आगामी 18 फरवरी को वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त श्री राजीव कुमार के अवकाश प्राप्त कर लेने का बाद नये मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति 2023 में बने विधान के अनुसार होगी जिसमें चुनाव आयोग से बाहर के किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति को चुनने का प्रावधान भी होगा। 90 के दशक में जब से चुनाव आयोग में तीन चुनाव आयुक्त नियुक्त करने की परंपरा चालू हुई है तब से यह पहली बार होगा कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए यह विधि अपनाई जाये। 2023 के कानून में प्रावधान किया गया है कि कानून मन्त्री के नेतृत्व में चुनाव आयुक्त ढूंढने के लिए एक खोजी समिति बनाई जायेगी जो इस पद के लिए पांच योग्य प्रत्याशियों की खोज करेगी। यह समिति इन पांचों व्यक्तियों के नामों को उस नियुक्ति समिति के पास भेज देगी जिसमें प्रधानमन्त्री और उनके मन्त्रिमंडल के एक मन्त्री सहित लोकसभा में विपक्ष के नेता भी होंगे। नियुक्ति समिति इन पांचों उम्मीदवारों के नाम पर गौर करके किसी एक व्यक्ति की नियुक्ति करेगी। मगर यह कानून 2023 में तब बनाया गया था जब सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के बारे में यह फैसला दिया था कि जब तक संसद इस सम्बन्ध में कोई कानून नहीं बनाती है तब तक चुनाव आयुक्त की नियुक्ति एेसी समिति को करनी चाहिए जिसमें प्रधानमन्त्री सहित लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश हों। यह फैसला न्यायालय ने मार्च 23 में दिया था। मगर केन्द्र सरकार ने दिसम्बर 23 महीने में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के बारे में नया कानून बना दिया।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला संविधान में ही उल्लिखित इस तथ्य की रोशनी में किया था जिसमें यह लिखा हुआ था कि संसद को चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के बारे में कानून बनाना चाहिए परन्तु आजादी के बाद देश की किसी भी सरकार ने इस पर गौर नहीं किया और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति सरकार उच्च पदस्थ अधिकारियों के बीच से ही करती रही। इन चुनाव आयुक्तों की स्वतन्त्र भूमिका के सन्दर्भ में जब सर्वोच्च न्यायालय में कई याचिकाएं दाखिल की गईं तो देश की सबसे बड़ी अदालत ने अपना फैसला सुनाया था परन्तु दिसम्बर 23 को बने नये कानून में मुख्य न्यायाधीश की जगह केन्द्र के किसी मन्त्री को डाल दिया गया। मगर इस नये कानून की वैधता को लेकर भी फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय में कई याचिकाएं डाली गईं जिन पर न्यायालय विचार कर रहा है और वह भी फरवरी महीने में ही आगे सुनवाई करेगा। मगर 18 फरवरी को ही मुख्य चुनाव आयुक्त श्री राजीव कुमार रिटायर हो रहे हैं अतः केन्द्र सरकार ने नये कानून के तहत आगे की कार्रवाई शुरू करने का फैसला किया है। इसके लिए प्रत्याशियों की खोज के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाई जायेगी जिसका नेतृत्व कानून मन्त्री करेंगे और इसमें सचिव स्तर के दो अधिकारी शामिल होंगे। ये वर्तमान में सेवारत या अवकाश प्राप्त सचिव भी हो सकते हैं।
जाहिर है कि यह समिति जो भी नाम खोज कर देगी उसमें वर्तमान में कार्यरत दो चुनाव आयुक्त भी हों एेसा नहीं माना जा सकता। क्योंकि खोजी समिति इससे बंधी नहीं होगी। वर्तमान में राजीव कुमार के अलावा शेष दो आयुक्त सर्वश्री ज्ञानेश कुमार व सुखबीर सिंह सन्धू हैं। इससे पहले मुख्य चुनाव आयुक्त कार्यरत चुनाव आयुक्तों में से वरिष्ठ आयुक्त को ही बना दिया जाता था परन्तु नये कानून के तहत अब मुख्य चुनाव आयुक्त इन दोनों के अलावा कोई तीसरा व्यक्ति भी हो सकता है। 2023 में बने चुनाव आयुक्त नियुक्ति के कानून को लेकर भी सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएं सुनवाई के लिए पड़ी हुई हैं। अतः 18 फरवरी तक यदि सर्वोच्च न्यायालय इस सम्बन्ध में फैसला नहीं देता है तो कानून मन्त्री की खोजी समिति द्वारा ढूंढे गये पांच नामों में से किसी एक को ही नया मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया जायेगा लेकिन पिछले कई सालों से चुनाव आयोग की भूमिका को लेकर देशभर में गंभीर बहस छिड़ी हुई है और विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि चुनाव आयोग चुनावों के समय निष्पक्ष भूमिका नहीं निभा पाता है।
वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त तो शुरू से ही विपक्षी दलों की आलोचना का शिकार रहे हैं। चुनाव आयोग की भूमिका हमारे संविधान में बहुत महत्वपूर्ण है। हमने जिस संसदीय लोकतान्त्रिक प्रणाली को अपनाया है उसकी जमीन चुनाव आयोग ही तैयार करके राजनैतिक दलों को सौंपता है। निष्पक्ष व निर्भीकता चुनाव आयोग की एेसी विशिष्टता है जो भारत का संविधान ही उसे प्रदान करता है। अतः जब भी चुनाव आयोग की भूमिका पर संशय किया जाता है तो चुनावों की पवित्रता व विश्वसनीयता पर शक पैदा होता है। यह बेवजह नहीं है कि चुनाव आयोग को हमारे पुरखों ने सरकार का अंग नहीं बनाया और इसे सीधे संविधान से शक्ति लेकर अपना कार्य करने की स्वतन्त्रता दी। अतः चुनाव आयोग भारत के लोकतन्त्र की रीढ़ माना जाता है। इसे न सरकार पर काबिज सत्तारूढ़ दल की पैरवी करने की जरूरत होती है और न विपक्षी दलों की अनदेखी करने की संविधान इजाजत देता है, हर हालत में यह निष्पक्ष दिखना चाहिए। इसी वजह से समय-समय पर विपक्ष में रहे राजनैतिक दल इसकी निष्पक्षता को लेकर सवाल उठाते रहे हैं।
मनमोहन सरकार के कार्यकाल के दौरान भी चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का मुद्दा उठा था। उस समय लोकसभा में भाजपा के विपक्ष के नेता रहे श्री लालकृष्ण अडवानी ने ही यह सुझाव दिया था कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए एक समिति बने जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश भी हों और प्रधानमन्त्री भी जिससे चुनाव आयुक्तों की भूमिका पर कोई सवालिया निशान न लगा सके। अब नये कानून के तहत पांच प्रत्याशियों के नाम दिये जायेंगे जिनमें से मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन किया जायेगा। मौजूदा दो चुनाव आयुक्तों में श्री ज्ञानेश कुमार वरिष्ठ हैं मगर अब इसी आधार पर वह नये मुख्य चुनाव आयुक्त नहीं बन सकते हैं। भारत के संविधान में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा केन्द्र सरकार की अनुशंसा पर किया जाना लिखा था और साथ में यह भी लिखा हुआ था कि संसद को इस बारे में कानून बनाना चाहिए। इस पर मार्च 23 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि जब तक संसद कानून नहीं बनाती है तब तक तीन सदस्यीय नियुक्ति समिति गठित की जाये जिसमें प्रधानमन्त्री व विपक्ष के नेता के अलावा मुख्य न्यायाधीश भी शामिल हों। मगर दिसम्बर 23 में सरकार ने कानून बना दिया। अतः नई नियुक्ति इसी आधार पर होगी।