाएं गर्म होने लगी तो पार्टी मुखिया ने सीएम साहब को तलब कर दो टूक कह दिया कि ‘या तो बीवी चुन लो या कुर्सी,’ जाहिर है सीएम साहब ने कुर्सी चुनना ज्यादा पसंद किया। फिर घर में महाभारत मचा और बीवी नाराज़ होकर विदेश चली गईं।

दिल्ली ने भी पूरे हालात पर चौकस नज़र रखी हुई है, लेन-देन के कुछ बड़े कागजात दिल्ली के पास भी आ गए हैं। अब सुना जा रहा है कि मार्च में सीएम साहब को बदला जा सकता है, पर कहते हैं उन्होंने भी अपने हाईकमान से दो टूक कह दिया है कि अगर उन्हें जरा भी छेड़ा गया तो वे अपने वफादार विधायकों को साथ लेकर भाजपा में शामिल हो जाएंगे यानी एक और राज्य में भाजपा की सरकार आने का संयोग बन रहा है।

…और अंत में

क्या दिल्ली में राहुल गांधी से निजी रार केजरीवाल को भारी पड़ने लगी है। दिल्ली में सुप्तप्रायः कांग्रेस राहुल के मैदान में उतरने के बाद एक नए अवतार में सामने आ गई है। इसको लेकर तो अब आम आदमी पार्टी से सहानुभूति रखने वाले रणनीतिकार भी दबे हुए स्वरों में कहने लगे हैं कि ‘भले ही दिल्ली में आप एक बार फिर से सरकार बना लें, पर सिर्फ कांग्रेस की वज़ह से उसे 8-10 सीटें भाजपा के हाथों गंवानी पड़ सकती हैं।’

राहुल भूले नहीं कि कैसे केजरीवाल व आप की हठधर्मिता की वज़ह से उन्हें हरियाणा का जीता-जिताया चुनाव गंवाना पड़ा था, क्योंकि आखिरी वक्त राघव चड्डा ने खेल कर दिया और कांग्रेस व आप के बीच सीटों का तालमेल महज़ 2 सीट की वज़ह से अटक गया। हरियाणा में कांग्रेस को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी थी, राहुल चाहते हैं इसका थोड़ा स्वाद केजरीवाल इस बार दिल्ली में तो चखें।

– त्रिदिब रमण

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