नम्बी नारायण : दिल दहला देने वाली दास्तान - Punjab Kesari
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नम्बी नारायण : दिल दहला देने वाली दास्तान

5 जनवरी 2014 को भारत ने अंतरिक्ष में लम्बी छलांग लगाकर नया इतिहास रचा था। स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन

5 जनवरी 2014 को भारत ने अंतरिक्ष में लम्बी छलांग लगाकर नया इतिहास रचा था। स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के बूते राकेट को अंतरिक्ष में भेजने का परीक्षण 100 फीसदी खरा उतरा था। इस लम्बी छलांग के पीछे असल में कौन था? लेकिन पूरी खबरों में कहीं भी उस वैज्ञानिक का उल्लेख तक नहीं था। उस वैज्ञानिक का नाम है प्रोफैसर नम्बी नारायण। सबसे पहले 1970 में तरल ईंधन राकेट तकनीक लाने वाले वैज्ञानिक रहे नम्बी नारायण 1994 में इसरो में क्रायोजेनिक विभाग के वरिष्ठ अधिकारी थे। अफसोस की बात है कि उन्हें सत्ता और सियासत के षड्यंत्र का शिकार बनाया गया। जिस व्यक्तित्व को राष्ट्रीय अलंकरण देकर सम्मानित किया जाना चाहिए था, उसे ही जेल की सलाखों के पीछे बन्द कर दिया गया। उन्हें देश का गद्दार करार दिया गया। हमारे देश की विडम्बना है कि जो लोग देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा रखते हैं, उनको किसी न ​किसी तरह से हतोत्साहित कर उन्हें रोक दिया जाता है।

नम्बी नारायण और उनके साथी डी. शशिकुमार को 1994 में केरल पुलिस ने जासूसी और भारत की राकेट प्रौद्योगिकी दुश्मन देश को बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था तो मीडिया ने इन खबरों को बहुत उछाला था। मीडिया ने बिना जांचे-परखे पुलिस की थ्योरी पर विश्वास करके उन्हें राष्ट्रद्रोही के रूप में प्रस्तुत किया था। पुलिस ने इसे सैक्स जासूसी स्कैंडल की तरह पेश किया था। सीआईए ने मालदीव की दो ऐसी महिलाओं को तैयार किया जिनके पास ऐसे रहस्य थे जिनकी जानकारी न पुलिस को थी, न मीडिया को।

नम्बी नारायण के खिलाफ लगे आरोपों की जांच सीबीआई से कराई गई थी आैर 1996 में ही सीबीआई ने उन्हें सारे आरोपों से मुक्त कर दिया था लेकिन उन्हें पूरा इन्साफ 24 वर्ष बाद मिला। सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ सारे नेगेटिव रिकार्ड को हटाकर उनके सम्मान को पुनः बहाल करने का आदेश दिया। साथ ही केरल सरकार को आदेश दिया कि नम्बी नारायण को सारी बकाया रकम, मुुआवजा आैर दूसरे लाभ दिए जाएं।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ ने कहा है कि उन्हें हुए नुक्सान की भरपाई पैसे से नहीं हो सकती लेकिन नियमों के तहत उन्हें 75 लाख का भुगतान किया जाए। सफेद दाढ़ी में नम्बी नारायण का चेहरा समूचे राष्ट्र ने टीवी चैनलों पर देखा। वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुश तो थे कि उन पर गद्दार का लेबल हट गया है लेकिन उनकी आंखों में दर्द भी झलक रहा था। उन्हें जो नुक्सान हुआ सो हुआ लेकिन इस प्रकरण से जो राष्ट्र को नुक्सान हुआ, उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता।

सीबीआई को जांच में इस बात के संकेत मिल चुके थे कि उन्हें अमेरिकी खुफिया एजैंसी सीआईए के इशारे पर केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने साजिश का शिकार बनाया है। एक वरिष्ठ वैज्ञानिक को गिरफ्तार कर न केवल लॉकअप में डाला गया बल्कि उन्हें यातनाएं दी गईं ताकि वह बाकी वैज्ञानिकों के खिलाफ गवाही दे सके। यह वो दौर था जब अमेरिका अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी दूसरे देशों को भारी-भरकम किराये पर देता था। अमेरिका को डर था कि अगर भारत क्रायोजेनिक इंजन बनाने में आत्मनिर्भर बन गया तो उसे काफी कारोबारी नुक्सान होगा।

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को ध्वस्त करने के लिए अमेरिका ने साजिश रची और केरल की वामपंथी सरकार उसका हथियार बन गई। यह सर्वविदित है कि एसआईटी के जिस अधिकारी सी.बी. मैथ्यूज ने नम्बी नारायण को गिरफ्तार किया था, उसे कम्युनिस्ट सरकार ने राज्य का पुलिस महानिदेशक बनाकर पुरस्कृत किया था। सी.बी. मैथ्यूज के अलावा तत्कालीन एसपी के.के. बोगुआ और एम. विजयन के भी इस साजिश में शामिल होने की बात सामने आ रही थी।

हैरानी की बात तो यह है कि तत्कालीन केन्द्र की कांग्रेस सरकार की भूमिका भी संदिग्ध रही थी, जिसने इतने बड़े वैज्ञानिक के खिलाफ साजिश पर खामोशी अख्तियार कर ली थी। मीडिया में ऐसी रिपोर्ट वर्णित थी कि अमेरिकी खुफिया एजैंसी सीआईए भारत में ऊपर से नीचे तक के नेताओं और अफसरों को मोटी रकम पहुंचाती थी। अगर नम्बी नारायण को फर्जी मामले में फंसाया नहीं जाता तो भारत को अपना पहला क्रायोजेनिक इंजन 15 वर्ष पहले मिल गया होता।

भारत उस दौर में क्रायोजेनिक इंजन को हासिल करना चाहता था, इसे रूस से लेने की कोशिश भी की गई लेकिन अमेरिकी दबाव में रूस ने इन्कार कर दिया था। तब नम्बी नारायण ने ही सरकार को भरोसा दिलाया था कि वह और उनकी टीम देसी क्रायोजेनिक इंजन बनाकर दिखाएंगे। अपनी दिल दहला देने वाली दास्तान को नम्बी नारायण ने अपनी पुस्तक ‘रेडी टू फायर’ में लिखा है। देश के इस महान वैज्ञानिक के साथ साजिश के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी को छोड़ किसी ने भी आवाज नहीं उठाई। भाजपा सांसद आैर अधिवक्ता मीनाक्षी लेखी ने कुछ वर्ष पहले मीडिया के सामने पूरी साजिश का खुलासा किया था।

सीआईए की साजिश के अलावा बहुत कुछ ऐसा है जो अभी भी परतों में छुपा हुआ है। सीआईए ने भारतीय वैज्ञानिकों को बहुत नुक्सान पहुंचाया है। जब भी भारत अंतरिक्ष में उड़ान भरता पूरा देश टीवी पर प्रसारण देख रहा होता था तो वह तिरुअनंतपुरम में अपने घर में टीवी बन्द कर बैठे रहते। उन्हें भारत की उपलब्धियों पर गर्व तो होता लेकिन 24 वर्षों से जो यातनाएं उन्होंने झेलीं, उसने उन्हें तोड़कर रख दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अन्ततः उन्हें न्याय दिया। राष्ट्र नम्बी नारायण की उपलब्धियों आैर न्याय के लिए उनके संघर्ष को हमेशा याद रखेगा।

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