इतिहास गवाह है कि भारतीय सेना में तैनात सिख सैनिकों का खौफ आज भी पाकिस्तानियों को है, क्योंकि बाबा बन्दा सिंह बहादुर सहित अनेक ऐसे सिख योद्धा हुए हैं जिन्होंने मुगलों की ईंट से ईंट बजा दी। इतना ही नहीं देश की आजादी के बाद जब भी पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ा तो सिख रेजीमेंट सहित भारतीय सेना में तैनात सिख सैनिको के द्वारा उन्हें मुंह की खानी पड़ी। 1965 की जंग में एक समय ऐसा भी आया जब पाकिस्तान भारत पर पूरी तरह से हावी हो चुका था और उसकी पूरी तैयारी दिल्ली की ओर कूच की थी। ऐसे में भारतीय सेना के आर्मी चीफ जनरल चौधरी ने पंजाब में तैनात कमांड के मुखिया लेफ्टिनेंट हरबक्ष सिंह को आर्डर किया कि अपनी कमांड को लेकर ब्यास के इस पार आकर अम्बाला में मोर्चा सम्भालें ताकि पाकिस्तानी सेना को अम्बाला में रोका जा सके। मगर उस समय एक सिख योद्धा जिसे गुरु गोबिन्द सिंह जी से दुश्मन के खिलाफ आगे होकर लड़ने की प्रेरणा मिली हो उसने अपने सीिनयर अफसर का आदेश इस कारण ठुकरा दिया क्योंकि उनकी सोच थी कि कुछ साल पहले ही बंटवारे के समय सिख समुदाय अपने पवित्र एतिहासिक गुरुद्वारा साहिब जिसमें गुरु नानक देव जी की जन्मस्थली ननकाणा साहिब, पंजा साहिब आदि शामिल थे, बंटवारे के चलते पाकिस्तान में छोड़ आए हैं और अगर अब पाकिस्तानी सेना को ना रोका गया तो संभव है कि श्री दरबार साहिब अमृतसर भी भारत के कब्जे से निकल जाए। ऐसे में अमृतसर जाने के लिए भी वीजा लेकर जाना पड़ेगा, इसलिए लेफ्टिनेंट हरबक्ष सिंह ने अपनी कमांड के साथ पाकिस्तानी सेना का ना सिर्फ डटकर मुकाबला किया बल्कि लाहाैर तक जाकर वहां अपना कब्जा जमा लिया मगर बाद में राजनीतिक सोच ने उसे वापिस पाकिस्तान के हवाले कर दिया। उसके बाद भी जब कभी पाकिस्तान ने आंखें दिखाई तो सिख सैनिकों ने उनका मुंहतोड़ जवाब दिया।
आज विदेशों की धरती पर बैठकर खालिस्तान मुहिम चलाने वाले गुरपतवंत सिंह पन्नू जैसे लोग भारतीय सेना में तैनात सिख सैनिकों को सम्बोधन करते हुए पाकिस्तान के खिलाफ जंग का हिस्सा ना बनने के मशवरे दे रहे हैं, पर शायद उन्हें इस बात का रत्तीभर भी ज्ञान नहीं कि सिखों ने इस देश की आन-बान-शान के लिए सबसे अधिक कुर्बानियां दी हैं और आगे भी अगर देश को जरूरत पड़ी तो सिख सैनिक सबसे आगे की कतार में खड़े पाएंगे।
पाकिस्तान हमेशा से आतंिकयों को समर्थन करता आ रहा है जो समय-समय पर भारत सहित अन्य देशों में आतंकी हमलों को अन्जाम देते आए हैं। इतना ही नहीं कई बार तो इन आतंकियों ने पाकिस्तान के अन्दर भी कई घटनाओं को अन्जाम दिया,बावजूद इसके पाकिस्तान सरकार का समर्थन जारी रहा। हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले में बेकसूर भारतीय पर्यटक मारे गए जिसके बाद भारत की मोदी सरकार पूरी तरह से हरकत में आ गई और ठान लिया कि अब और बर्दाशत नहीं किया जा सकता क्योंकि पाकिस्तान सुधरने वाला नहीं है। इससे पहले कई बार भारत ने पाकिस्तान को चेतावनी भी दी मगर उसका कोई खास असर पाकिस्तान पर नहीं हुआ। जिसके बाद भारतीय वायु सेना के द्वारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर सहित 9 आतंकी ठिकानों पर हमला कर उन्हें ध्वज्ञत किया।
परमजीत सिंह वीरजी को अकाल तख्त से सम्मान की सिफारिश
शिरोमणि अकाली दल के दिल्ली इकाई के अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना के द्वारा धर्म प्रचार के क्षेत्र में लम्बे समय से सेवाएं निभाने वाले परमजीत सिंह वीरजी को श्री अकाल तख्त साहिब से सम्मान दिलाने हेतु सिफारिश इसलिए की गई है क्योंकि पिछले करीब 15 सालों से परमजीत सिंह वीरजी द्वारा निभाई जा रही पंथक सेवाओं से खासे प्रभावित हैं। जब वह दिल्ली कमेटी के अध्यक्ष हुआ करते थे तो उन्होंने परमजीत सिंह वीरजी को धर्म प्रचार के चेयरमैन की सेवा सौंपी और उनके काम करने के अन्दाज को देखा। एक बार फिर परमजीत सिंह वीरजी के द्वारा गुरबाणी रिसर्च संस्था के बैनर तले 400 से अधिक बच्चों का गुरबाणी कंठ मुकाबला करके मानो इतिहास रचा हो, क्यांेकि इससे पहले इस तरह का मुकाबला देखने को नहीं मिला जिसमें छोटे-छोटे बच्चों के द्वारा जपुजी साहिब, जाप साहिब, सुखमनी साहिब, चौपई साहिब आदि बािणयों को कंठस्त करके सुनाया हो। देखा गया कि करीब 6 महीने का समय लग गया, बच्चों से बाणी सुनकर उनकी छांटी कर अव्वल रहे बच्चों का मुकाबला करवाया गया, उन्हें पुरस्कृत भी किया गया। इनमें एक बच्ची जिसे पंजाबी पढ़नी या लिखनी तक नहीं आती और गैर सिख परिवार से सम्बन्ध रखती है, उसके द्वारा 5 से अधिक बािणयों को कंठस्त करके सुनाया गया जो कि शायद आज के समय में गुरुद्वारों के ग्रन्थी, सेवादारों को भी याद नहीं होती, ज्यादातर मोबाइल फोन रखकर ही गुरबाणी उच्चारण करते हैं। इस बच्ची को गुरबाणी याद करवाने का श्रेय उनकी दादी को जाता है। इससे एक बात और निकल कर आती है कि आजकल परिवार छोटे होने और व्यस्त जिन्दगी के चलते घर के बड़े बुजुर्गों के पास बैठने का बच्चों को समय ही मिल पाता।
आम की गुठलियों से पौधे बनाकर करते हैं सेवा
आमों की गुठलियां (बीज) जिसे हर कोई खाकर फंेक देता है कोलकाता के 51 वर्षीय जस्मीत सिंह अरोड़ा उन्हीं आम की गुठलियां इकट्ठा करते हैं और उन्हें अंकुरित कर पौधे तैयार करते हैं और बड़ा होते ही उन्हें किसानों को बिना किसी शुल्क के भेंट कर अनोखी सेवा निभा रहे हैं। अरोड़ा किसानों को जैविक खेती का तकनीकी ज्ञान देना चाहते हैं और उन्हें उद्यमी बनाना चाहते हैं। “ग्राम समृद्धि फाउंडेशन के तहत वह किसानों को फलदार वृक्ष लगाने में सहयोग देते हैं। तीन साल से वे इस विचार को संजोए हुए हैं लेकिन असली रफ्तार तब मिली जब उनकी छोटी बेटी ‘गुनमीत’ ने उनका एक वीडियो बनाया जिसमें वे आम की गुठलियां दान करने की अपील कर रहे थे। उनकी मानें तो भारत की 80 प्रतिशत ज़मीन आम की खेती के लिए उपयुक्त है। दवाओं के व्यापार से जुड़े अरोड़ा का उद्देश्य केवल इतना है कि जल, मृदा और वायु की शुद्धता के साथ-साथ मन की शुद्धता के लिए भी कुछ किया जाए। वह कहते हैं, “जो लोग मदद करना चाहते हैं वे बीज भेज सकते हैं। जिनके पास ज़मीन है वे बीज अंकुरित करने का काम कर सकते हैं और जो समय व सेवा देना चाहते हैं उनके लिए मैं कार्य की व्यवस्था कर सकता हूं।”