भारत में शास्त्र और शस्त्र का बहुत महत्व है। शास्त्र और शस्त्र से बुद्धि और बल का आपसी समन्वय होता है। शास्त्र जीवन का व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करते हैं और शस्त्र दुष्टों से रक्षा करते हैं। ऋषियों-मुनियों की तप साधना को बचाने के लिए और उनके यज्ञ में कोई विघ्न न डाले इसलिए भगवान श्रीराम ने शस्त्रों से ही राक्षसों का संहार किया था। सिख गुरुओं ने भी धर्म और शास्त्रों की रक्षा के लिए शस्त्र उठाए थे। कोई भी राष्ट्र तब तक शक्तिशाली नहीं होता जब तक उसकी सेना मजबूत नहीं होती। हमें इस बात पर गर्व है कि भारत की तीनों सेनाएं थल, वायु और जल सेना हर तरफ से देश की सुरक्षा के लिए तैयार हैं। थल और वायुसेना के साथ-साथ अब भारतीय नौसेना भी बहुत ताकतवर बन चुकी है। भारतीय नौसेना 1612 में अस्तित्व में आई थी तब अंग्रेजों के शासन में इसे रॉयल इंडियन नेवी का नाम दिया था।
स्वतंत्रता के बाद 1950 में इसे भारतीय नौसेना के तौर पर पुनर्गठित किया था। भारतीय नौसेना अब अपने युद्ध पोतों और पनडुब्बियों के बेड़े का विस्तार करने पर ध्यान केन्द्रित कर रही है ताकि 2035 तक जंगी जहाजों की संख्या 175 हो सके। अंडरवाटर लड़ाकू वाहकों को बढ़ाने के लिए भारत अब स्वदेशी उत्पादन पर निर्भर है। हिन्द महासागर क्षेत्र में दुश्मनों को रोकने के िलए भारतीय नौसेना के संचालन का क्षेत्र विस्तार ले रहा है और इसके लिए जरूरी है कि भारतीय नौसेना को लगातार मजबूत बनाया जाए। गुरुवार को रक्षामंत्री राजनाथ की उपस्थिति में भारतीय नौसेना में स्वदेशी परमाणु पनडुब्बी आईएनएस अरिघात को शामिल िकया गया है। यह दूसरी परमाणु पनडुब्बी होगी जो हिन्द महासागर में देश की नई प्रहरी होगी। अरिघात का अर्थ शत्रु का नाश करने से है आैर यह शब्द संस्कृत से िलया गया है। इस तरह की पनडुब्बी अब तक सिर्फ पांच देशों के पास है यािन फ्रांस, ब्रिटेन, चीन, रूस आैर अमेरिका। भारत अब ऐसी पनडुब्बी हासिल करने वाला छठा देश बन गया है। यह पनडुब्बी देश की परमाणु तिकड़ी परमाणु ट्रायडेट को आैर मजबूत करेगी। परमाणु प्रतिरोध को बढ़ाएगी। क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन स्थापित करने में मदद देगी और देश की सुरक्षा में निर्णायक भूमिका निभाएगी।
अरिहंत श्रेणी की दूसरी पनडुब्बी अरिघात अरिहंत का उन्नत स्वरूप है और यह अत्याधुनिक हथियार प्रणाली तथा उपकरणों से लैस है। इसे कठिन तथा निरंतर परीक्षणों की सफलता के बाद नौसेना को सौंपा गया है। अरिघात की लंबाई 112 मीटर, चौड़ाई 11 मीटर तथा इसका वजन 6 हजार टन है। पनडुब्बी में घातक 15 मिसाइलें लगी हैं जो 750 किलोमीटर तक मार करने में सक्षम हैं। इसकी विशेषता यह है कि यह दुश्मन को चकमा देकर उसकी पकड़ में आये बिना हमला करने में सक्षम है। पनडुब्बी डेढ़ हजार फुट से भी अधिक गहराई तक पानी में जा सकती है। देश में तीसरी परमाणु पनडुब्बी अरिदमन भी बनायी जा रही है और कुछ वर्षों में यह भी नौसेना के बेड़े में शामिल हो जायेगी।
अरिहंत और अरिघात में 83 मेगावाट के लाइट वाटर रिएक्टर हैं जिनसे इनका संचालन किया जाता है। परमाणु रिएक्टरों के कारण यह पनडुब्बी परम्परागत पनडुब्बियों की तुलना में महीनों तक पानी में रह सकती है।
पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के शासनकाल में भारत परमाणु शक्ति बना था। पोखरण में परमाणु विस्फोट परीक्षण कर पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था। वर्ष 1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तब भारत ने फिर परमाणु परीक्षण किए थे। 11 मई, 1998 को पोखरण में एक के बाद एक तीन सफल परीक्षण के बाद भारत परमाणु राष्ट्र बन गया था। यह अटल बिहारी वाजपेयी की सोच का परिणाम था कि उस समय की केन्द्र सरकार देश की परमाणु नीति का और परमाणु अस्त्रों को तैनात करने के विकल्प का पुनर्मूल्यांकन करने को तैयार हो गई थी। तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वी.पी. मलिक ने भी यह मांग रखी थी कि दुश्मन देशों के परमाणु अस्त्रों और मिसाइलों की बढ़ती चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकार सेना की रणनीतिक प्रतिरोध क्षमता विकसित करे। अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत के परमाणु कार्यक्रम की नींव रखी थी और उसे आगे बढ़ाने का काम 2014 में बनी नरेन्द्र मोदी सरकार ने किया।
आज भारतीय सेना के पास आधुनिकतम िमसाइलों का जखीरा है। वायुसेना के पास परमाणु हथियारों से लैस लड़ाकू विमान हैं। नई पनडुब्बी आईएनएस अरिघात उसी कड़ी का हिस्सा है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में भारतीय सेना अब रक्षा उत्पादन सामग्री में भी आत्मनिर्भर होती जा रही है। पाकिस्तान आैर चीन समेत कई अन्य देश अब अरिघात के निशाने पर रहेंगे। अरिघात में अब तारपिडो भी रहेंगे जो दुशमन जहाजों और पनडुब्बियों के लिए काल साबित होंगे। भारत अब युद्ध पोत बनाने में भी जुटा हुआ है। परमाणु पनडुब्बी के नौसेना में शामिल हो जाने के बाद भारत का परमाणु ट्रायड पूरा हो गया है। भारत के विध्वंसक हथियारों से अब दुश्मन खौफ खाएंगे और थोड़ी सी भी िहमाकत करने से पहले यह सोचने को मजबूर होंगे कि भारत अब 1962 वाला भारत नहीं है, बल्कि 2024 का भारत है।