पिछले एक माह से ज्यादा समय से पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में जिस तरह से हिंसा का तांडव चल रहा है वह रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है और एेसा लग रहा है कि राज्य में कानून- व्यवस्था तार-तार हो चुकी है। मणिपुर अपनी मनभावन संस्कृति के लिए भारत के मैदानी इलाकों के राज्यों में भी जाना जाता है विशेषकर ‘मणिपुरी नृत्य’ के लिए। मगर वर्तमान में इस राज्य के दो जातीय समूहों ‘कुकी’ व ‘मैतेई’ में जिस तरह का आपसी युद्ध चल रहा है उसकी लपटों में सरकारी सुरक्षा सैन्य बल भी झुलस रहे हैं। हद तो यह हो गई है कि प्रशासनिक व कानून-व्यवस्था कायम करने वाले बलों असम राइफल्स से लेकर रैपिड एक्शन फोर्स तक के जवानों पर भी खुल कर हमले हो रहे हैं। मणिपुर एेसा राज्य है जिसकी राजधानी इम्फाल तो इसके मैदानी इलाके में पड़ती है परन्तु इसके पहाड़ी क्षेत्र पड़ोसी देश म्यांमार की सीमा से जाकर लगते हैं। मैदानी क्षेत्र में मैतेई जनजातीय लोगों की अधिकता है जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में कुकी जनजाति के लोगों की अधिकता है परन्तु आबादी की दृष्टि से देखा जाये तो मौतेई समाज के लोग बहुसंख्यक कहे जायेंगे, जिनमें 80 प्रतिशत से अधिक हिन्दू धर्म के मानने वाले हैं। कुकी पहाड़ों पर रहने वाले जनजातीय लोग हैं और इनमें ईसाई चर्चों का खासा प्रभाव रहा है।
कुकी समुदाय के लोगों को संविधान के अनुच्छेद 371 के तहत अपनी समुदायगत परंपराएं व रीति-रिवाजों को मानने की छूट के साथ ही अधिकृत जनजाति का दर्जा मिलने की वजह से अपने रिहायशी इलाके की भूमि व इसके क्षेत्र के संरक्षण का अधिकार भी संविधान देता है परन्तु पड़ोसी देश म्यांमार में भी इस जाति के कुकी लोग रहते हैं जो भारतीय कुकियों से बहुत मिलते-जुलते हैं और वे प्रायः सीमा पार करके भारतीय इलाकों में भी बसते रहते हैं। इनमें से अधिसंख्य ईसाई हैं। हालांकि मणिपुर में कभी साम्प्रदायिक भेदभाव का मुद्दा नहीं रहा। अतीत में इस समस्या पर काबू पाने में केन्द्र सरकारें सफल रहीं और किसी भी प्रकार के सशस्त्र विद्रोह से उन्होंने कुकी लोगों को अलग कर दिया। हालांकि मैतेई समाज के लोगों की कुकी समाज के साथ कभी सीधी रंजिश नहीं रही परन्तु विगत महीने राज्य के उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के बारे में राज्य सरकार को विचार करना चाहिए और सम्बन्धित अनुशंसा केन्द्र सरकार से करनी चाहिए। इससे मणिपुर में कुकी समुदाय के लोगों का गुस्सा चढ़ गया और मैतेई समाज भी जवाबी हिंसा पर उतारू हो गया। परिणाम यह हुआ कि पुलिस से लेकर अन्य सरकारी विभागों में कार्यरत कुकी व मैतेई समाज के लोग एक-दूसरे के खिलाफ खड़े होने लगे। यही वजह है कि जहां कुकी लोगों को मौका मिलता है वे मैतेई समाज के लोगों की हत्या कर देते हैं और मैतेई समाज के लोग ऊपर पहाड़ों पर भेजी जाने वाली सप्लाई के मार्ग में बाधा खड़ी करते हैं और हत्या करने से भी नहीं चूकते। यहां तक सुरक्षा बलों में तैनात कुकी व मैतेई लोग भी हिंसा के शिकार हो रहे हैं। पिछले एक महीने से यह सिलसिला जारी है और प्रत्येक शान्ति प्रयास विफल हो रहे हैं। कुकी लोग मैतेई समाज को जनजाति का दर्जा दिये जाने के सख्त खिलाफ हैं। उनका मानना है कि एेसा होने से उनके पहाड़ी क्षेत्रों में भी अपेक्षाकृत सम्पन्न मैतेई समाज कब्जा कर लेगा और अपने काम-धंधे शुरू कर देगा। जनजाति का दर्जा मिलते ही मैतेई समाज के लोग पहाड़ों पर जमीन खरीदने व व्यवसाय करने के अधिकारी हो जायेंगे। कुकी समाज को यह खतरा बहुत बड़ा लगता है और वे मानते हैं कि एेसा होने से उनकी विशिष्टता ही समाप्त हो जायेगी। जबकि मैतेई समाज भी मूल रूप से जनजाति समाज ही है हालांकि वह ज्यादा शिक्षित और सम्पन्न माना जाता है। विगत रात्रि जिस तरह से केन्द्र के विदेश राज्यमन्त्री राजकुमार रंजन सिंह के इम्फाल स्थित निवास को आग लगा दी गई। इससे एक दिन पहले राज्य के एक कैबिनेट मन्त्री के आवास की भी यही हालत की गई थी। राज्य में भाजपा व क्षेत्रीय दल एनपीपी की मिलीजुली सरकार है। यह हालत तब है जब राज्य को संविधान के अनुच्छेद 355 के तहत केन्द्रीय निगरानी में ले लिया गया है और केन्द्रीय सुरक्षा बलों को पर्याप्त संख्या में तैनात कर दिया गया है। इससे निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कुकी व मैतेई संघर्ष के चलते सारे इन्तजाम असफल हो रहे हैं क्योंकि मणिपुर के लोगों के बीच ही आन्तरिक संघर्ष और खून-खराबा चल रहा है।