प्याज की मारी सियासत - Punjab Kesari
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प्याज की मारी सियासत

प्याज भी गजब की चीज है, जब यह गजब ढहाता है तो बहुत कुछ कर जाता है। प्याज

प्याज भी गजब की चीज है, जब यह गजब ढहाता है तो बहुत कुछ कर जाता है। प्याज में इतनी ताकत है कि यह सरकार गिराता भी है और सरकार बनाता भी है। प्याज जब भी महंगा होता है तो सरकारों के कान खड़े हो जाते हैं। प्याज की मारी राजनीति में हमेशा उथल-पुथल होती रही है। मुझे याद है कि इमरजेंसी के बाद जब देश में जनता पार्टी की सरकार बनी थी तो सरकार अपने ही अंतर्विरोधाें में उलझी पड़ी थी। चुनावों में पराजित इंदिरा गांधी के पास कोई मुद्दा नहीं था। अचानक प्याज की कीमतें बढ़ने लगीं तो उन्हें मुद्दा मिल गया। तब कांग्रेस ने प्याज की बढ़ती कीमतों का इस्तेमाल बड़े ही नाटकीय ढंग से किया था। 
यद्यपि प्याज की बढ़ती कीमतों के पीछे कारण मौसम या फसली चक्र जिम्मेदार हो लेकिन इसने लोगों को ही नहीं रुलाया बल्कि राजनीतिज्ञों को भी आंसू बहाने को मजबूर किया है। राजनीति के घटनाक्रम को याद रखने वाले लोगों को याद होगा कि प्याज की बढ़ती कीमतों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए तत्कालीन कांग्रेस सांसद सी.एस. स्टीफन प्याज की माला पहनकर संसद में आए थे, जिस पर जनता पार्टी के नेता पीलू मोदी ने टिप्पणी की थी कि सरकार को बताना चाहिए कि टायरों के दाम कब बढ़ रहे हैं। 
केंद्र में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी तो 1998 में प्याज की कीमतों ने फिर अपना जलवा दिखाया। तब अटल जी ने कहा था कि जब कांग्रेस सत्ता में नहीं रहती तो प्याज परेशान करने लगता है। अटल जी को लगता था कि शायद प्याज की कीमतों के बढ़ने के पीछे कोई षड्यंत्र है। 1998 में दिल्ली में भी भाजपा की सरकार थी। दिल्ली विधानसभा के चुनाव होने वाले थे। दिल्ली सरकार ने आनन-फानन में प्याज मंगाकर सस्ते में बेचने का प्रयास किया तो लोग प्याज के लिए लंबी कतारों में खड़े होने लगे। कुछ जगह प्याज को लूटा भी गया। 
सड़कों पर छीना-झपटी भी हुई। जो प्याज बेचा गया उसमें से अधिकांश सड़ा-गला निकला। दिल्ली की आबादी को सस्ता प्याज उपलब्ध कराने की कोशिशें असफल सिद्ध हुईं। अफरा-तफरी का माहौल कायम हो चुका था। चुनाव हुए तो मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज के नेतृत्व वाली भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा और दिल्ली में शीला दी​क्षित के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी, जिसने 15 वर्ष तक शासन किया। इस बार प्याज की कीमतें तब बढ़ी हैं जब शारदीय नवरात्र का सीजन है। इन दिनों प्याज की खपत कम होती है। 9 दिन तो लोगों को प्याज की चिंता नहीं रुलाएगी। दिल्ली में विधानसभा चुनाव भी अगले वर्ष हैं इसलिए चुनावों को प्रभावित करने की कोई संभावना नहीं है। 
केंद्र सरकार ने अब प्याज के निर्यात पर रोक लगा दी है और भंडारण सीमा भी तय कर दी है। सरकार के फरमान के बाद निर्यात के लिए लोड कराये गए सैकड़ाें कंटेनर बंदरगाह पर अटक गए हैं। इससे निर्यातक परेशान हो उठे हैं। दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने शहर में मोबाइल वैन और राशन की दुकानों के जरिये प्याज की बिक्री 23 रु. 90 पैसे प्रति किलोग्राम की दर से करने की शुरूआत कर दी है। एक व्यक्ति पांच किलो  प्याज खरीद सकता है। जब भी प्याज की कीमतें बढ़ीं जमाखोरों और कालाबाजारी करने वालों ने खूब चांदी काटी।
पिछले तीन साल से प्याज उगाने वाले किसानों को लगातार नुक्सान हो रहा था। किसानों ने अपनी फसल सड़कों पर बिखेर दी थी। कुछ किसानों ने आत्महत्या कर ली थी। इसलिए किसानों ने प्याज की फसल इस बार कम उगाई। जून की गर्म हवाओं और बाद में महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक आदि प्याज उत्पादक राज्यों में वर्षा और बाढ़ के चलते प्याज की फसल खराब हो गई। कई राज्यों में भयंकर बाढ़ के चलते सप्लाई घटने से प्याज की कीमतें 70-80 रुपए प्रति किलो हो गईं। महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनावों त​था अनेक राज्यों के लगभग दर्जन उपुचनावों से ठीक पहले प्याज के दामों में  उछाल भाजपा के लिए चिंता का विषय जरूर है। 
प्याज के बाद अब टमाटर भी लाल हो चुका है। कभी हमें प्याज रुलाता है तो कभी टमाटर परेशान करता है। सरकार कह रही है कि उसके पास प्याज का पर्याप्त स्टाक है। फिर भी समय-समय पर हमें यह प्रभावित करता है। हम ऐसा तंत्र विकसित ही नहीं कर पाए कि किसी चीज का उत्पादन घटे या बर्बाद हो तो हम अपने स्टाक की सप्लाई पर्याप्त मात्रा में कर सकें। सवाल यह है कि इस सारे खेल में किसान को क्या मिला? फसल अधिक हो तो सड़क पर फेंकनी पड़ती है, उत्पादन कम हो तो कमाता सिर्फ व्यापारी है। दो माह में नई फसल आने तक स्थितियां ऐसी ही रहेंगी। जब भी महंगाई बढ़ी, तब-तब सियासी तूफान जरूर खड़े हुए हैं।

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