मानसून का मिजाज - Punjab Kesari
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मानसून का मिजाज

मानसून की शीतल फुहारों का हम सबको इंतजार रहता है। मानसून हमारे लिए खुशियों का खजाना लेकर आता

मानसून की शीतल फुहारों का हम सबको इंतजार रहता है। मानसून हमारे लिए खुशियों का खजाना लेकर आता है लेकिन प्रकृति खुशियों के साथ-साथ रौद्र रूप भी दिखाने लगी है। यह सही है कि कभी गीतकार, चित्रकार, संगीतकार, अमीर-गरीब, किसान और सरकार मानसून के प्रभाव से अलग नहीं रहते। मानसून के अलग-अलग रंग मानव मन और मस्तिष्क पर अपना असर छोड़ते हैं। मानसून से होने वाली वर्षा भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार है। मानसून की वर्षा अच्छी होगी तो किसानों के चेहरे पर मुस्कान होगी। अर्थव्यवस्था लहलहाएगी। आषाढ़ की बूंदों से लेकर सावन की झड़ी और फिर भादों में पोर-पोर तक तृप्त हो जाने का अहसास हमें कराती है। मानसून के बिना तो मन सूना ही रहेगा। कहने का अर्थ यही है कि जल ही जीवन है। दिल्ली और  देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में 62 वर्ष बाद एक साथ मानसून का आगमन लोगों को भारी राहत देने वाला है। लोगों को भीषण गर्मी से राहत भी मिली है लेकिन मानसून पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावाें ने वैज्ञानिकों को भी चौंका दिया है। मुंबई जैसे तटीय क्षेत्र में मानसून देरी से आया ज​​बकि दिल्ली में मानसून मौसम की भविष्यवाणी से दो दिन पहले पहंच गया। महातूफान विपरजॉय की वजह से अरब सागर में उठने वाले बादल कमजोर हो गए थे लेकिन एक सप्ताह पहले बंगाल की खाड़ी में कम दबाव का क्षेत्र बना जिससे मानसून जल्दी ही उत्तर भार में पहंच गया। मौसम की सटीक भविष्यवाणी करना जलवायु परिवर्तन के दौर में बड़ा मुश्किल है। इसका अर्थ यह भी है कि देश के तटीय और ऊष्ण क्षेत्रों में मानसून के पैटर्न में कोई अंतर नहीं रह गया। वैज्ञानिक इस बात का आंकलन कर रहे हैं कि 62 वर्ष पहले जब दिल्ली और मुंबई में एक साथ मानसून आया ​था तब बारिश की ​स्थति क्या थी। तब जलवायु परिवर्तन का कितना असर था। अब वर्षा के पैटर्न में भी विविधता बढ़ चुकी है। मानसून के दो ही पूर्वानुमान काफी नहीं हैं। मानसून के दौरान एक अवधि में जरूरत से अधिक बरसात और  दूसरी अवधि में शुष्क मौसम भी चुनौती बढ़ा रहा है।
यह विविधता इतनी अधिक है कि इस बदलते पैटर्न को समझना मुश्किल हो गया है। भले मानसून में औसत वर्षा सामान्य हो रही है लेकिन इस विविधता की वजह से किसानों को परेशानी हो रही है। तेलंगाना में इस बार ओले पड़ने से फसलें बर्बाद हुईं तो वहीं पंजाब में लू ने फसलों को नुक्सान पहुंचाया।
इसके बाद भी बेमौसमी बरसात जारी रही। अब समय आ गया है कि मानसून का पूर्वानुमान जिले और उप जिले स्तर पर किया जाए। मौसम के इस बदलाव को जलवायु परिवर्तन का असर न मानने के आईएमडी के दावे पर विशेषज्ञों का कहना है कि विज्ञान में यह साबित हो चुका है कि यह जलवायु परिवर्तन का ही असर है। समय से पहले लू चल रही है और बेमौसम बारिश हो रही है।
पिछले मानसून के विश्लेषण से पता चलता है कि जब-जब लानीना के बाद अलनीनो आया मानसून में वर्षा की कमी काफी अधिक रही है। पिछले 3 साल से मानसून पर लानीना का असर रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि मानसून की अब सिर्फ सामान्य, कम वर्षा और अतिवर्षा के तराजू में तोलने की बजाय बाढ़, सूखा,फसलों की बर्बादी, स्वास्थ्य पर असर आदि के नजरिये से भी देखने की जरूरत है। मानसून की बारिश के दुष्परिणाम अभी से ही देखने को मिल रहे हैं। असम में बाढ़ से लाखों की आबादी प्रभावित हुई है। हिमाचल आैर उत्तराखंड में वर्षाजनित हादसे होने शुरू हो गए। हिमाचल के मंडी, धर्मशाला और अन्य क्षेत्रों में बाढ़ जैसे हालात नजर आने लगे हैं। उत्तराखंड में तीर्थयात्रियों और पर्यटकों की मुश्किलें बढ़ने लगी हैं। महानगरों में एक-दो दिन की बारिश से ही सड़कें नदियों का रूप ले चुकी हैं और ट्रैफिक जाम की समस्या से हर काेई पीड़ित है। विडम्बना यह है कि जिस मानसून को हम महोत्सव के रूप में मनाते हैं उसे हम शोक के वातावरण में बदल रहे हैं।
मानसून में असामान्य बदलाव के चलते मानसून अब कई राज्यों में फैल चुका है। हमें प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन को लेकर भी लगातार सजग रहने की जरूरत है। महातूफान से तो हम निपट लिए लेकिन पहाड़ी राज्यों में किसी भी कुदरती आफत का सामना करने के लिए हमें तैयार रहना होगा। क्योंकि इस तरह की आपदाओं में न केवल जानें जाती हैं बल्कि हजारों की संख्या में लोक विस्थापित हो जाते हैं। बड़ी सख्या में लोगों की आजीविका भी प्रभावित होती है। काेई दौर था जब सात-सात दिन मानसून की झड़ी लगती रहती और जमीन वर्षा का पानी सोख लेती थी। अब क्योंकि बड़े शहरों में कंक्रीट की इमारतें खड़ी हो चुकी हैं और कुछ घंटे की बारिश से शहर लबालब हो जाते हैं। ऐसे में मानव जीवन को बचाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। जितना वर्षा का पानी शहरों में बर्बाद हो जाता है अगर उसका कुछ हिस्सा भी संरक्षित कर लिया जाए तो हमारी नदियां कभी सूखी नहीं रह सकतीं। बेहतर होगा मानव प्रकृति के बदलते मिजाज को समझे और धरती के बढ़ते तापमान को कम करने में अपनी बड़ी भूूमिका निभाए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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