अब स्पुतनिक भी जंग में उतरी - Punjab Kesari
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अब स्पुतनिक भी जंग में उतरी

कोरोना की दूसरी लहर ​जिस तेजी से फैल रही है, वह बड़े खतरे का संकेत तो दे ही

कोरोना की दूसरी लहर ​जिस तेजी से फैल रही है, वह बड़े खतरे का संकेत तो दे ही रही है। एक दिन में एक लाख 60 हजार से ऊपर के आंकड़े ने खौफ पैदा कर दिया है। भारत दुिनया का पहला देश हो गया है, जहां संक्रमण के नए मामले मिलने की रफ्तार सबसे ज्यादा है। भारत ने ब्राजील को भी पछाड़ दिया है। कई राज्यों में मौतों की संख्या बढ़ने से श्मशान घाटों में अंत्येष्टि के लिए जगह नहीं मिल रही है। अस्पतालों में बैड की कमी हो चुकी है। खौफ के बीच लोगों का देश में मौजूद कोरोना वैक्सीन पर भरोसा बढ़ा है और वैक्सीन लगवाने के लिए लोग उमड़ पड़े हैं। 
महामारी के प्रकोप के फिर से बढ़ने का प्रेत लगभग हर भारतीय को सताने लगा है। अब लोग खुद टीका लगवाने के इच्छुक हैं। कई राज्यों में वैक्सीन की कमी का संकट आ चुका है क्योंकि वैक्सीन की आपूर्ति सीमित है। टीकाकरण को तेज करने के लिए दवा नियामक ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने रूस की स्पुतनिक-वी को आपात  इस्तेमाल की मंजूरी दे दी गई है। स्पुतनिक-वी को लेकर पहले कई तरह की आशंकाएं थीं लेकिन संक्रमण रोकने और पूरी तरह सुरक्षित पाए जाने के बाद ही उसे हरी झंडी दी गई है। रूसी वैक्सीन परीक्षण में 91.6 फीसदी कारगर पाई गई है। भारत इस वैक्सीन को मंजूरी देने वाला 60वां देश है। स्पुतनिक-वी वैक्टर  आधारित वैक्सीन है। इसमें एडेनोवायरस-5 और एडेनोवायरस-26 का इस्तेमाल किया गया है। एस्ट्रोजेनेका और जानसन एंड जानसन आदि कम्पनियों ने भी अपनी वैक्सीन में इन्हीं में से किसी एक वैक्टर का इस्तेमाल किया है। इस वैक्सीन की खासियत यह है कि इसे 2 से 8 डिग्री सेल्सियस तापमान में रखा जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि भारत में इसके भंडारण में दिक्कत नहीं आएगी। रूसी शब्द स्पुतनिक की उत्पत्ति पुत से हुई है। पुत से पहले लगने वाले एस का मतलब है साथी या सहयोगी। बाद में लगने वाले निक का अर्थ है व्यक्ति। इस प्रकार स्पुतनिक का अर्थ हुआ रास्ते का साथ। रूस में यह बहुत लोकप्रिय शब्द है।
वैसे दुनिया में रेगुलेटरी अप्रूवल हासिल करने वाली यह पहली वैक्सीन थी मगर पर्याप्त ट्रायल डेटा न होने के चलते दूसरे देशों ने पहले इसे तवज्जो नहीं दी। फेज थ्री के ट्रायल के अंतिम नतीजों में इस वैक्सीन की एफेकसी 91.6 फीसदी पाई गई जो दूसरी वैक्सीन से अधिक पाई गई है। भारत बायोटेक की को-वैक्सीन ने फेज तीन क्लीनिकल ट्रायल में 81 प्रतिशत की एफेकसी हासिल की थी, जबकि सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया की कोविशील्ड की एफेकसी 62 फीसदी दर्ज की गई थी। हालांकि डेढ़ डोज देने पर एफेकसी 90 फीसदी तक पहुंच जाती है। इस तरह स्पुतनिक-वी के रूप में भारत को कोरोना के खिलाफ तीसरा हथियार मिल गया है। पिछले दिनों भारत दौरे पर आए रूस के ​विदेश मंत्री सगेई लॉवरोव ने कहा था कि रूसी पक्ष ने भारतीय कम्पनियों के साथ स्पुतनिक-वी टीके की 70 करोड़ खुराक के उत्पादन के लिए कई अनुबंध किए हैं। डा. रैड्डीज ने पिछले वर्ष सितम्बर में इस टीके के मेडिकल ट्रायल और भारत में इसके वितरण अधिकार के लिए एशियन डायरैक्ट फंड के साथ भागीदारी की थी। 
स्पुतनिक-वी का उत्पादन भारत में शुरू हो जाए तो कीमत काफी कम हो जाएगी। सम्भव है कि आने वाले महीनों में कुछ और वैक्सीन भी आ जाएं लेकिन लोगों को समझना होगा कि केवल वैक्सीन लगवा लेने से ही कोरोना वायरस से बचाव नहीं होगा। प्रतिष्ठित अस्पतालों के डाक्टर और नर्स भी वायरस के हमले से नहीं बचे हैं। शिक्षण संस्थानों के छात्रावासों को वायरस ने भेद दिया है। अति सुरक्षित क्षेत्रों में रहने वाले समृद्ध लोग भी इससे बच नहीं पा रहे। बालीवुड और खेल जगत और साहित्य के क्षेत्र की नामी-गिरामी हस्तियां क्वारंटीन हैं या अस्पतालों में भर्ती हैं। 
देखना होगा कि चुनाव परिणाम आने के बाद का आंकड़ा कितना खौफनाक होगा। विशेष अवसरों पर डिजाइन मास्क फैशन की चीज बन गए हैं। कुछ समय पहले भारतीय प्रबंधन सफलता की वैश्विक कहानी बन गया था। कहा जा रहा है कि इसी सफलता ने भारत में फिर कोरोना को फैलने का मौका दिया। सतर्कता घटती गई। मनोरंजन उद्योग, लोक सेवक, कारोबारी कोरोना नियमों को भूल गए। वे पार्टियां करते देखे जाने लगे। जो लोग बिना मास्क घूम रहे हैं, मानो उनको कोई शाही और अचूक प्रतिरोधक क्षमता ​मिल गई हो। अगर ऐसी ही लापरवाही चलती रही तो यह आत्मघाती ही होगा। ​देशवासियों को संयम से काम लेना होगा, अन्यथा ऐसी हानि होगी जिसकी भरपाई मुश्किल होगी। सरकार ने वैक्सीनेशन लाकर लोगों को महामारी से बचाया है, पर लोगों को सतर्कता बरतनी होग, ​िढलाई से दूर रहना होगा।

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