किरण राव द्वारा निर्देशित भारत की आधिकारिक प्रविष्टि ‘लापता लेडीज’ ऑस्कर की दौड़ से बाहर हो गई। 97वें अकादमी पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय फीचर श्रेणी में आधिकारिक प्रविष्टि पाने वाली फिल्म अंतिम 15 फिल्मों में भी जगह नहीं बना सकी। अकादमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज (एएमपीएएस) ने फिल्म के बाहर होने की घोषणा की। अंतिम 15 फिल्मों की सूची में ब्रिटिश-भारतीय फिल्म निर्माता संध्या सूरी की फिल्म ‘संतोष’ भी शामिल है। अंतिम 15 में जगह बनाने वाली संध्या सूरी की फिल्म ‘संतोष’ ब्रिटेन का प्रतिनिधित्व करेगी। ऑस्कर की दौड़ से बाहर हो चुकी ‘लापता लेडीज’ के चुनाव को भारतीय-अमेरिकी म्यूजिक कंपोजर रिकी केज ने गलत बताया है। केज ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट साझा कर लिखा इसे बाहर होना ही था।
सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले रिकी केज ने अपने एक्स हैंडल पर ‘लापता लेडीज’ के पोस्टर के साथ एक नोट साझा करते हुए लिखा, “तो अकादमी ऑस्कर की शॉर्टलिस्ट जारी हो चुकी है। ‘लापता लेडीज’ बहुत अच्छी तरह से बनाई गई, मनोरंजक फिल्म है (मुझे यह पसंद आई) लेकिन इंटरनेशनल फीचर फिल्म के सर्वश्रेष्ठ श्रेणी के लिए भारत का प्रतिनिधित्व करने के हिसाब से इस फिल्म का चुनाव बिल्कुल गलत था।’’ “जैसी कि मुझे उम्मीद थी, यह हार गई। हमें कब एहसास होगा कि हम हर साल गलत फिल्मों का चयन कर रहे हैं। इतनी सारी बेहतरीन फिल्में बनी हैं कि हमें हर साल इंटरनेशनल फीचर फिल्म की श्रेणी में पुरस्कार जीतना चाहिए। दुर्भाग्य से हम मेनस्ट्रीम बॉलीवुड के बुलबुले में रहते हैं, जहां हम उन फिल्मों से परे नहीं देख सकते जिन्हें हम खुद मनोरंजक पाते हैं।“
केज ने पोस्ट में बताया कि हमें किस तरह की फिल्मों का चयन करना चाहिए। उन्होंने लिखा, “ हमें केवल उन फिल्म निर्माताओं द्वारा बनाई गई अच्छी फिल्मों की तलाश करनी चाहिए जो अपनी कला से समझौता नहीं करते। ये फिल्में कम बजट की हों या बड़े बजट की। इस फिल्म में स्टार हो या बिना स्टार की हो, बस इसमें बेहतरीन कलात्मक सिनेमा का पुट होना चाहिए।
यहां ‘लापता लेडीज’ का पोस्टर है और मुझे यकीन है कि अकादमी के अधिकांश मतदान सदस्यों ने इसे देखकर ही फिल्म को खारिज कर दिया होगा।“साल 1983 में भारत को पहला ऑस्कर अवॉर्ड मिला था। यह अवॉर्ड 1983 में रिलीज हुई फिल्म गांधी के लिए हासिल हुआ था। इस फिल्म में भानु अथैया ने जॉन मोलो के साथ कॉस्ट्यूम डिजाइन किया था, जिसके लिए उन्हें यह अवॉर्ड मिला। यह अवॉर्ड जीतने के बाद भानु अथैया ने बताया था कि उस वक्त तमाम लोगों ने हमारी जीत का दावा पहले ही कर दिया था। उनका कहना था कि गांधी फिल्म का दायरा ही इतना बड़ा था कि उससे कोई प्रतियोगिता करने के बारे में सोच ही नहीं सकता है। साल 1929 में शुरू हुए ऑस्कर अवॉर्ड में पहली भारतीय फिल्म मदर इंडिया (1957) थी। 30वें अकादमी पुरस्कारों में पहली बार निर्देशक महबूब खान की फिल्म मदर इंडिया भेजी गई थी। ये बॉलीवुड की शानदार फिल्मों में से एक है। ये फिल्म ऑस्कर गैलरी तक तो पहुंची लेकिन जीत नहीं सकी। इसके बाद करीब 55 फिल्में ऑस्कर में पहुंची जिनका सफर एक-एक कदम आगे बढ़ा लेकिन अंत में जीत कुछ को ही मिली।
38वें ऑस्कर में हिंदी भाषा की फिल्म ‘गाइड’ (1965), 45वें ऑस्कर में ‘उपहार’ (1971), 46वें ऑस्कर में ‘सौदागर’ (1991), 60वें ऑस्कर में तमिल भाषा की ‘नयाकन’ (1987), 67वें ऑस्कर में हिंदी भाषा की ‘बैंडिट क्वीन (1994), 75वें ऑस्कर में हिंदी भाषा की ‘देवदास’ (2002), 85वें ऑस्कर में हिंदी भाषा की ‘बर्फी’ (2012), 93वें ऑस्कर में मलयालम भाषा की ‘जल्लीकट्टू’ (2019), 96वें ऑस्कर में मलयालम भाषा की ‘2018’ जैसी फिल्मों का नाम शामिल है। साल 2009 में आई फिल्म ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ के ‘जय हो’ गाने के लिए गीतकार गुलजार को ऑस्कर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। वहीं इस गाने को कंपोज करने के लिए एआर रहमान को भी ऑस्कर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। इसी फिल्म के रेसु पोक्कुट्टी को ‘बेस्ट साउंड मिक्सिंग’ कैटेगरी में ऑस्कर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। इस तरह से 5 बार ऑस्कर भारत आया था। साल 2023 में भारत का सपना पूरा हुआ और फिल्म ‘आरआरआर’ के गाने ‘नाटू-नाटू’ ने ऑस्कर जीता था।
इसके पहले एआर रहमान ने भी ऑस्कर अवॉर्ड अपने नाम किया है। वहीं फिल्म निर्माता गुनीत मोंगा को ‘द एलिफेंट व्हिस्पर्स’ के लिए बेस्ट डॉक्यूमेंट्री के लिए ऑस्कर से सम्मानित किया गया।ऑस्कर अवॉर्ड के लिए हिंदी के अलावा तमिल, तेलुगू, मलयालम, मराठी, बंगाली, उर्दू और गुजराती समेत कई फिल्में भेजी जा चुकी हैं। हर साल फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया की ज्यूरी की तरफ कई फिल्मों को ऑस्कर के लिए भेजा जाता है। वहीं कुछ मेकर्स भी अवॉर्ड के लिए अपनी फिल्मों की दावेदारी पेश करते हैं। हालांकि बहुत कम बार ही ऐसा हुआ है जब ऑस्कर के लिए हिंदी फिल्मों को शॉर्ट लिस्ट या फिर नॉमिनेट किया गया है। हालांकि सिर्फ 4 फिल्मों का सफर ही अकादमी पुरस्कार में आगे बढ़ा है।
भारत में सिनेमा का मूल स्वरूप आर्थिक होता है। कलात्मक सिनेमा का नितांत अभाव है। यही कारण है वैश्विक सिने जगत में हम कहीं नहीं ठहरते। यही गलती बार-बार ऑस्कर अवार्ड में भेजी जाने वाली फिल्मों के बारे में करते हैं। फिल्मों की चयन प्रक्रिया भी गलत ही होती है।