आनलाइन शिक्षा : ​सम्भावनाएं और चुनौतियां - Punjab Kesari
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आनलाइन शिक्षा : ​सम्भावनाएं और चुनौतियां

कोरोना महामारी ने शिक्षा का ऐसा माहाैल बदला कि लगता है स्कूल और कालेजों के लिए रोजाना बस

कोरोना महामारी ने शिक्षा का ऐसा माहाैल बदला कि लगता है स्कूल और कालेजों के लिए रोजाना बस यात्रा करने के ​दिन लद गए हैं। अब समय आ गया है कि देश की युवा पीढ़ी अपनी डिग्री अब आनलाइन ही प्राप्त करेगी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से देश के 900 स्वायत्त कालेजों को आनलाइन डिग्री कोर्स शुरू करने की अनुमति देने का फैसला किया है। यह फैसला राष्ट्रीय शैक्षिक नीति 2020 के माध्यम से आनलाइन शिक्षा के दृष्टिकोण के अनुरूप है। आनलाइन डिग्री पाठ्यक्रमों के माध्यम से छात्र दूर से डिग्री प्राप्त कर सकेंगे। इन कालेजों की रैंक की बात करें तो ये नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क की रैंकिंग में दो बार अपने संबंधित विषय में टॉप 100 रैंक हासिल कर रहे हैं। इस समय केवल विश्वविद्यालयों को आनलाइन कोर्स के माध्यम से दूरस्थ डिग्री प्रदान करने की अनुमति है लेकिन यूजीसी के इस नए आदेश से 900 कालेज भी ऐसा कर सकेंगे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी डिजिटल यूनिवर्सिटी के संबंध में बात की है। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति को जमीनी स्तर पर लागू करने में 2022-23 का बजट महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। ई-विद्या, वन क्लास, वन चैनल, डिजिटल लैब, डिजिटल यूनिवर्सिटी जैसी शैक्षिक सरंचनाएं अब युवाओं काे काफी मदद देने वाली हैं। नेशनल डिजिटल यूनिवर्सिटी भारत की शिक्षा व्यवस्था में अपनी तरह का एक अनोखा एवं अभूतपूर्व कदम है। इससे हमारे देश में शैक्षणिक संस्थानों में सीट की समस्या को खत्म कर सकता है। हर साल कालेजों में दाखिलों की समस्या बढ़ती जा रही है। छात्रों को अपने मनपसंद के पाठ्यक्रमों और कालेजों में दाखिला नहीं मिलता। कोरोना महामारी के चलते जरूरत को देखते हुए आनलाइन शिक्षा का विकास अपनाया गया। इसमें कोई संदेह नहीं कि आनलाइन शिक्षा ने ही काफी हद तक हमारी ​शिक्षा व्यवस्था को बचाया है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में डिजिटल शिक्षा पर काफी फोकस रखा है। बजट में कृषि शिक्षा पर भी काफी ध्यान दिया गया है। वित्त मंत्री ने प्राकृतिक, शून्य बजट और जैविक खेती, आधुनिक कृषि की जरूरतों को पूरा करने के​ लिए कृषि विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों को संशोधित करने पर भी जोर दिया है। डिजिटल विश्वविद्यालय के माध्यम से शिक्षा घर-घर पहुंचेगी। छात्रों को यह स​ुविधा कई क्षेत्रीय भाषाओं में भी प्राप्त होगी। वन क्लास वन चैनल कार्यक्रम को बढ़ाया जाएगा और छात्र-छात्राएं टीवी, मोबाइल और रेडियो द्वारा अपनी क्षेत्रीय भाषा में​ शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे। तकनीक के प्रभाव से शिक्षा का जो स्वरूप उभर रहा है उसकी व्यापकता के साथ शिक्षा संस्थानों का स्वरूप भी बदला है। जिन संस्थानों के पास ​िडजिटल ढांचा था, उन्होंने कक्षाओं को आनलाइन माध्यम में बदल लिया। दूसरी श्रेणी में तकनीकी रूप से ऐसे संस्थान उभरे जिन्होंने आनलाइन और ऑफ लाइन शिक्षण का ​िमलाजुला स्वरूप बनाया। 
तीसरी श्रेणी में ऐसे कालेज और ​िवश्वविद्यालय रहे जो तकनीकी रूप से पीछे रहे। कोरोना काल में तकनीकी कम्पनियों के लिए शिक्षा जगत का बड़ा बाजार खुल गया। हावर्ड समेत दुनियाभर के कई ​विश्वविद्यालयों ने आनलाइन शिक्षा कोर्स शुरू किए। क्योंकि यह क्षेत्र लाखों-करोड़ों डॉलर के सालाना व्यापार की सम्भावना जगाता है। कोरोना का कहर दो साल के बाद कम हो गया है लेकिन कोरोना ने शिक्षा के स्वरूप में जो बदलाव किया वह आगे भी बना रहेगा लेकिन महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आनलाइन शिक्षा से छात्र भविष्य का कैसा सपना बुनते हैं, यह शोध का विषय है। इसमें कोई संदेह नहीं कि डि​िजटल ​​विश्वविद्यालय भविष्य में बहुत उपयोगी साबित होंगे लेकिन आनलाइन शिक्षा की चुनौतियां भी काफी हैं। जब तक सामाजिक अवमानना दूर नहीं होती तब तक इस व्यवस्था का पूरा लाभ हमें नहीं मिलेगा। आर्थिक रूप से कमजोर और गरीबों के बच्चाें के पास लैपटॉप या टेबलेट का अभाव होगा। 
देखना यह भी होगा कि आनलाइन शिक्षा कितनी गुणवत्तापूर्ण है। कोरोना काल में स्कूली बच्चों को आनलाइन शिक्षा स्कूली कक्षाओं का विकल्प नहीं बन सकती। कई विषयों में छात्रों को व्यावहारिक शिक्षा की जरूरत होती है अतः दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से ऐसे विषयों को सिखाना काफी मुश्किल होता है। भविष्य में अभी भी डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर की बहुत कमी है। देश में ऐसे छात्रों की संख्या सीमित है जिनके पास सभी तकनीकी सुविधाएं हैं। यूजीसी का कदम निश्चित रूप से गेमचेंजर है लेकिन कालेजों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के​ लिए व्यवस्था में सुधार करना होगा। इसके ​लिए कालेजों को फंडिंग की जरूरत पड़ेगी। आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के परिवारों को लैपटॉप, कम्प्यूटर और तकनीकी उपकरणों के लिए भी उदारता से फंड देने की जरूरत है। भारत की आबादी एक बड़ा भाग ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है। जिनकी आय सीमित है और उसके लिए आनलाइन शिक्षण के लिए डिवाइस की व्यवस्था करना आसान नहीं है। यद्यपि भारत सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के मामले में चीन के बाद दूसरे नम्बर पर है लेकिन इसके बावजूद भारत में केवल 35 फीसदी लोगों तक ही इंटरनेट की उपलब्धता है। ऑनलाइन शिक्षा का स्वास्थ्य पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। हम परम्परागत शिक्षा की तरह छात्रों की मनोदशा, उनकी एकाग्रता और रुचि का अांकलन नहीं कर पाते। इसीलिए हमें अभी उचित वातावरण को सृजन करने की जरूरत है। देखना होगा कि हम आनलाइन शिक्षा के वरदान का कितना लाभ प्राप्त करते हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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