दिल्ली में फिर सम-विषम - Punjab Kesari
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दिल्ली में फिर सम-विषम

राजधानी दिल्ली में 4 नवम्बर से शुरू हो रहे सम-विषम नियम को लेकर जनता और राजनीतिक दलों के

राजधानी दिल्ली में 4 नवम्बर से शुरू हो रहे सम-विषम नियम को लेकर जनता और राजनीतिक दलों के बीच राय बिल्कुल बंटी हुई है। यह भी कहा जा रहा है कि सम-विषम नियम का उल्लंघन करने पर संशोधित मोटर वाहन कानून के तहत 20 हजार रुपये तक जुर्माना हो सकता है। सम-विषम नियम के तहत वाहनों की पंजीकरण संख्या के ​अंतिम अंक के आधार पर एक दिन केवल सम अंक की गाड़ियां और अगले दिन विषम अंक के वाहन वैकल्पिक आधार पर सड़कों पर चलते हैं। इससे पहले जनवरी और अप्रैल 2016 में दिल्ली सरकार ने सम-विषम योजना लागू की थी। 
उस समय इसका उल्लंघन करने पर 2000 रुपये जुर्माने का प्रावधान था। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हाल में कहा था कि सर्दियों में वायु-प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये चार से 15 नवम्बर तक 7 बिन्दुओं वाली कार्ययोजना के तहत दिल्ली में सम-विषम योजना लागू की जायेगी। भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली सरकार के इस कदम को लोगों को परेशान करने वाला राजनीतिक स्टंट करार दिया वहीं कांग्रेस ने इसे शहर की समस्याओं से ध्यान बंटाने की साजिश करार दिया। 
केन्द्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने भी दावा किया है कि दिल्ली में उनके मन्त्रालय ने जो तरीके अपनाये हैं उनमें यह सुनिश्चित होगा कि महानगर अगले दो वर्षों में प्रदूषण मुक्त हो जायेगा। उनका स्पष्ट कहना है कि दिल्ली में सम-विषम योजना की कोई जरूरत नहीं क्योंकि जो नये मार्ग बनाये गये हैं उससे दिल्ली में प्रदूषण को रोकने में काफी मदद मिली है। अब सवाल यह है कि क्या वास्तव में दिल्ली में सम-विषम योजना की जरूरत है या नहीं। हर साल सर्दियों के मौसम में पड़ोसी राज्यों में किसानों द्वारा पराली जलाये जाने का सिलसिला शुरू हो जाता है। पराली जलाये जाने की तस्वीरें तो अभी से ही आनी शुरू हो चुकी हैं। 
दशहरा-दीपावली पर पटाखों से भी प्रदूषण बढ़ता है, हालांकि लोग पहले से कहीं अधिक जागरूक हैं और पटाखे चलाने का चलन घट रहा है। पराली जलाये जाने से दिल्ली में घनी धुंध छा जाती है और दिल्ली एक गैस चैम्बर बन जाती है। स्कूलों में छुट्टियां करनी पड़ती हैं। दिल्ली गैस चैम्बर नहीं बने इसके लिये पहले से ही उपाय करने की जरूरत है। केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड द्वारा तैयार चरणबद्ध प्रतिक्रिया कार्ययोजना के मुताबिक निजी वाहनों के लिये सम-विषम योजना तब लागू होती है जब प्रदूषण का स्तर 48 घण्टे या उससे ज्यादा समय तक ‘गंभीर प्लस’ श्रेणी में रहता है। 
दिल्ली सरकार अध्ययनों के हवाले से कह रही है कि सम-विषम से 10 से 13 फीसदी प्रदूषण कम हो सकता है जबकि कुछ विशेषज्ञ इस योजना की यह कहकर आलोचना करते हैं कि वायु प्रदूषण पर इसके प्रभाव का अध्ययन कर पाया गया कि दिल्ली में इसका असर दो या तीन फीसदी ही पड़ा है। 2016 में जब सम-विषम योजना शुरू की गई थी, तब भी कोई ज्यादा असर नहीं पड़ा था। दिल्ली की हवाओं को विषाक्त होने से रोकने के लिये किसी भी योजना का विरोध अनुचित ही लगता है। यदि शहर की वायु गुणवत्ता में सुधार के लिये दीर्घकालीन योजना के तहत दिल्ली सरकार कुछ कदम उठाती है तो उसके विरोध का कोई औचित्य नजर नहीं आता। 
दिल्ली सरकार करीब 50-60 लाख प्रदूषण रोधी एन-95 मास्क खरीदेगी। लोगों को जागरूक करने के लिये कार्यक्रम आयोजित करेगी, कूड़ा जलाने वालों पर नजर रखेगी और प्रदूषण को रोकने के अभियान में जनता को भागीदार बनायेगी तो निश्चित रूप से दिल्ली गैस चैम्बर नहीं बनेगी। देखना यह भी होगा कि सम-विषम योजना लागू होते ही कैब सेवायें लूट न मचाने लगें, ऑटो-रिक्शा वाले यात्रियों से ज्यादा किराया न वसूलें। सड़कों पर पानी का छिड़काव किया जाये और सड़कों की यंत्रीकृत सफाई की व्यवस्था हो।
उपाय और भी हैं। दिल्ली सरकार आईटी उद्योग और औद्योगिक क्षेत्रों में साप्ताहिक अवकाश बदल सकती है। राजधानी में सार्वजनिक परिवहन सेवा में सुधार की गुंजाइश अभी भी है। अगर परिवहन सेवाओं में सुधार होता तो लोग निजी वाहनों का इस्तेमाल कम ही करते। दिल्ली वासियों को स्वयं जीवन को प्रदूषण से बचाने के लिये हर तरह का सहयोग करना चाहिये। उन्हें शेयर टैक्सी का इस्तेमाल करना चाहिये। उन्हें जहरीली गैसों और बीमारियों से बचना है तो सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना होगा।

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