‘रास्ते अपनी कहानियां मंजिलों तक कब साथ ले जाते हैं
राहों में जो छूट जाते हैं वे बस पगडंडियां बन कर ही तो रह जाते हैं’
दुनिया के सबसे अमीर उद्योगपति एलन मस्क जनवरी माह के अंत तक अपनी सेटेलाइट फोन सेवा लाकर भारत में भी अपने पांव पसार सकते हैं। इस दफे के अमरीका के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को गद्दी दिलवाने में एलन मस्क उनके तुरूप का इक्का साबित हुए हैं, जाहिर है ऐसे में मस्क को खुश करना जाने-अनजाने में ट्रंप की अधरों पर मुस्कान लाने का ही एक उपक्रम होगा। मस्क की कंपनी स्टार लिंक भारत आने के लिए एकदम तैयार है, शुरुआत में मस्क संचार और ईवी के क्षेत्र में काम करेंगे। स्टार लिंक इंटरनेट की सुविधा प्रदान करने वाली भारत की सबसे बड़ी कंपनी में शुमार हो सकती है, विशेषज्ञ इसे रिलायंस जीओ के लिए एक खतरे की घंटी मान रहे हैं। सनद रहे कि बीते सप्ताह मस्क ने भारत में अपनी सेटेलाइट आधारित सेवा शुरू करने के लिए अपनी ‘स्पेस एक्स’ कंपनी से 23 नए लियो सेटेलाइट फ्लोरिडा से कक्षा में लांच किए हैं।
सबसे गौर करने वाली बात तो यह है कि इन 23 में से 13 उपग्रह ऐसे हैं जिसमें ‘डायरेक्ट टू सेल’ की क्षमताएं हैं, यानी जो बिना किसी विशेष उपकरण या मोबाइल टॉवर के सीधे मोबाइल फोन से जुड़ सकते हैं और उसे एक्टिव कर सकते हैं। यानी आप भारत के किसी सुदूर से भी सुदूर इलाकों में चले जाएं जहां मोबाइल टॉवर की कोई भी मौजूदगी न हो आप इन सेटेलाइट फोन की मदद से नेटवर्क में रह सकते हैं। फोन कॉल कर सकते हैं या इंटरनेट सेवा का लाभ उठा सकते हैं।
केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अभी हाल में ही घोषणा की है कि उनका मंत्रालय ‘स्टार लिंक’ को पहले आओ, पहले पाओ की स्कीम के तहत भारत में इंटरनेट सेवा का लाइसेंस देने को तैयार है। पर विशेषज्ञों कि चिंता है कि एक बार स्टार लिंक को हरी झंडी मिलने के बाद ट्राई का उसके ऊपर कोई खास कंट्रोल नहीं रह पाएगा, क्योंकि इस सेवा का संचालन टॉवर की जगह सीधे सेटेलाइट के मार्फत होगा, जिस पर कंट्रोल करना भारत सरकार के लिए आसान नहीं रह जाएगा। ऐसे में भारत का डेटा भी सीधे स्टार लिंक के पास जा सकता है, सरकार का ‘डीपीडीपी अधिनियम’ डेटा के स्टोरेज में स्थानीकरण को अनिवार्य करता है, पर क्या यह नियम स्टार लिंक के मामले में इतना ही कारगर साबित होगा? सवाल यही तो सबसे बड़ा है।
बिहार में भाजपामय होती जदयू
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राजनैतिक उत्तराधिकारी को लेकर लगातार यह कयास लग रहे हैं कि उनके बाद जदयू की कमान किसके पास होगी? नीतीश के स्वास्थ्य को लेकर भी लगातार चिंता जताई जा रही है। सरसरी तौर पर देखा जाए तो फिलहाल नीतीश के उत्तराधिकारी के तौर पर दो नामों की चर्चा है, इनमें से एक हैं पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा और दूसरा नाम है मोदी सरकार में मंत्री राजीव रंजन उर्फ लल्लन सिंह का। संजय झा के भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ बेहद मधुर संबंध हैं।
वे बतौर पार्टी अध्यक्ष बिहार के आगामी चुनाव को देखते हुए लगातार राज्यवर दौरे कर रहे हैं और जदयू संगठन को मजबूत बनाने के प्रयास में जुटे हैं, पर संजय झा को लेकर जदयू के एक तबके में लगातार यह चिंता व्याप्त है कि अगर टिकट बंटवारे में सिर्फ उनकी चल गई तो वे भाजपा की उस योजना को सिरे चढ़ा सकते हैं जहां भगवा पार्टी की मंशा है कि ‘जदयू अपनी अधिकांश सीटों पर जीत सकने वाले भाजपा नेताओं को टिकट दे ताकि जदयू का भाजपा में विलय की नौबत भी आ जाए तो यह काम आसानीपूर्वक हो सके।’ सबसे हैरत की बात तो यह है कि झा जी की इस अति महत्वाकांक्षी योजना को भीतरखाने से लल्लन सिंह का भी पूरा समर्थन हासिल बताया जाता है।
ममता का परचम ऐसे लहरा रहा
कांग्रेस हरियाणा और महाराष्ट्र में क्या हारी लगता है, अपने गठबंधन साथियों का भरोसा ही हार गई है। अब कांग्रेस नीत इंडिया गठबंधन के साथी ही राहुल गांधी से इस नए चक्रव्यूह को भेदने की आशा रखते हैं। सब जानते हैं कि राहुल के समक्ष इस नए चक्रव्यूह की व्यूह रचना के शिल्पी देश के वही शीर्षस्थ उद्योगपति हैं जिन पर संसद से लेकर सड़क तक राहुल सदैव हमलावर रहते हैं। अब राहुल की कांग्रेस को ही इंडिया गठबंधन से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए कुछ राजनैतिक दल सक्रिय हो गए हैं।
ये दल वही हैं जिनके अगुआ अब इंडिया गठबंधन की कमान खड़गे के हाथों से छीन कर ममता के हवाले करने की वकालत कर रहे हैं। फिर चाहे वे लालू यादव हों, शरद पवार या फिर अखिलेश यादव कमोबेश ये सभी इंडिया गठबंधन का सिरमौर ममता बनर्जी को बनाने की वकालत कर रहे हैं, वहीं जगन मोहन रेड्डी जैसे नेता भी जिनका अब भाजपा से मोहभंग हो गया है, वे भी जाने-अनजाने दीदी के पक्ष में कदमताल कर रहे हैं। हैरत की बात है कि आंध्र की राजनीति में जगन के धुर विरोधी तेलुगु देशम पार्टी के चंद्रबाबू नायडू भी ममता के कद्रदानों में गिने जाते हैं। हालांकि वे इन दिनों एनडीए सरकार को अपना समर्थन दे रहे हैं पर इशारों-इशारों में उन्होंने भी बता दिया है कि ‘अगर इंडिया गठबंधन की कमान ममता के हाथों में आती है तो वे भी पाला बदलने की सोच सकते हैं।’
इस पूरे मामले में एक बात गौर फरमाने वाली है कि ये तमाम दल जो ममता की छतरी के तले एकजुट होने को तैयार हैं इन्हें राहुल की तरह अडानी से कोई गुरेज नहीं, बल्कि पवार, ममता, चंद्रबाबू जैसे लोग अडानी से अपनी दोस्ती पर कभी-कभी इतराते भी नज़र आते हैं।
सोरेन के मन में कितनी है कांग्रेस
इंडिया गठबंधन के बाकी घटक दलों की राह चलने में भले ही हेमंत सोरेन का भरोसा नहीं, पर अगर वे कांग्रेस को ‘कट-टू-साइज’ नहीं तो एक वाजिब प्राइस देकर सेट्ल रखना चाहते हैं। बात हालिया झारखंड विधानसभा चुनाव की करें तो सोरेन शुरू से ही यहां कांग्रेस शीर्ष के रवैये को लेकर सशंकित थे। उन्होंने थोक भाव में यहां कांग्रेस को लड़ने के लिए 30 सीटें दी थीं, पर उन्हें जो फील्ड से रिपोर्ट मिल रही थी उससे पता चल रहा था कि आधे से ज्यादा कांग्रेस उम्मीदवार अपना धन-बल व संसाधन चुनाव में नहीं झोंक रहे थे।
सूत्रों की मानें तो इसके फौरन बाद सोरेन ने सीधे राहुल गांधी से बात की और उनसे कहा कि ‘कांग्रेस अपने उम्मीदवारों के लिए और चुनावी फंड उपलब्ध कराए, साथ ही यहां बड़े नेताओं के प्रोग्राम भी लगवाएं।’ पर कहीं न कहीं कांग्रेस शीर्ष का मानना था कि उनके प्रत्याशी अपने दम पर चुनाव लड़ने में सक्षम हैं। सो, जब दिल्ली से पैसा नहीं आया तो कहते हैं सोरेन ने स्वयं कांग्रेसी उम्मीदवारों को तलब कर उनकी आर्थिक मदद की और उनके संबंधित चुनाव क्षेत्रों में अपनी कम से कम दो-दो सभाएं रखवायीं, तब कहीं जाकर कांग्रेस झारखंड में 16 सीटें जीतने में कामयाब रही। सोरेन ने कांग्रेस के डिप्टी सीएम की मांग को भले ही ठुकरा दिया हो, पर उन्हें चार मंत्री पद से जरूर उपकृत कर दिया। सो, यह अनायास नहीं है कि झारखंड में कांग्रेस के विधायक सोरेन पर इतना भरोसा जता रहे हैं।
…और अंत में
दिल्ली में इस दफे भाजपा और आप में आर-पार की लड़ाई है। इस चुनाव में ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है, इसे देखते हुए दिल्ली भाजपा के एक बड़े नेता ने भाजपा बीट कवर कर रहे पत्रकारों को नए साल का एक नायाब तोहफा दिया है। सूत्रों के दावों पर यकीन किया जाए तो दिल्ली भाजपा कवर करने वाले पत्रकारों को नए साल के तोहफा के तौर पर महंगे आई फोन गिफ्ट किए गए हैं।
वहीं आप सुप्रीमो केजरीवाल ज्योतििषयों की शरण में जा पहुंचे हैं। अपने एक खास ज्योतिषी के कहने पर केजरीवाल ने अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह झाड़ू का रंग सफेद से बदल कर काला कर दिया है। ‘बुरी नज़र वाले तेरा मुंह काला’ की तर्ज पर अब आप की हर प्रचार सामग्री पर झाड़ू सफेद से काली हो गई है, पर पार्टी की ओर से इस बारे में कोई सफाई भी नहीं दी गई है।