जब तक पाकिस्तान अपनी भारत विरोधी नीतियों को बढ़ावा देना बंद नहीं करता तब तक दोनों देशों के रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलने की उम्मीद बहुत कम है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर के एससीओ सम्मेलन में किए गए सम्बोधन से यह बात पूरी तरह से एक बार िफर स्पष्ट हो गई। विदेश मंत्री ने पाकिस्तान और चीन का नाम लिए बिना दोनों देशों को जमकर खरी-खरी सुनाई। विदेश मंत्री ने पाकिस्तान की जमीन पर खड़े होकर दो टूक शब्दों में कहा कि सहयोग पारस्परिक आदर आैर संप्रभु समानता के आधार पर होना चाहिए। क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के सम्मान से ही सच्ची साझेदारी मजबूत हो सकती है। आतंकवाद, अलगाववाद और कट्टरपंथ के साथ-साथ व्यापार या वार्ता नहीं चल सकती। विदेश मंत्री के आक्रामक रुख के बावजूद पाकिस्तान की सत्ता से जुड़े लोगों ने एस. जयशंकर की पाकिस्तान यात्रा का स्वागत किया और अपनी बात खुलकर रखी। विदेश मंत्री ने वही कुछ कहा जो भारत पहले भी कहता आया है।
आजादी के बाद से ही जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की साजिशों और सीमा पर उसकी हरकतों ने भारत के लिए चुनौतियां पैदा कर दी थीं। पाकिस्तान ने 1965 आैर 1971 तथा 1999 में कारगिल युद्ध में करारी हार के बावजूद भारत को हजारों जख्मों से लहूलुहान करने की गैर पारम्परिक युद्ध नीति पर अमल करना शुरू किया। इसके बाद उसने जम्मू-कश्मीर और पंजाब में लश्कर और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों को बढ़ावा दिया। पाकिस्तान ने भारत के कई शहरों में आतंकवादी हमले किए। 2005 के दिल्ली सीरियल ब्लास्ट, 2006 के मुम्बई ट्रेन धमाके और 2008 के मुम्बई आतंकी हमले में बहुत सारे लोग मारे गए। पाकिस्तानी आतंकवादियों ने हमारी संसद, हमारे धर्मस्थलों तक को नहीं छोड़ा। 2015 में गुरदासपुर, 2016 में पठानकोट और उरी तथा 2019 में पुलवामा में हमले कर हमारे जवानों का खून बहाया। अंततः भारत ने राजनीतिक इच्छा शक्ति के समर्थन से अपने रक्षात्मक रवैए को अलविदा कह दिया। किसी आतंकवादी हमले के बाद भारत के सुरक्षा तंत्र में सैन्य अभियानों जैसे कि ‘सर्जिकल स्ट्राइक (सितंबर 2016) और बालाकोट हवाई हमले (फ़रवरी 2019) के ज़रिए पलटवार किया और ये दिखा दिया कि वो पाकिस्तान की परमाणु युद्ध की धमकी की हवा निकालना भी जानता है। भारत की सैन्य कार्रवाई के जवाब में पाकिस्तान की तरफ से ठोस जवाब न मिलने से ये ज़ाहिर हो गया कि भारत ने बहुत सोच-समझकर जोखिम लिया था। अब इन कार्रवाइयों ने भविष्य में सीमा पार से होने वाले आतंकवादी हमलों के जवाब का तरीक़ा तय कर दिया है। हो सकता है कि आतंकवादी हमलों के जवाब में भारत की सैन्य कार्रवाई ने भविष्य में पाकिस्तान की तरफ़ से ऐसी हरकतों पर लगाम लगा दी है। वैसे अब किसी भी स्थिति में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों को भविष्य में कोई साज़िश रचने से पहले इस बात का ध्यान भी रखना होगा कि भारत इसके बदले में सैन्य कार्रवाई भी कर सकता है लेकिन पाकिस्तान को अपनी आतंकवादी गतिविधियों को नया रंग-रूप देने और नए नुस्खे आज़माने का हुनर हासिल है। ये बात हमें कुछ मिसालों से साफ़ नज़र आती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार ने पाक प्रायोजित आतंकवाद को लेकर कड़ा रुख अपनाया और 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाकर पाकिस्तान की साजिशों को विफल बना दिया आैर जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पर काफी हद तक काबू पाने में सफलता भी प्राप्त कर ली। जम्मू-कश्मीर में हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव भी हिंसा से मुक्त रहे। हालांकि पाकिस्तान के पाले हुए आतंकवादी छोटे-छोटे आतंकी हमले कर रहे हैं। दोनों देशों के कूटनयिक रिश्ते ठंडे हो जाने से अटारी-बाघा व्यापार भी ठप्प हुआ और सम्पर्क भी टूट गया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर के 9 साल बाद पाकिस्तान दौरे के दौरान उनकी पाक प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ हाथ मिलाने की तस्वीरें भी सामने आईं।
शहबाज शरीफ, पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो, मौजूदा विदेश मंत्री इसहाक डार ने भारत के साथ िरश्ते सुधारने के िलए बातचीत की। कई अन्य विशेषज्ञों ने भी दोनों देशों में बातचीत शुरू करने का समर्थन किया। भारत से रिश्ते अगर अच्छे होते तो पाकिस्तान भारत का फायदा उठा सकता था। क्योंकि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कर्ज के जाल में फंसी हुई है। इसलिए वहां का आवाम भारत से िरश्ते सुधारने का समर्थक है। भारत ने सार्क की तरह बायकॉट तो नहीं किया लेकिन एससीओ बैठक में विदेश मंत्री एस. जयशंकर को भेजकर साकारात्मक कदम उठाया लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि भारत ने कोई यूटर्न लिया है। पाकिस्तान और चीन मिलकर क्षेत्र को अस्थिर बनाने में अपनी भूमिका पर पर्दा नहीं डाल सकते। जब तक पाकिस्तान के हुकमरान और सैन्य तंत्र अपनी आतंकवादी नीतियाें में बदलाव नहीं लाते तब तक रिश्तों में बदलाव की कोई उम्मीद नहीं है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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