एक वोट और चुनाव आयोग - Punjab Kesari
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एक वोट और चुनाव आयोग

यदि गौर से देखें तो भारत का सम्पूर्ण लोकतान्त्रिक ढांचा ‘एक वोट’ के अधिकार पर खड़ा हुआ है

यदि गौर से देखें तो भारत का सम्पूर्ण लोकतान्त्रिक ढांचा ‘एक वोट’ के अधिकार पर खड़ा हुआ है क्योंकि इसी एक वोट का प्रयोग करके प्रत्येक वयस्क मतदाता ग्राम पंचायत से लेकर विधानसभा और लोकसभा का गठन करता है और राज्यसभा का गठन भी इसी एक वोट से बनी विधानसभा में पहुंचे सदस्य अपने एक वोट का प्रयोग करके करते हैं। विधानसभाएं और संसद इसी एक वोट के आधार पर बहुमत में आये दलों की सरकारें गठित करती हैं जिनके हाथ में प्रशासन होता है। सत्तारूढ़ सरकारें जो भी नीतियां या कानून बनाती हैं उनके पीछे इसी एक वोट की ताकत होती है अतः हमारे लोकतन्त्र की पूरी इमारत इसी एक वोट के अधिकार पर खड़ी हुई है। इस एक वोट की पवित्रता और सच्चेपन को बनाए रखने का काम हमारे संविधान निर्माताओं ने सरकारों पर नहीं छोड़ा बल्कि अलग से एक स्वतन्त्र चुनाव आयोग की स्थापना की और उसे पूरी तरह निष्पक्ष बनाए रखने के लिए वे अधिकार दिए जिससे राजनीतिक दलगत प्रणाली के लोकतन्त्र में किसी भी पार्टी की सरकार उसके काम में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न कर सके। इसके लिए जो ढांचा खड़ा किया उसमें राजनीतिक दलों की नकेल चुनाव आयोग को सौंपी गई और उसे एक वोट का अधिकार प्रयोग करने की प्रणाली ‘चुनावों’ को आयोजित करने की जिम्मेदारी दी गई और उस पर आम मतदाता के एक वोट की पवित्रता और सच्चाई को हर हालत में बनाये रखने का वह दायित्व सौंपा गया जिससे निकले नतीजों के आधार पर जनमत या जनादेश का फैसला हो सके।

इसमें किसी प्रकार का कोई सन्देह नहीं है कि चुनाव आयोग यह कार्य पूरी निष्ठा के साथ करता रहा है और उस पर सत्ता में काबिज सरकारों का दबदबा नगण्य ही रहा है। उसकी स्वतन्त्र सत्ता के समक्ष चुनी हुई सरकारें नतमस्तक इसीलिए होती रही हैं कि हमारे संविधान निर्माताओं ने कोई एेसी जगह खाली नहीं छोड़ी थी जिसका उपयोग कोई भी सरकार अपनी धमक दिखाने के लिए कर सके। यह काम हमारे संविधान निर्माताओं ने इस प्रकार किया कि चुनाव आयोग को अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने की इजाजत सरकारों से नहीं बल्कि संविधान से लेनी पड़े। अतः बहुत स्पष्ट है कि देश के विभिन्न राजनीतिक दल जिस प्रकार चुनाव प्रणाली में प्रयोग में लाई जाने वाली ईवीएम मशीनों पर शंका जता रहे हैं उसका सम्बन्ध सरकार से किसी भी तौर पर नहीं है बल्कि चुनाव आयोग से है इसलिए यह मसला किसी भी तौर पर विपक्ष और सत्तारूढ़ दल के बीच का नहीं है बल्कि मौजूदा दौर की सियासत और चुनाव आयोग के बीच का है बल्कि यह भी कह सकते हैं कि यह मसला आम मतदाता और चुनाव आयोग के बीच का है क्योंकि सियासी पार्टियां जनता का ही प्रतिनिधित्व करती हैं। जब देश की 17 राजनीतिक पार्टियां यह आशंका जता रही हैं कि ईवीएम मशीनों के प्रयोग से मतदाताओं की पसन्द में हेरफेर हो सकती है, टैक्नोलोजी प्रयोग के नाम पर मतदाता द्वारा दिए गए वोट की सच्चाई को आशंका के घेरे में नहीं डाला जा सकता है तो चुनाव आयोग को विचार करना ही होगा कि जल्दी मतगणना के लालच में एेसी मशीनों का प्रयोग करना कितना वाजिब हो सकता है।

दुनिया के आधुनिकतम कहे जाने वाले देशों तक में इन मशीनों का प्रयोग बन्द करके पुरानी बैलेट पेपर प्रणाली लागू की जा चुकी है। इसमें जिद्द की कोई बात नहीं है और न ही ईवीएम मशीनों पर किए गए खर्चे की बात है। इन मशीनों पर खर्च किए गए पांच हजार करोड़ रुपयों की भारत के लोकतन्त्र की पवित्रता के आगे कोई कीमत नहीं है। हकीकत यह है कि इन मशीनों के साथ लगी रसीदी वीबी पैट मशीनों की भरपाई के लिए जरूरी धन की सुलभता ही चुनाव आयोग को सर्वोच्च न्यायालय पर जाने से हो सकी थी मगर इन रसीदी उपकरणों का भी कोई महत्व तब नहीं रहता है जब इनसे निकली कागजी रसीदों की पूरी गिनती ही नहीं की जाती है और ईवीएम से निकले नतीजों को ही घोषित कर दिया जाता है। सवाल यह है कि जब आम मतदाता को चुनाव आयोग सन्तोष नहीं दिला पा रहा है कि उसके द्वारा दिया गया वोट ईवीएम मशीन उसकी पसन्द के प्रत्याशी या पार्टी को ही ही दे रही है?

तो हमारी लोकतन्त्र की समूची इमारत आशंका के बादलों में आ जाती है और चुनाव आयोग का प्राथमिक कर्तव्य संविधान में यही है कि वह इस प्रकार साफ-सुथरे चुनाव करायेगा कि हर मतदाता में यह विश्वास रहे कि उसके डाले गए वोट की पूरी निष्पक्षता के साथ गिनती की गई है मगर इसमें सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा को बेवजह परेशान होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है क्योंकि इसका सम्बन्ध सरकार से नहीं है, सरकार चुनाव आयोग को चुनाव आयोजित करने के बारे में कोई सुझाव नहीं दे सकती बल्कि उसके द्वारा मांगी गई सहूलियतों को फराहम कराना उसका काम होता है। जब चुनाव आयोग ने ईवीएम मशीनों के प्रयोग करने का फैसला लिया था तो तत्कालीन सरकार ने उस पर दबाव नहीं डाला था बल्कि स्वयं उसने सरकार के पास एेसा सुझाव भेजा था मगर टैक्नोलोजी प्रयोग का यह मतलब कतई नहीं होता कि हम अपने अस्तित्व को ही गिरवी रख दें। मतदान प्रक्रिया पर ही भारत का लोकतन्त्र टिका हुआ है अतः हमें अपने उस अस्तित्व को बचाये रखना है जो एक वोट की आत्मा है। जाहिर है कि जो भी फैसला चुनाव आयोग करेगा उसे इसी कसौटी पर खरा उतरना होगा।

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