भारत में अगर प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण की बात करें तो समस्या बहुत विकराल रूप धारण कर चुकी है। हालत यह है कि भारत में सड़क से लेकर गली, सीवर और घरों के आसपास प्लास्टिक कचरा ही नजर आता है। नदियों में भी प्लास्टिक की बोतलें नजर आती हैं और समुद्र में भी। पर्यटक स्थलों पर प्लास्टिक के कचरे की बाढ़ आई हुई है। सब जानते हैं कि प्लास्टिक एक जहर है फिर भी लोग इसका इस्तेमाल करना बंद नहीं कर रहे।
आंकड़ों के अनुसार देश में प्रतिदिन 26 हजार टन प्लास्टिक कचरा निकलता है और हर साल प्रतिव्यक्ति प्लास्टिक का प्रयोग औसतन 11 किलो है। प्लास्टिक प्रदूषण एक ऐसी बड़ी समस्या बन चुका है जिससे निपटना अब दुनिया के ज्यादातर देशों के लिए बड़ी चुनौती है। हाल ही में एक शोध के अनुसार एक वर्ष में एक इंसान 52 हजार से ज्यादा प्लास्टिक के माइक्रो कण खाने, पानी और सांस के जरिये निगल रहा है।
अध्ययन से पता चला है कि लगभग सभी ब्रांडेड बोतलबंद पानी में भी प्लास्टिक के ये सूक्ष्म कण मौजूद हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार सिर्फ एक बार प्रयोग की जा सकने वाली प्लास्टिक सबसे ज्यादा खतरनाक है। प्लास्टिक कचरे में सबसे ज्यादा मात्रा सिंगल यूज प्लास्टिक की होती है। भारत में हर साल उत्पादन होने वाली कुल प्लास्टिक में से महज 20 फीसदी ही रिसाइकिल हो पाता है। 39 फीसदी जमीन के भीतर रखकर नष्ट किया जाता है।
15 फीसदी जला दिया जाता है। प्लास्टिक से उत्सर्जित होने वाली कार्बन डाई-ऑक्साइड की मात्रा 2030 तक तीन गुणी हो जाएगी जिससे हृदय रोग के मामलों में तेजी से वृद्धि होने की आशंका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा था कि गांधी जयंती दो अक्टूबर के दिन लोग सारा सिंगल यूज प्लास्टिक इकट्ठा करें और अपने नगर निगम के पास जमा करायें। लोगों से प्लास्टिक एकत्र कर उसे रिसाइकिल कर विभिन्न तरह के प्रयोग में लाया जाएगा। कई जगहों पर प्लास्टिक का प्रयोग सड़कों के निर्माण में भी हो रहा है।
प्रधानमंत्री ने व्यापारियों और दुकानदारों से सहयोग भी मांगा था कि वे प्लास्टिक के बैग का इस्तेमाल नहीं करें इससे न केवल प्रदूषण से मुक्ति मिलेगी बल्कि कपड़े और जूट के बैग के इस्तेमाल से गरीबों, किसानों और विधवाओं की मदद कर सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यालय में भी प्लास्टिक की पानी की बोतलें हटा दी हैं। पहले भी भारत को प्लास्टिक मुक्त करने के प्रयास किये गए लेकिन हम न तो प्लास्टिक का विकल्प खोज पाए और न ही इसके बढ़ते प्रयोग पर लगाम लगा सके।
उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, हिमाचल समेत लगभग सभी राज्यों ने सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगा रखी है लेकिन इसके बावजूद प्लास्टिक की खपत प्रतिदिन बढ़ रही है। आनलाइन व्यापार कर रही कंपनियां और व्यापारी रोजाना 20 हजार किलो प्लास्टिक पैकेजिंग बैग का इस्तेमाल करते हैं। यही प्लास्टिक सड़कों पर बिखरती है तो इसे पशु निगल लेते हैं। इसी जहर से पशु मर जाते हैं। सवाल यह है कि प्लास्टिक उत्पादन आज बहुत बड़ी इंडस्ट्री बन चुका है।
प्लास्टिक का उत्पादन करने वाले व्यवसायियों का कहना है कि इस उद्योग ने लाखों लोगों को रोजगार दिया है। प्लास्टिक उद्योग ने लोगों का जीवन सरल बनाया है। प्लास्टिक के भंडारण या बोलतों से धरती को कोई नुक्सान नहीं होता बल्कि नुक्सान तब होता है जब इसे इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति इधर-उधर फेंकता है या जलाता है। प्लास्टिक बनाने में किसी पेड़ को नहीं काटा जाता।
उद्योग का कहना है कि भारत में एक साल में 1375000 टन यानी 14 हजार टन प्लास्टिक उपयोग होता है। अगर प्लास्टिक बंद हो जाए तो लगभग दोगुणा पेपर की खपत बढ़ जाएगी यानी एक साल में 28 लाख टन पेपर की खपत होगी। एक तरह से 8 फुट मोटे और आठ फुट लंबे पेड़ के तने से 2000 किलो पेपर बनता है। इसका अर्थ यही है कि हर साल 14 लाख पेड़ काटने पड़ेंगे। प्लास्टिक उद्योग से लाखों परिवार अपना पेट पालते हैं। यदि प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया जाता है तो बेरोजगारी का संकट खड़ा हो जाएगा। उन्हें भी गुणवत्तापूर्ण प्लास्टिक उत्पाद बनाने होंगे और सिंगल यूज प्लास्टिक को किनारे करना होगा। हमें इस समस्या को मानवीय दृष्टिकोण से देखना होगा।
लोगों को चाहिए कि प्लास्टिक का इस्तेमाल सही ढंग से करें और उसका कचरा रिसाइकिल के लिए दें। प्लास्टिक का सस्ता विकल्प भी तलाश करना होगा। लोगों को जागरूक करने के लिए एक बड़ा अभियान चलाना होगा और कचरे के निस्तारण के लिए भी युद्ध स्तर पर काम करना होगा और लोगों को अपनी आदतें बदलनी होंगी।