भारत में कालेधन काे लेकर जमकर राजनीति होती रही है और इस हद तक इस मुद्दे को उछाला गया कि एक समय ऐसा भी भारत के नागरिकों ने देखा कि जब देशभर में विपक्षी नेताओं ने ‘जनयात्रा’ निकाल कर तत्कालीन सरकार से विदेशों में जमा धन को भारत में लाने के लिए व्यापक जन अभियान चलाया मगर यह भी विरोधाभास ही कहा जाएगा कि इस मामले पर केन्द्र में सत्ता परिवर्तन होने के बावजूद कोई विशेष प्रगति नहीं हुई। जो परिस्थितियां पिछली मनमोहन सरकार के दौरान थीं उनका केवल एक मामले में परिष्करण हुआ कि कुछ ऐसे ‘टैक्स हेवंस’ कहे जाने वाले देशों की सरकारों के साथ भारत की सरकार ने समझौते किए जिनसे उनके बैंकों में रखे भारतीयों के कालेधन के बारे में सूचना प्राप्त की जा सके। वित्तीय जानकारियों की अदला-बदली की गरज से किए गए इन समझौतों का भविष्य में भारत को निश्चित रूप से लाभ मिलना चाहिए परंतु बीच-बीच में ऐसी सूचनाएं विभिन्न सूत्रों से छन कर बाहर आती रही हैं जिनसे विदेशों में कालेधन के जमा होने की खबरों का खुलासा होता रहा है। इनमें ‘पनामा लीक्स’ प्रमुख थी जिसमें कई भारतीयों के ‘कालेधन’ के बारे में प्रमाण दिए गए थे।
पनामा लीक्स ने पूरी दुनिया के कई राजनीतिज्ञों को अपने लपेटे में लिया जिसमें सबसे प्रमुख पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का नाम था। इसमें उनका नाम आने से उन्हें प्रधानमंत्री पद तक गंवाना पड़ा। भारत के भी कई राजनीितज्ञों और उनके परिवार के सदस्यों के नाम ‘पनामा लीक्स’ में आए परंतु इस मामले में क्या कार्रवाई हो रही है, इस बारे में अधिसंख्य भारतीय अंजान ही हैं परंतु सर्वाधिक ताजा ‘पेराडाइज पेपर्स’ के प. जर्मनी के एक अखबार द्वारा हस्तगत करने से जो खुलासा हुआ है उसमें 714 ऐसे भारतीय व कार्पोरेट कंपनियां हैं जिन्होंने ‘विदेशी’ वित्तीय सरल नियमों के तहत वहां कंपनियां बनाकर उनकी मार्फत अपना धन जमा किया। बेरमूडा और सिंगापुर की एपलबाई व एशियासिटी के फर्मों की मार्फत दुनिया के 19 टैक्स हेवंस समझे जाने वाले देशों में विश्व के धनी व प्रभावशाली लोगों ने अपने कारोबार के जरिए कालाधन जमा किया। आश्चर्यजनक रूप से ऐसे लोगों में कांग्रेस व भाजपा दोनों ही पार्टियों के कुछ नेताओं के नाम हैं। प्राथमिक तौर पर कांग्रेस के अशोक गहलोत, सचिन पायलट व कार्ति चिदंबरम के साथ ही केन्द्र में राज्यमंत्री जयंत सिन्हा के नाम हैं। साथ ही फिल्म स्टार संजय दत्त की पत्नी मान्यता का नाम भी है। इसके अलावा कार्पोरेट जगत की कंपनियों ने अपने वाणिज्य विस्तार के लिए ऐसे देशों की कंपनियों की मार्फत निवेश किया और मुनाफा विदेशों में ही जमा किया जिससे भारत की सरकार को कर न देना पड़े।
दरअसल ‘बरमूडा’ देश की ‘एपलबाई’ कानूनी सलाहकार फर्म विदेशों खासतौर पर ‘टैक्स हेवंस’ देशों में कंपनियां स्थापित करने में मदद करती है और बैंकों में खाते खुलवाने में सहायता करती है। यह फर्म स्थानीय स्तर पर ऐसी खोली गई कंपनियों का कारोबार देखने के लिए व्यक्तियों का भी प्रबंध करके दे देती है तथा बैंकों से ऋण दिलाने या शेयरों की बदली का भी इंतजाम कर देती है। यह सारा काम वह ‘टैक्स हेवंस’ कहे जाने वाले देशों में करती है। दरअसल ‘पेराडाइज पेपर्स’ से यह खुलासा हुआ है कि किस प्रकार भारतीय कंपनियां अपने विदेशी कारोबारी संपर्कों का लाभ ‘कालाधन’ कमाने में करती हैं मगर यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं है कि ‘पेराडाइज पेपर्स’ में दुनिया के सबसे शक्तिशाली समझे जाने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के परिवार का नाम भी है और रूस के राष्ट्रपति पुतिन का नाम भी है। ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय की ओर से भी ऐसा ही धन लाभ प्राप्त करने का मामला है। मूल प्रश्न यह है कि विदेशों में कारोबार शुरू करने या विस्तार करने के नाम पर कोई भी इकाई या व्यक्ति किस प्रकार धनशोधन करके अपने मूल देश की सरकार को ‘कर चुकाने’ से बच सकता है? बेशक व्यापार के लिए विदेशों में कंपनियां स्थापित करना कोई गुनाह नहीं है मगर उसकी आड़ में कर-चोरी करना ‘गुनाह’ की ही श्रेणी में आता है। ‘पेराडाइज पेपर्स’ इसी तथ्य पर रोशनी डालते हैं। यही वह कालाधन है िजसका शोर भारत में मचता रहता है।