हम सब देख रहे हैं उत्तर भारत, उत्तराखंड, हिमाचल, मध्य प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के हालात बेहद गम्भीर हैं। हमें हर तरफ बाढ़ का पानी नजर आ रहा है। चाहे वो बरसात का पानी हो या पड़ोसी राज्यों द्वारा छोड़ा हुआ पानी। ऐसा लग रहा है कि सावन के महीने में इन्द्रदेव की कोपलीला से जूझ कर ही हर किसी को पार जाना है।
सब तरफ बुरी हालत है और सोशल मीडिया पर इतनी भयानक तस्वीरें आ रही हैं जिसको देखकर दिल दहल जाता है। कहीं कारें पानी में बह रही हैं, कहीं घर ढह रहे हैं। कइयों के घरों में पानी आ गया, कई लोग छतों पर रह रहे हैं। लाइट नहीं है, कहीं लोग फंसे हुए हैं तो लोग उन्हें पार लगा रहे हैं। एनडीआरएफ की टीम बहुत मेहनत कर फंसे लोगों को निकाल रही है, फिर भी कई लोगों की मृत्यु हुई है।
साथ ही साथ बहुत अच्छी वीडियो भी आ रही है कि कैसे लोग फंसे लोगों की मदद कर रहे हैं। सबसे ज्यादा पंजाब में सिख युवकों की ओर से समाजसेवी आगे आकर मदद कर रहे हैं, लंगर लगा रहे हैं। इस समय सबको हाथ बढ़ाने की जरूरत है। कोई पार्टी न देखे और न यह देखे किसने पानी छोड़ा, कौन गुनहगार है। इस समय तो बाढ़ में फंसे लोगों की हर तरह से मदद की जरूरत है।
दिल्ली में पिछले दिनों लोगों को बाढ़ से जो दिक्कत हुई उस पर आने से पहले मैं अंबाला से राजपुरा लुधियाना की ओर जा रहे हाईवे की बात करती हूं जहां राजपुरा के पास घघर नदी पर बना पूरा पुल टूट गया। सैकड़ों गाडि़यां पानी में तैरने लगी लेकिन वहां की बहादुर सिख कौम ने पानी में उतरकर पूरे दिन और रात जान और माल की रक्षा की। मुसीबत और आफत में मिलकर सामना करने की ललक हमें हर आफत पर विजय दिलाती है। ऐसी इंसानी ललक दिल्ली जैसे शहर में भी होनी चाहिए। सवाल हरियाणा या दिल्ली के बीच अतिरिक्त पानी छोड़े जाने का नहीं है लेकिन जो लोग अतिरिक्त पानी छोड़े जाने से प्रभावित होते हैं या ड्यूटी पर जा रहे होते हैं वे बेचारे पानी में क्यों फंसे? यमुना के आसपास सैकड़ों बस्तियों में रहने वाले लोग अपने घरबार छोड़कर क्यों जाएं? लेकिन अपनी जिंदगी बचाने के लिए वे बेचारे नावों में बैठकर सुरक्षीत स्थानों पर चले जाते हैं। हर साल हर बरसात में ये लोग जिंदगी की जंग लड़ते हैं।
अखबारी लोगों का काम या चैनल वालों का काम जो हादसा या जो आपदा हो गई उसको रूबरू प्रस्तुत करना उनका प्रोफेशन है लेकिन जब हम सुनते हैं कि दिल्ली में बाढ़ के स्तर ने 45 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया तो ऐेसे शर्मनाक रिकॉर्ड को लेकर हमारा सिर शर्म से झुक जाता है। मेरे दिल में सवाल उठता है कि आखिरकार आज तक इस स्थायी समस्या का हल क्यों नहीं ढूंढा गया। कब तक एक-दूसरे पर दोषारोपण चलता रहेगा। मैं यहां बाढ़ की स्थिति को लेकर दूसरे देशों से तुलना नहीं करना चाहती लेकिन जब आपको पता है कि दिल्ली से गुरुग्राम तक या मानेसर तक, दिल्ली से सोनीपत या पानीपत तक वर्षा का पानी हाइवे पर जमा सिर्फ इसलिए हो जाता है कि सिविरेज सिस्टम ठीक नहीं है और पानी जमा होने पर निकासी की स्थायी व्यवस्था नहीं है। आखिरकार अगर बूस्टर पंप लगे हुए हैं तो वे ठीक चल रहे हैं या नहीं इसकी व्यवस्था कौन करेगा। एक-दूसरे पर दोष देने से बात नहीं बनने वाली।
मैंने पहले भी जिक्र किया है कि मुसीबत के समय इकट्ठा रहना एक बड़ी बात है। कॉलोनियों में अगर ऐसे संगठन ऐसा काम करें जो राजपुरा पटियाला के पास वहां की सिख कौम ने करके दिखाया कि नदी के ऊपर पुल टूट जाने के बावजूद वे जान माल की रक्षा करते रहे, इससे प्रभावित लाेगों को बड़ा हौंसला मिलता है। मुसीबत से लड़ने की भावना काश हमारे नेता और प्रशासन भी सीख लें तो ज्यादा अच्छा है वरना जिस तन लागे सौ तन जाने। बरसात का सावन में होना खेतों के लिए बहुत अच्छी बात है लेकिन हमारे यहां दिक्कत यह है कि नदियों के किनारे अतिक्रमण हो चुका है, कालोनियां बन चुकी हैं, होटल बन चुके हैं। पहाड़ पर हो या यमुना के किनारे हो पानी जब अपने आवेग में आता है तो किसी को नहीं छोड़ता। जब हमें पता है कि हर साल हरियाणा से अतिरिक्त पानी यमुना में छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं तो दो राज्य मिलकर वर्षों से चली आ रही इस समस्या का समाधान क्यों नहीं ढूंढते। अपनी सेवा की भावना को मानवता के साथ अगर जोड़ेंगे तो लोगों का भला होगा। दिल्ली में यमुना के किनारे फंसे हुए लोग, छोटे बच्चे, महिलाएं अपना घरबार छोड़कर रिक्शा में समान लादकर रोते-बिलखते अगर जा रहे हो तो यह करूणामयी दृश्य दिल्ली वालों को कैसा लगता होगा। काश उनकी मदद के लिए समाजसेवी एक हो जाएं और उन तक नियमित रूप से भोजन, कपड़ों की या अन्य जरूरी सामान की व्यवस्था हो जाए तो यह सेवा सचमुच मानवता को समर्पित होगी। आइए पंजाब की बहादुर कौम से सबक लें जहां सैकड़ों लोग पिछले दिनों रात भर गांव के लोगों की रक्षा में डटे रहे और जो नहरों के आसपास रहते हैं उनके घरों का सामान सुरक्षित स्थानों पर ग्रुप बनाकर पहुंचा रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोग यमुना के पानी में फंसे लोगों की फोटो के साथ सेल्फी खींचकर डाल रहे हैं। काश उनका सामान उठाकर उन्हें पानी से निकाला होता तो हम भी अंगूठा बनाकर इस भावना का समर्थन कर देते। जरूरतमंद की मदद सच्ची सेवा है। जो बीत गया उसे भूल जाइये लेकिन भविष्य में कोई बाढ़ जैसा हादसा न हो, कोई आपदा न आए इसके लिए ठोस व्यवस्था करें यही समय की मांग है।
इस समय तो प्रभावितों की मदद के लिए हर किसी को आगे आने की जरूरत है।
‘‘साथी हाथ बढ़ाना साथी रे,
एक अकेला थक जाएगा मिलकर हाथ बढ़ाना।’’