कांग्रेस पार्टी के रायपुर (छत्तीसगढ़) में सम्पन्न 85वें महाधिवेशन से जो सन्देश निकला है, वह यह है कि पार्टी पूरी ताकत के साथ पुनः खड़ी होकर देशवासियों को सशक्त राजनैतिक विकल्प देना चाहती है और इसके लिए वह अन्य भाजपा विरोधी विपक्षी दलों के साथ तालमेल करने से भी पीछे नहीं हटेगी। पार्टी ने इस महाधिवेशन के माध्यम से यह भी सिद्ध करने का पूरा प्रयास किया है कि वह स्वतन्त्र भारत का ऐसा मूल नैसर्गिक राजनैतिक संगठन है जिसके पास देश को अंग्रेजी राज से मुक्त कराने की गौरवशाली विरासत है। इसके साथ ही पार्टी ने अपने आर्थिक प्रस्ताव के माध्यम से खुद को उस बाजार मूलक अर्थव्यवस्था की विसंगतियों से दूर रखने का उपक्रम भी किया है जिसने देश के सार्वजनिक उद्योगों को निजी पूंजी की गिरफ्त में लाकर जकड़ दिया है। कांग्रेस ने इस प्रस्ताव के जरिये देश के पहले प्रधानमन्त्री प. जवाहर लाल नेहरू की ‘मिश्रित अर्थव्यवस्था’ के नमूने को कारगर तरीके से चलाते हुए ‘लोकल्याणकारी राज’ की तरफ बढ़ने का संकल्प भी दोहराया है।
वर्तमान राजनीति के सन्दर्भ में कांग्रेस के रुख में यह एक महत्वपूर्ण बदलाव कहा जा सकता है क्योंकि देश में आर्थिक उदारीकरण व बाजार मूलक अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ने का फैसला भी 1991 में कांग्रेस राज में ही लिया गया था। अपने इस फैसले को विस्तार देने के लिए पार्टी ने ‘सामाजिक न्याय’ की लड़ाई को भी धार देने का प्रयास किया है और पूरे देश में जातिगत जनगणना कराने की मांग दोहराई है। हालांकि 2011-12 में केन्द्र में डा. मनमोहन सिंह की सरकार ने एेसी गणना कराई थी मगर उसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं हो पाये थे। जाहिर है कि जातिगत जनगणना मांग करके कांग्रेस ने समाज के पिछड़े वर्गों की सत्ता में समानुपाती भागीदारी की वकालत पुरजोर तरीके से करने का प्रयास किया है। इससे यह अन्दाजा लगाया जाना कठिन नहीं है कि भारत की राजनीति के किन शक्ति पुंजाें को कांग्रेस भविष्य की दृष्टि से पोषित करने का प्रयत्न कर रही है।
अतः बेसबब नहीं है कि 1932 में महात्मा गांधी ने डा. अम्बेडकर के साथ पुणे में जो समझौता किया था उसे भारत के संविधान में शामिल किया गया और दलितों को सत्ता में आरक्षण दिया गया। अतः महाधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे का यह बयान कि पिछड़े वर्गों की भागीदारी भी सुनिश्चित हो, राजनीति के क्रम पर निर्णायक प्रभाव डालने वाला है। महाधिवेशन में गांधी परिवार के सदस्यों श्रीमती सोनिया गांधी, राहुल गांधी व प्रियंका गांधी के सम्बोधनों से जो ध्वनि निकली वह कांग्रेस की उस मूल सैद्धान्तिक विचारधारा का ही पोषण कही जा सकती है जिस पर भारत 1947 से लेकर 80 के दशक तक चला और लोकतन्त्र को आम जन की सहभागिता से चलाने का रास्ता उन्हें अधिकार सम्पन्न बनाते हुए ढूंढा गया, हालांकि इमरजेंसी काल में इसमें रुकावट आयी मगर महत्वपूर्ण यह है कि इस अधिवेशन में कांग्रेस देश के मतदाताओं को वह वैकल्पिक ‘जन -विमर्श’ देने में कामयाब रही जिस पर भारत के लोकतन्त्र में किसी भी चुनाव के समय जमकर चर्चा व बहस-मुहाबिसा हो सकता है। यह जन-विमर्श ‘भारतीयता’ के अभिप्राय को लेकर है और लोकतन्त्र की उस मर्यादा को लेकर है जिसका संरक्षण इस व्यवस्था में खड़े किये गये विभिन्न संवैधानिक संस्थान करते हैं। इस मामले में कांग्रेस अध्यक्ष ने जिस तरह प्रत्यक्ष हमला ‘हिन्दुत्व’ के नियामकीय प्रतिष्ठानों पर किया उससे भविष्य की राजनीति में उठने वाले ‘ज्वारभाटे’ आशंकाओं को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। लोकतन्त्र में हर राजनैतिक दल को यह अधिकार होता है कि वह संविधान की परिधि में अपने उद्देश्यों व लक्ष्यों को परिलक्षित करके जन कल्याण का मार्ग राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए तय करे परन्तु यह समझ लेना कि कांग्रेस की राह इस महाधिवेशन के बाद बहुत आसान हो जायेगी केवल मूर्खता ही होगी। क्योंकि कांग्रेस को यह साबित करना होगा कि उसका जन विमर्श सत्तारूढ़ पार्टी के जन विमर्श से बेहतर है। इसका फैसला केवल जनता ही कर सकती है क्योंकि लोकतन्त्र की असली मालिक वही होती है। जनता के सामने आजादी के बाद से कांग्रेस की सरकारों व भाजपा की सरकारों के कार्यकलापों का पूरा विवरण है। बेशक अंग्रजों द्वारा छोड़ा गया भारत पूरी तरह मुफलिस, अनपढ़ और भूखा था और इसे सशक्त बनाने में कांग्रेस की सरकारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इस तरह निभाई कि 1947 में सुई तक का उत्पादन न करने वाले भारत में भारी उद्योगों का जाल बिछ गया और कृषि क्षेत्र में हरित क्रान्ति व श्वेत क्रान्ति के माध्यम से आत्मनिर्भरता आयी परन्तु आज जमाना बदला हुआ है। अब हम इंटरनेट के दौर में हैं और सब कुछ अपनी मुट्ठी में चाहते हैं जिसकी वजह से भारत का हर आदमी सम्पन्नता में अपना वाजिब हिस्सा देखना चाहता है। इस क्रान्तिकारी बदलाव के दौर में केवल स्थायी राजनैतिक लोकमूलक शक्ति सम्पन्नता के उपायों से ही युवा वर्ग की अपेक्षाओं को पूरा किया जा सकता है।