पाक की 'एटमी-अकड़' का जवाब - Punjab Kesari
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पाक की ‘एटमी-अकड़’ का जवाब

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भारतीय उपमहाद्वीप में पाकिस्तान के परमाणु शक्ति सम्पन्न देश बन जाने के बाद जिस प्रकार का खतरा इस क्षेत्र की शान्ति पर मंडराने की आशंका पैदा हुई है उसकी असली वजह यह है कि पाकिस्तान को उन देशों की श्रेणी में नहीं डाला जा सकता जो परमाणु शक्ति का प्रयोग आधुनिक प्रौद्यागिकी से लैस होकर विकास कार्यों के लिए करना चाहते हैं। पाकिस्तान का परमाणु अस्त्रों को हस्तगत करने के पीछे एकमात्र उद्देश्य विध्वंस मूलक रहा है। इसके साथ ही इस देश की राजनीतिक व्यवस्था भी लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध सैनिक शासन की सीनाजोरी के हक में रही है जिसकी वजह से इसकी हैसियत मानवीय मूल्यों के खिलाफ खड़े हुए मुल्क जैसी दिखती है। ऐसे मुल्क के हाथ में परमाणु शक्ति का आना दूसरे मुल्कों के लिए चिन्ता इसलिए पैदा करता है,  क्योकि इसके परमाणु अस्त्रों का बटन सीधे सेना के जनरल के हाथ में है जिसमें यहां की कथित सीमित अधिकारों वाली लोकतान्त्रिक पद्धति से चुनी सरकार के मुखिया का बहुत ज्यादा दखल नहीं है। मगर भारत भी इस मामले में कई बार गफलत में पड़ता रहा है। खासकर तब जब १९७८ में पाकिस्तान के चुने हुए प्रधानमन्त्री जुल्फिकार अली भुट्टों को उन्हें सत्ता से बेदखल करने वाले सैनिक कमांडर जन. जियाउल हक ने फांसी पर लटका दिया था। दरअसल पाकिस्तान के इतिहास में जनरल हक के शासन के लगभग दस वर्ष इसे असभ्य देश बनाने के ही रहे। यह बेवजह नहीं था कि १९८२-८३ में देश के प्रधानमन्त्री पद पर आसीन स्व.

इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की सूंघ ले ली थी और उसे नेस्तानाबूद करने की योजना पर वह बहुत सावधानीपूर्वक चल भी पड़ी थीं। मगर १९८४ में उनकी निर्मम हत्या कर दी गई। इसके बाद की घरेलू राजनीति जिस तरह राजनितिक तमाशों के फेर में फंसी और दुनिया की उन ताकतों को इसके भीतर पैठ बनाने की मोहलत मिली जो हमेशा से पाकिस्तान की मदद करती रही थी और उसकी सैनिक आकांक्षाओं को उभारती रही थी, उसने भारतीय उपमहाद्वीप की ही राजनीति को बदलकर रख दिया और इसका चरम बिन्दू तब पहुंचा जब १९९८ में भारत द्वारा दूसरा पोखरण विस्फोट करने के एक सप्ताह के भीतर ही पाकिस्तान ने भी लगातार चार विस्फोट करके अपने परमाणु शक्ति सम्पन्न होने का ऐलान कर दिया। एेसा क्यों हुआ और किसके इशारे पर तथा तरफदारी पर किया गया इसका उत्तर कभी न कभी इतिहासकार जरूर खोजेंगे मगर आज दीगर सवाल यह है कि पाकिस्तान के इस विध्वंसक स्वरूप को काबू कैसे किया जाए? क्योंकि अमरीका समेत उसके हिमायती रहे विभिन्न पश्चिमी देश सिवाय जुबानी-जमा खर्च के कोई ठोस कदम उठाने को तैयार नहीं हैं। इसकी भी खास वजह यही है कि पाकिस्तान का निर्माण ही इन शक्तियों की बदौलत केवल भारत को नियन्त्रण में रखने के लिए किया गया था वरना कोई वजह नहीं थी कि १९४७ में पाकिस्तान वजूद में आ पाता।

दक्षिण एशिया में अमरीका व पश्चिमी देशों ने अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए ही पाकिस्तान का निर्माण कराया। यही वजह रही कि इसके परमाणु हथियारों से लैस हो जाने पर अमरीका ने इसके खिलाफ कोई कारगर कदम नहीं उठाया। अब पाकिस्तान उस चीन की गोदी में जाकर बैठ गया है जो पहले से ही परमाणु शक्ति सम्पन्न देश है और राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद में जिसके हाथ में वीटो पावर भी है। अतः भारत की तरफ से पाकिस्तान की इन गीदड़ भभकियों का जवाब बहुत संयत और नपा-तुला जाना चाहिए था जो वह अपने परमाणु हथियारों के बारे में देता रहता है और कहता रहता है कि भारत को पाकिस्तान के साथ अपने सम्बन्धों को तय करते समय यह सौ बार सोचना चाहिए कि वह परमाणु हथियारों से लैस देश है और उसमें भारत को अपने घेरे में लेने की ताकत है। अतः वायुसेना अध्यक्ष बीएस धनुआ ने वायुसेना दिवस पर यह चेतावनी देकर पाकिस्तान को होश में लाने का काम किया है कि भारत के पास इतनी ताकत और क्षमता है कि वह उसके परमाणु ठिकानों की निशानदेही करके उन्हें नेस्तनाबूद कर दे। पाकिस्तान के लिए इतना कहे जाने की जरूरत इसलिए पड़ी, क्योंकि उसकी अनावश्यक धमकियों का संज्ञान कूटनीतिक स्तर पर समुचित रूप से नहीं लिया गया वरना भारत के फौजी कमांडर बहुत नपा-तुला ही बोलने की परिपाठी का पालन करते रहे हैं। इसके बावजूद हम युद्ध उन्मादी देश नहीं है परन्तु अपनी सुरक्षा करना बखूबी जानते हैं। पाकिस्तान की सबसे बड़ी मजबूरी यह है कि उसका वजूद केवल भारत विरोध पर ही टिका हुआ है, क्योंकि पाकिस्तान की अवाम का यकीन इसके हुक्मरानों पर कितना है इसके सबूत में यही काफी है कि इस मुल्क में पिछले २०१२ के राष्ट्रीय एसेम्बली के चुनावों में सबसे बड़ा सियासी मुद्दा यही था कि भारत से पाकिस्तान के संबंध मधुर और खुशगवार होने चाहिए।

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