पांचाली बनती पुलिस - Punjab Kesari
Girl in a jacket

पांचाली बनती पुलिस

NULL

चार माह के दौरान तीन प्रतिभाशाली अधिकारियों द्वारा आत्महत्या किए जाने से उत्तर प्रदेश प​ुलिस सकते में है। आत्महत्या करने वाले अधिकारियों में से राजेश साहनी आतंकवाद रोधी दस्ते से जुड़े थे और दूसरे सुरेन्द्र कुमार दास कानपुर में एसपी पद पर तैनात थे। दोनों ने आत्महत्या क्यों की, इस सम्बन्ध में अनेक कहानियां सामने आ रही हैं जो उनकी नौकरी और घरेलू वातावरण से जुड़ी हुई हैं लेकिन इतना तय है कि दोनों अधिकारी इतने तनाव में थे कि उन्होंने आत्महत्या का मार्ग चुन लिया। गुरुवार को यह खबर आई कि गोरखपुर के शाहपुर थाने में तैनात प्रशिक्षु सब-इंस्पैक्टर शिव कुमार ने आत्महत्या कर ली। वह भी नौकरी से असंतुष्ट था। पुलिस विभाग काफी तनाव में काम करता है। पुलिस से सेवानिवृत्त हो चुके अफसर भी यह स्वीकार करते हैं कि पुलिस वालों का काम पहले से कहीं ज्यादा कठिन हो गया है और आत्महत्याएं इसी दबाव का परिणाम हैं। निराशा चाहे निजी हो या पेशेवर, इससे निकलने के लिए आत्महत्या करना जीवन से पलायन ही है। आखिर सुरेन्द्र कुमार दास ने सल्फास खाने से पहले गूगल पर आत्महत्या के तरीके ढूंढे, इससे उनकी मानसिक हालत का अनुमान लगाया जा सकता है। एक पूर्व पुलिस अधिकारी ने तो यहां तक कहा है कि सियासत, नेता, पब्लिक, आरटीआई और कोर्ट में उलझकर पुलिस पांचाली बन गई है। इससे सवाल उठते हैं कि क्या खाकी वर्दीधारी राजनीतिक व सत्ताधारी आकाओं के नापाक, अवास्तविक उद्देश्यों आैर मंसूबों के चक्कर में अत्यधिक दबाव में रहते हैं और पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन बनाने में असमर्थ हो रहे हैं? लगातार कई घंटे काम करते रहने से उनका व्यक्तिगत जीवन बर्बाद हो रहा है।

राजनीतिक वर्ग पुलिस वालों की मुश्किलों को समझने में नाकाम रहा है। बिना छुट्टी के काम करने, नींद की कमी, असफल होने की भावना, पुलिसकर्मियों की निन्दा, राजनीतिक आकाओं की उदासीनता आैर वरिष्ठ अधिकारियों के साथ कोई मधुर सम्बन्ध नहीं होने के कारण सहनशक्ति के स्तर पर काफी कमी आई है। दुःख की बात है कि पुलिस का संयुक्त परिवार टूट रहा है। पुुलिस के आला अधिकारी मनोविश्लेषक की तरह बातें तो करते हैं लेकिन यह भी सच है ​िक जब भी पुलिस सुधारों की बात आती है तो उसके लिए कोई कार्ययोजना उनके पास नहीं है। पुलिस की कार्यशैली की आलोचना भी लोग हर रोज करते हैं लेकिन उन्होंने कभी इस बात पर विचार ही नहीं किया कि क्या पुलिसक​िर्मयों के लिए नौकरी करने लायक स्वस्थ माहौल है भी या नहीं। इस तथ्य पर विचार करना होगा कि क्या वर्तमान पुलिस व्यवस्था में किसी तरह के सुधार की आवश्यकता है या इसमें आमूलचूल परिवर्तन करने की, क्योंकि पुलिस व्यवस्था व्यक्ति केन्द्रित होती जा रही है। सामाजिक संगठन, न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति रिपोर्ट, नारीवादी संगठन, बुद्धिजीवी वर्ग लगातार यह बताता रहा है कि पुलिस व्यवस्था में क्या-क्या खामियां हैं।

पुलिस का चेहरा मानवीय कैसे बनाया जाए, इसके लिए भी बहुत प्रयास करने की जरूरत है। एक बार ड्यूटी शुरू करने के बाद पुलिसकर्मी घर कब लौटेंगे, कुछ पता नहीं होता, इसलिए उनका पारिवारिक जीवन बुरी तरह से प्रभावित होता है। इतनी कठिन ड्यूटी के बावजूद पुलिसकर्मियों को आवास, बच्चों की शिक्षा, प​िरवार की सुरक्षा एवं चिकित्सा, वर्दी, वाहन आदि सुविधाएं अपेक्षानुसार नहीं मिलतीं। इन हालात में पुलिसकर्मियों का तनाव एवं अवसाद में रहना स्वाभाविक है। उच्चतम न्यायालय ने 2006 में पुलिस सुधारों को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए थे लेकिन अफसोस राज्य सरकारों ने इन दिशा-निर्देशों को लागू ही नहीं किया। भारतीय पुलिस को पक्षपात की संस्कृति का वाहक माना जाता है। इस पर जनता को अभूतपूर्व अविश्वास है, क्योंकि प्रभावशाली सम्पर्क रखने वाले इस पर विश्वास करते हैं। पुलिस राजनीति से सम्पर्क रखने वालों आैर राजनेताओं से डरती है और उन्हीं के इशारों पर रक्षक से भक्षक बन जाती है। पुलिस का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों को पस्त करने के लिए किया जाता है।

दरअसल भारत में पुलिस का गठन ही सत्ता और सामंत की संस्कृति की रक्षा के लिए हुआ था और वैसे ही कानून भी बने थे। स्वतंत्र भारत में पुलिस को संस्कृति के सांचे में ढाला ही नहीं गया। कहते हैं दुनिया में जो भी सर्वोत्तम सांचा कहा गया है वह संस्कृति है। मनुष्य की श्रेष्ठ साधनाओं को संस्कृति माना जाता है। संस्कृति पक्षधरता नहीं सिखाती। वह अपनी सांस्कृतिक श्रेष्ठता को सदैव जनता पर जाहिर करने की चेष्टा करता है लेकिन सत्ता की अपनी संस्कृति होती है। पुलिस का राजनीतिक इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति का त्याग राजनीतिक दल नहीं कर पाते और यही कारण है कि पुलिस की छवि विकृत हो रही है।

कुल मिलाकर कोई भी पुलिस सुधारों को अपनाने को तैयार नहीं। जरूरत है पुलिसकर्मियों के लिए नौकरी लायक सही वातावरण बनाने की ताकि वह तनावमुक्त होकर काम कर सकें और पारिवारिक रिश्तों को मजबूत बना सकें। यदि वह पारिवारिक उलझनों में उलझे रहेंगे तो वह ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा सकेंगे। पुलिस वाले दृढ़विश्वासी आैर संकल्प के बड़े बलवान होते हैं लेकिन पुलिस अफसरों और अर्द्धसैन्य बलों के जवानों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति काफी दुःखदायी ही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।